गोकुल वालों का इंद्र पूजा की तैयारी करना
वर्षा ऋतु नजदीक थी और हर साल की तरह इस साल भी गोकुल वासी अच्छी बारिश के लिए देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी मे लगे थे । कोई फूल माला तैयार कर रहा था तो कोई बैलगाड़ी को सजा रहा था । 56 प्रकार के व्यंजन भी बने थे जो की अलग अलग पात्रो मे रक्खे थे हर कोई पूजा को सफल बनाने मे व्यस्त था । कई सारे ऋषि गण भी मंत्रो के उच्चारण मे लगे थे । नन्द बाबा और यशोदा मैया सहित सारे गोकुल वासी तरह तरह के सुंदर वस्त्र पहने हुए थे ।
कृष्ण का गोकुल वालों को समझना
इसी बीच भगवान कृष्ण अपने ग्वाल बालो के साथ आते है और ये सारी तैयारी देखकर नन्द बाबा से पूछते है की -बाबा ये सब क्या हो रहा है और किसके लिए हो रहा है । क्या आज कोई उत्सव है । नन्द बाबा बोलते है की -हा कान्हा उत्सव ही समझो आज इन्द्र देव की पूजा है । ये पूजा हर साल होती है । इस पर कृष्ण बोलते है की -आप लोग इन्द्र की पूजा क्यो करते हो । कृष्ण की ये बात सुनकर सब लोग चौक जाते है और कहते है की अरे लल्ला इन्द्र बारिश के देवता है और उनकी आज्ञा से ही ब्रज मे बारिश होती है जिससे हमे प्रचुर मात्रा मे अनाज प्राप्त होता है । इसे इन्द्रोज यज्ञ भी कहते है । कृष्ण बोलते है की -अगर पूजा न की तो । तभी एक वृद्ध बोलता है -अगर पूजा ना हुई तो इन्द्र नाराज हो जायेगा और ब्रज मे बारिश नहीं करेगा जिससे ब्रज मे सूखा पड़ जाएगा ।
कृष्ण बोले -ये आप सब का कैसा देवता है जो की आप सब से जबर्दस्ती पूजा करवाता है और पूजा ना करने पर बारिश नहीं करेगा । पूजा करोगे तो बारिश होगी अगर नहीं करोगे तो बारिश नहीं होगी ,ये तो कोई व्यापारी है देवता नहीं । हमे इन्द्र की पूजा छोड़कर अपने गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए जिससे बादल ब्रज के बाहर नहीं जा पाते है और यही पर बरस जाते है ,जिसके जंगलो मे हमारी गौये घास चरती है और हमे दूध देती है ,हमे खाना पकाने के लिए ईंधन प्राप्त होता है । इसलिए हमे इन्द्र को छोड़कर अपने गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए । बहुत विवाद के बाद लोगो को कृष्ण की बाते सही लगने लगी और सबने इन्द्र की पूजा के स्थान पर गोवर्धन की पूजा करने का निश्चय किया ।
इंद्र का क्रोध मे आना और मेघो को भेजना
जब इंद्र को इस बारे मे पता चला की गोकुल वासी मेरी पूजा छोड़ कर उस नादान बालक कृष्ण की बातों मे आकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने जा रहे है तो वो क्रोध से आगबबूला हो गया । वो बोला -ये अज्ञानी मेरी अवहेलना करके उस पर्वत की पूजा करने जा रहे है ,इन ग्वालो का इतना दुस्साहस ,इनको धन का घमंड हो गया है । ये जंगली क्या समझते है की ये पर्वत मेरे क्रोध से इनकी रक्कचा करेगा तो ये इनकी भूल है ।
फिर इन्द्र ने प्रलय करने वाले मेघो के सावर्तक नामक गड़ को बुलाया और कहा की -जाओ सावर्तक और इन घमंडी ग्वालो के ब्रज को डुबो दो हर तरफ जल जल दिखना चाहिए । इनके सारे जानवरो का संघार कर दो मै भी ऐरावत पर तुम्हारे पीछे पीछे आता हू । और इस तरह इन्द्र ने उन महा प्रलयंकारी मेघो के बंधन खोल दिये ।
वे सारे मेघ अपनी पूरी शक्ति के साथ ब्रज पर बरस पड़े ज़ोर ज़ोर से आंधिया चलने लगी ,बिजली चमकने लगी और बीजलिया धरती पर गिरने लगी ,बड़े बड़े ओले गिरने लगे और स्तम्भ के समान मोटी मोटी जल धारा गिरने लगी । लोग ठंड से कापने लगे हर तरफ जल ही जल था क्या ऊचा और क्या नीचा कुछ समझ नहीं आ रहा था । बहुतों के तो घर भी बह गए हर ओर सिर्फ विनाश ही विनाश दिख रहा था और ये सब देख कर इंद्रा बहुत ही खुश हो रहा था ।
भगवान कृष्ण का गोवर्धन पर्वत को उठाना
सारे गोकुल वासी भगवान श्रीकृष्ण के शरण मे गए और उनसे कहा की -हे कृष्ण ;तुम्हारे कहने पर ही हम लोगो ने आज गोवर्धन पर्वत की पूजा की है जिससे नाराज होकर इन्द्र ने ये सब किया है । हम सब की रक्छा करो कृष्ण । कृष्ण भी समझ गए की इंद्र ने क्रोध मे आकर ये सब किया है ,इन्द्र को अपने पद और शक्ति का बड़ा घमंड हो गया है आज मे उसका ये घमंड तोडुगा । ये मूर्ख अपने आप को लोकपाल मानते है । देवताओ को क्रोध नहीं करना चाहिए ,इनके घमंड को चूर चूर करके मै इनको अंत मे शांति प्रदान करुगा ।
इसके बाद कृष्ण के कहा -डरो नहीं जिसकी हमने पूजा की है वही हमारी रक्छा भी करेगा ,वही गोवर्धन जी हम सब की रक्छा करेगे । आओ मेरे साथ ,फिर सब कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत के पास गए और फिर कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाना सुरू किया देखते ही देखते पूरा गोवर्धन पर्वत को उखाड़कर कृष्ण ने अपनी कनिष्का उंगली के ऊपर उठा लिया । फिर सभी लोग गोवर्धन पर्वत के नीचे जिसको कृष्ण ने एक छाते के समान धारण कर रक्खा था उसके नीचे आ गए । और कृष्ण की ओर ममतामई दृष्टि से देखने लगे ।
उधर इंद्र ये सब देख रहा था और अपने मेघो को और भी ज्यादा बारिश करने को बोला । इधर कृष्ण ने सभी गोकुल वासियो की भूक प्यास भूलाकर सात दिनो तक एक ही जगह खड़े रहकर और बंशी बजाते हुए बिता दिये ,और इन सात दिनो मे इंद्र के मेघो के पास जल की एक बूंद भी ना बची ,इंद्र के पास सारा जल समाप्त हो गया और वो गोकुल वालों का कुछ न बिगाड़ पाया ये देखकर उसके आश्चर्य की सीमा ना रही ,इंद्रा ये समझ ही नहीं पा रहा था की कृष्ण वास्तव मे है कौन ।
तभी वहा देवगुरु ब्रहस्पति प्रकट हुए और इन्द्र से बोले -हे इन्द्र आज तुम्हारा सामना उससे है जो परम शक्तिशाली है जो अविनाशी और अनंत है जिससे सारी शक्ति प्रकट होती है और फिर उनही मे समा जाती है । तब इन्द्र बोला -हे गुरुदेव ऐसी अवस्था मे हमे क्या करना चाहिए । देवगुरु बोले -जहा शक्ति काम नहीं आती वहा भक्ति काम आती है । तुम भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध करने के जगह उनकी शरण मे जाओ वही तुम्हारी हार को जीत मे बदल सकते है।
इधर बारिश रुक जाती है बादल छट जाते है और सूरज निकल आता है तब कृष्ण सभी लोगो से कहते है -अब बारिश बंद हो गई है तथा पानी भी नीचे जा चुका है अब आप सब अपने गऔ के साथ निकल जाए और अपने घर को जाए । सबके जाने के बाद कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपने स्थान पर रख देते है और एक जगह पर बैठ जाते है तभी वहा देवराज इन्द्र आते है और कृष्ण को प्रणाम करता है तब कृष्ण बोलते है -आइये देवराज ,मैंने देखा की आप मेरा कितना आदर करते है । इंद्रा बोले -छमा करे प्रभु ,छमा करे प्रभु हे अविनाशी हे दया के सागर मुझसे जो गलती हुई है उसके लिए छमा करे प्रभु । कृष्ण बोले -तुम हमे पहचान ना सके और तुमने ये सब किया इसके लिए हम तुम्हें दोषी नहीं मानते है क्योकि ये तो हमारी माया का ही प्रभाव है परंतु तुम्हारे दूसरे दोष के लिए हम तुम्हें अवश्य दोषी मानते है ,जो तुम्हारा कर्तव्य था तुमने उसे अपना अधिकार समझ लिया ,और उसके बदले तुम धरती वासियो से पूजा रूपी रिश्वत लेते हो ,तुम चाहोगे तो पानी बरसेगा और तुम नहीं चाहोगे तो पानी नहीं बरसेगा हमे तुमसे ये आशा ना थी ।
परंतु इंद्र को आत्मग्लानि मे देखकर भगवान उसे छमा कर देते है ,फिर इंद्र भगवान से अपने पुत्र अर्जुन की रक्कचा का वचन लेकर वापस चले जाते है । और इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक और लीला का विस्तार किया ।
krishna and kaliya
कालिया नाग कद्रू का पुत्र और पन्नग जाति का नागराज था। वह पहले रमण द्वीप में निवास करता था। लेकिन पक्षीराज गरुड़ से शत्रुता हो जाने के कारण वह यमुना नदी में रहने लगा था। जिस कारण यमुना नदी का जल बहुत ही विषैला हो गया था । यमुना नदी के जिस कुंड मे कालिया नाग रहता था उसका जल खौलता रहता और उस कुंड के ऊपर से निकलने वाले नभचर प्राणी भी उस विष की गर्मी से अचेत हो जाते थे ।
पूरे गोकुल मे इस बात की चर्चा हो रही थी की उस कालिया नाग को कैसे भगाया जाए पर सब विवश थे क्यो वो बहुत ही विषैला और शक्तिशाली था। भगवान श्रीक़ृष्ण को भी उसके बारे मे पता चला तो उन्होने उसे यमुना से भगाने का निश्चय किया ।
एक दिन कृष्ण अपने बाल सखाओ के साथ यमुना के तट पर गेद खेल रहे थे लेकिन मनसूखा को कोई गेद नहीं दे रहा था तो उसने कृष्ण से कहा की -कान्हा तुम मुझे गेद दो न कोई मुझे गेद नहीं दे रहा है । कृष्ण बोले-ठीक है मै तुमको गेद देता हू पर उसे पकड़ लेना । तब कृष्ण ने बड़ी ज़ोर से गेद को फेका तो मनसूखा गेद को पकड़ ना सका और गेद यमुना मे जा गिरी ।
इस पर सभी ग्वाले शोर मचाने लगे जिसने गेद फेकी है वही गेद लाएगा ऐसा सुनकर कृष्ण बोले ठीक है मै गेद लाता हू ऐसा कहकर कृष्ण कदंब के पेड़ पर चड़ गए ये देखकर सभी ग्वाल बाल चिल्लाने लगे की कृष्ण नीचे आ जाओ हमे गेद नहीं चाहिए परंतु कृष्ण कहा सुनने वाले थे कृष्ण ने यमुना मे छलांग लगा दी । कृष्ण यमुना की गहराई मे समाते चले गए और वहा पाहुच गए जहा कालिया नाग अपनी चारो पत्नियों के साथ रहता था । कालिया नाग की पत्नियों ने जब कृष्ण को देखा तो वे सब मन्त्रामुग्ध हो गई । जब कृष्ण कालिया नाग की तरफ बढ़ने लगे तो उन चारो मे से एक स्त्री बोलती है की -अरे अरे कहा चले आ रहे हो ,यहा क्या करने आए हो । कृष्ण बोले -मेरी गेद यहा गिर गई है उसे ही लेने आया हू । तब दूसरी स्त्री बोलती है की - अरे गेद क्या अगर यहा हाथी भी गिर जाए तो जलकर भस्म हो जाता है जाने तू कैसे बच गया जा वापस चला जा । कृष्ण बोले -बिना गेद लिए अगर मै वापस चला गया तो मेरे मित्र मुझ पर क्रोध करेगे । तभी चारो स्त्री बोलती है की -मित्रो के क्रोध से तो तू बच जाएगा परंतु नागराज के क्रोध से तुझे कोन बचाईगा । कृष्ण बोले -तुम बचाओगी न मैया ।
मैया सुनकर उन चारो के कानो मे अमृत सा घुल गया था मानो उन चारो को कृष्ण पर बड़ा ही प्रेम आ रहा था । वे बोली तेरा भाग्य अच्छा है जो नागराज सो रहे है जा चला जा मै तुझे बाहर छोड़ कर आती हू । तभी कृष्ण क्रोध मे बोले की -मुझ पर दया ना करो नागरानी अपने पति पर दया करो जिसने अपने विष से यमुना के जल को विषैला कर दिया है जिससे सारे पशु पक्छि मर रहे आज मे इसे यहा से निकालने आया हू ।
तभी कालिया नाग जाग जाता है और बड़े ही क्रोध मे बोलता है -कौन है जिसने हमारे आराम मे विघ्न डाला है । उधर पूरे गोकुल मे हाहाकार मच गया की कृष्ण यमुना मे कूद पड़े है नन्द बाबा ,यशोदा और बलराम सहित सारे गाँव वाले यमुना तट पर आ गए मैया का तो रो रो कर बूरा हाल था । मनसूखा बोला -कृष्ण यमुना मे कूदा और फिर निकला ही नहीं ।
यमुना के अंदर कालिया बोला के कौन है और ये अभी तक जीवित कैसे है । तभी उसकी एक पत्नी बोली की -ये अबोध बालक है ये खुद ही यहा आ गया है इसे छमा कर दे स्वामी ,कालिया बोला -छमा करना हमारे स्वभाव के विपरीत है । कौन हो तुम । कृष्ण बोले -कृष्ण । कालिया -कौन कृष्ण । कृष्ण बोले -वो कृष्ण जो काल का भी काल है जो तुम जैसे पापियो को मारने के लिए इस धरा पर अवतार लिया है हमे पहचानो कालिया ।
इतना सुनते ही कालिया नाग कृष्ण पर छपट पड़ा और दोनों मे ही बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ कालिया कृष्ण को अपनी कुंडली मे जकड़ लेता है और विष की फुँकार छोड़ता है तो कभी डसता है परंतु भगवान उसे युद्ध मे हरा ही देते है कृष्ण कालिया के फनो पर चड़ जाते है और अपने चरणों से बड़ी ज़ोर से दबाने लगते है जिससे कालिया नाग का बुरा हाल हो जाता है और वो उठ नहीं पाता है । तभी कालिया नाग की पत्नी कृष्ण से कहती है की -दया प्रभु दया इन्हे छोड़ दे ,मैया कहा है तो मैया को विधवा ना करे । कालिया नाग भी कृष्ण के चरणों के आगे नतमस्तक होकर छमा मांगने लगता है ।
कृष्ण कालिया नाग से बोले -छमा मिलेगी परंतु एक शर्त पर की तुम यमुना को छोड़ कर यमुना के रास्ते होकर समुद्र के मध्य स्थित रमण द्वीप पर जा कर निवास करो जो की महान सर्पो के रहने का एक स्थान है । इस पर कालिया नाग बोला की -हे नाथ ;पहले मै रमण द्वीप पर ही रहता था परंतु एक दिन आपके वाहन गरुड मेरे प्राण लेने के लिए मुझ पर आक्रमण किया तो उनके भय से मै अपनी पत्नियों के साथ यमुना मे आ कर छुप गया आप तो जानते है की सौरंग ऋषि के श्राप के कारण गरुड यहा नहीं आ सकते है ।
garun |
कृष्ण बोले -नहीं नागराज अब गरुड तुम्हें कुछ नहीं करेगे क्योकि तुम्हारे ऊपर हमारी चरण धूलि है इसको देख कर गरुड तुम्हें मारने की बजाए इस चरण धूलि को नमसकर करेगे । अब हमे ऊपर ले चलो ।
जब कृष्ण को कालिया नाग ऊपर लाता है तो मैया सहित सारे गोकुल वासी मारे खुशी के पागल हो जाते है और फिर कृष्ण कालिया नाग के ऊपर नाचने लगते है उनके साथ साथ सारे गोकुल वाले भी नाचने लगते है और आकाश से देवता फूल बरसाने लगते है । उसके बाद कालिया नाग कृष्ण को तट पर उतार कर यमुना जी से सदा के लिए चला जाता है । और इस तरह भगवान ने अपनी एक और लीला की ।
krishna and fruit
एक समय की बात है एक बार गोकुल मे एक फल बेचने वाली थी वो फल बेच कर अपना जीवन यापन कर रही थी और प्रभु की भक्ति करती थी एक बार वो सारा दिन गाँव मे घूमती रही सुबह से शाम हो गई परंतु उसकी बोहनी भी ना हुई और वो जिस किसी से भी पूछती की बेटा फल ले लो ताजे और मीठे है तो लोग बोलते ना माई आज जरूरत नहीं है । बहुत ही दुखी और परेशान हो गई थी की शायद आज उसे भूका ही सोना ना पड़ जाए। यही विचार अपने मन मे लिए वो आगे बढ़ती जा रही थी और बोलती जा रही थी की -फल ले लो फल ताजे ताजे फल ले लो । यही बोलते बोलते वो फल बेचने वाली नन्द बाबा के भवन के पास जा पाहुची और अपनी फलो से भरी टोकरी को अपने सर से उतारा और वही बैठ कर अपना पसीना पोछने लगी और ऊपर आसमान की तरफ देख कर बोली की -आज भूका ही रक्खो गे प्रभु ।
फिर वो भवन के अंदर देखने लगी की शायद यशोदा रानी देख जाए तो कुछ फल ले ले परंतु वहा कोई नहीं था । तो उस फल बेचने वाली ने कृष्ण को पुकारा -लल्ला अरे ओ लल्ला कहा हो तुम फल ले लो । कुछ देर ऐसा पुकारने के बाद कृष्ण भवन के बाहर आए सर पर मोर मुकुट पैरो मे पैजनिया कमर मे कमर बंध और उसमे एक छोटी और प्यारी से मुरली धारण किए हुए अपने छोटे छोटे कमल चरणों के द्वारा उस फल बेचने वाली के पास आए और बड़े ही प्यार से बोले -हे माई क्या काम है ,मैया तो है नहीं । वो फल बेचने वाली कुछ देर तक प्रभु को एक टक देखती रही फिर उस फल बेचने वाली ने कहा की लल्ला तुझको तो देखकर ही मेरी सारी थकान जैसे गायब ही हो गई है । ऐसा क्या जादू है रे तुझमे ।
कृष्ण बोले -मै कोई जादूगर थोड़े ही हु मै तो अपनी मैया का लल्ला हु । परंतु तुमको क्या चाहिए । तो उस फल बेचने वाली ने कहा -फल लायी हु थोड़े से लो तो आज भूका ना सोना पडे । उस फल बेचने वाली की बात सुनकर कृष्ण बोले -मैया तो है नहीं । इस पर उस फल बेचने वाली ने कहा की -मैया नहीं है तो क्या हुआ तुम ही ले लो । तब कृष्ण बोले -पर तुम तो धन मगोगी और धन तो मेरे पास है नहीं । तो उस फल बेचने वाली ने कहा -अगर धन नहीं है तो थोड़ा सा अनाज ही दे देना रे ।
कृष्ण दौड़ कर भवन के अंदर गए और अपनी अंजुली मे अनाज भर कर चल दिये कृष्ण के हाथ छोटे है तो रास्ते मे अनाज गिरता भी जा रहा था और जब कृष्ण उस फल बेचने वाली के पास पहुचे तो उनके हाथो मे सिर्फ अनाज के कुछ ही दाने बचे थे । उस फल बेचने वाली ने कहा -कितना अनाज लाये हो लल्ला । तो कृष्णा बोले -वो मेरे हाथ छोटे है ना तो सारा अनाज रास्ते मे ही गिर गया अब ये ही बचा है ।
फल बेचने वाली ने कहा -कोई बात नहीं ये ही बहुत है उसने सारे फल कृष्ण को दे दिये और वो अनाज के दाने को अपनी टोकरी मे रख कर जाने लगी और बोली की -आज बड़ा ही अच्छा सौदा हुआ है हा बड़ा ही अच्छा सौदा हुआ है । और जब वो फल बेचने वाली अपने घर पाहुची तो उसने अपनी टोकरी मे देखा तो उसकी आंखे फटी की फटी रह है उसकी आश्चर्य का कोई ठिकाना ही न रहा जो अनाज के दाने कृष्ण ने दिये थे वो अब बहुमूल्य रत्नो और हीरे मोती मे बादल गए थे जिनसे पूरी टोकरी ही भरी थी । ये देख कर उस फल बेचने वाली ने कृष्ण को हाथ जोड़कर धन्यवाद किया ।
इस प्रकार प्रभु ने उस फल बेचने वाली पर कृपा की और अपनी एक और लीला का विस्तार किया ।
mouth of krishna
mouth of krishna |
भगवान् कृष्ण अपनी लीला का विस्तार करे जा रहे थे और कई असुरो का वध भी कर चुके थे। इसी बीच एक दिन मैया भगवान् को लेकर यमुना के किनारे अपनी सखियों के साथ स्नान करने पहुंची। मैया ने कृष्णा को एक जगह पर बैठाया और खुद स्नान करने चली गई। भगवान् कृष्ण जो अनंत है वो मिटटी में बैठे है। कुछ सखिया यशोदा से पूछ रही है की -क्यों रे यशोदा आज कन्हा को भी ले आयी। तो यशोदा बोली -क्या करू ये है ही इतना शैतान कल माखन का बड़ा सा गोला खाने जा रहा था अपच हो जाती तो। तभी दूसरी सखी बोली-अरे ग्वाले का बालक है माखन मिश्री नहीं खायेगा तो क्या खाइयेगा। तभी भगवान् अपनी तोतली बोली में बोले -मैंने माखन नहीं खाया। तो मैया बोली -आ आ ह ह मैंने माखन नहीं खाया झूठा कही का। यशोदा कितनी भाग्यशाली है की परमपिता परमेश्वर को भी डांट रही है। यशोदा ,कृष्ण से बोलती है की -देख कान्हा चुपचाप यही बैठ मै अभी स्नान करके आती हूँ। तभी एक गोपी यशोदा को ताने देते हुए बोली -अरे कान्हा तेरी मैया पहली बार तुझे घाट पर लायी है और बंदी बना कर रख दिया है अगर मेरी माँ ऐसा करती तो मै भी मटकी फोड़ती। तो मैया बोलती है की -अरे इसे ऐसे सीख मत दे ये प्रतिदिन एक मटकी फोड़ सकता है। तभी एक और सखी बोलती है की -अरे तो क्या हुआ अगर प्रतिदिन एक मटकी फोड़ता भी है तो नन्द बाबा की कोई हानि नहीं होने वाली।
यशोदा यमुना जी में स्नान करने के लिए प्रवेश करती है और यमुना जी से प्राथना करती है की -हे यमुना मैया मेरे लाल का कल्याण करना ,गोकुल का कल्याण करना सारे विश्व का कल्याण करना। इधर मैया स्नान कर रही है और उधर कृष्ण मिटटी से खेल रहे है तभी वहाँ पृथ्वी माता प्रकट होती है और भगवान् के चरणों को छूकर प्रणाम करती है और कहती है की - हे प्रभु; अपनी दासी पृथ्वी का प्रणाम स्वीकार करे। आज आपने पहली बार अपने दिव्य चरण मेरे वछ स्थल पर रक्खे है आज तक आप पलने में या माता की गोद में ही रहते थे। यमुना जी ने तो आपके जन्म के समय में ही श्री चरणों को स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया था लेकिन मुझे राह तकनी पड़ी। आज आपने मुझ पर कृपा की है मै तो ख़ुशी के मारे पागल हुई जा रही हूँ मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है की मै आपको क्या दू ,मेरे पास तो केवल मिटटी और कंकड़ ही है। ये कह कर धरती माँ के आँखों में अश्रु आ गए।
तभी भगवान् विष्णु \प्रकट हुए और बोले की -हे धरती माता सारे विश्व में तुम जैसा छमाशील और कोई नहीं है। तुम्हारी धरती पर साधु जन भी विचरते है और महा पापी भी अपने क्रूर चरण धरती पर रखकर चलते है। कुछ लोग तुम्हारी धरती पर पुण्य कर्मो के फूल खिलाते है। और कुछ तेरी धरती पर पाप का लहू बहाते है। परन्तु तुम सबको सहन करती हो सबको अपनी गोद में धारण करती हो। अपना सीना फाड़ कर सबके लिए अन्न देती हो सबका भरण पोषण करती हो। माँ की तरह ही अपने सभी बालको का कल्याण ही करती हो किसी का अहित नहीं करती हो इसलिए हे माँ तेरी ये मिटटी इतनी पवित्र है ,इससे अच्छी भेट मेरे लिए और क्या होगी अतः मै इसे ही नैवैद्य समझकर स्वीकार करता हूँ।
dharti mata |
इसके बाद भगवान् कृष्ण ने बड़े ही प्रेम से मिटटी खाना शुरू किया और खूब मिटटी खायी।तभी एक गोपी कृष्ण को मिटटी खाते हुए देख लेती है और जा कर यशोदा से कहती है की -यशोदा तेरा लल्ला तो मिटटी खा रहा है। तभी यशोदा कृष्ण के पास जाती है और देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है तब मैया अपने पल्लू से कृष्ण का मुँह साफ़ करती है की एक गोपी बोलती है की अरे बाहर से क्या साफ करती है मुँह के अंदर तो देख कितना बड़ा मिटटी का गोला खाया है। इतना कहकर सारी गोपिया वहा से चली जाती है तो मैया कृष्ण से पूछती है की मिटटी क्यों खाई खोल मुँह ,तो कृष्ण बड़े ही प्यार से बोलते है की -मैया मैंने मिटटी नहीं खाई।
तो मैया बोलती है -झूठा कही का ,मिटटी नहीं खाई खोल मुँह। तब भगवान् को विवश होकर अपना मुँह खोलना पड़ा तो यशोदा भगवान् के मुँह में देखती है तो उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रह जाता है वो देखती है की सारा भूमण्डल ,सारे गृह नक्छत्र तारे ,धरती आकाश पाताल सागर नदिया तीनो लोक ,पहाड़, ब्रम्हा ,विष्णु, महेश सब के सब मुँह के अंदर है यहाँ तक की वो अपने आप को भी और कृष्ण को भी कृष्ण के ही मुँह में ही देख रही है उसकी मति भ्रमित हो जाती है।
तभी वहाँ भगवान् विष्णु प्रकट होते है और यशोदा को सत्य का वास्तविक ज्ञान कराते है उसके बाद अपनी माया का पर्दा डालकर वहाँ से अन्तर्ध्यान हो जाते है। तब यशोदा अपने होश में आती है तो देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है उसे कुछ भी याद नहीं रहता है वो हाथ जोड़कर ईश्वर से प्राथना करती है की उसके पुत्र की रकछा करे और फिर कृष्ण का मुँह साफ़ करके अपने साथ घर ले आती है।
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यमला अर्जुन के पूर्व जन्म की कथा
यमला अर्जुन पूर्व जन्म में धन के देवता कुबेर के पुत्र थे और इनका नाम नलकुबर और मणिग्रीव था। इनके पास धन,सौंदर्य और शक्ति थी। ये सब उनको बिना मेहनत किये अपने पिता से मिला था अतः उनको इन सब पर बहुत घमंड था। जो भी वस्तु बिना मेहनत के प्राप्त होती है जीव उसका मूल्य नहीं समझता है। और उसमे अहंकार आ जाता है। देवर्षि नारद के श्राप के कारन ये दोनों नन्द बाबा के प्रांगढ़ में एक साथ अर्जुन के पेड़ बन गये थे इस कारन इनका नाम यमलार्जुन पड़ा।
देवर्षि नारद द्वारा नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप देना
एक दिन नलकुबर और मणिग्रीव मन्दाकिनी के तट पर सुन्दर वातावरण के बीच नग्न होकर सुरापान करके नग्न स्त्रियों के साथ गंगा जी में स्नान कर रहे थे। जैसै हाथी हथनियो के साथ जल क्रीड़ा करता है वैसे ही। तभी वहाँ देवर्षि नारद प्रभु की भक्ति में नारायण नारायण करते हुए विचरण कर रहे रहे थे नारद की जी विणा जहा भक्ति रस को बड़ा रही थी वही नलकुबर और मणिग्रीव के भोग रास को भी बड़ा रही थी। एक ही समय दो लोगो के लिए विपरीत होता है। नलकुबर और मणिग्रीव दोनों नग्न थे और उनके साथ स्नान कर रही स्त्रियाँ भी नग्न थी। तभी ठीक उसी स्थान से देवर्षि नारद निकले तो देवर्षि नारद को देखकर स्त्रियाँ बहुत लज्जित हुई और उन्होंने तत्काल ही अपने वस्त्रो को पहन लिया;किन्तु ये दोनों वैसे ही पेड़ो की तरह खड़े रहें और देवर्षि नारद का उपहास उड़ाने लगे। देवर्षि नारद को उन दोनों पर क्रोध आ गया वे बोले की कहाँ ये दोनों लोकपाल के पुत्र और कहाँ इनकी ये दशा इनको तो ये भी भान नहीं की ये दोनों निर्वस्त्र है। देवर्षि नारद ने नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप दे दिया -तुम दोनों धन ,पद और शक्ति के वशीभूत होकर अंधे होकर पेड़ो की तरह खड़े हो अतः जाओ पेड़ बन जाओ। श्राप को सुनकर उन दोनों का नशा तुरंत ही दूर हो गया नलकुबर और मणिग्रीव पश्चाताप करते हुए नारद जी के पास आये और अपनी गलती की छमा माँगी। तब नारद जी बोले -मेरा शाप टल तो नहीं सकता किन्तु मेरी कृपा से तुम दोनों को वृछ योनि में भी भगवान् की स्मृति बनी रहेगी। देवताओ के सौ वर्ष बीत जाने पर जब भगवान् विष्णु इस धराधाम पर कृष्णा अवतार लेगे तब उनके द्वारा तुम दोनों का उद्धार होगा और भगवान् की असीम भक्ति प्राप्त होगी। फिर नलकुबर और मणिग्रीव को गोकुल में वृछ योनि प्राप्त हुई।
krishna and yashoda
कृष्णा भगवान् कब और कैसी लीला करते है ये कोई नहीं जानता गोकुल में सब आनंदमय जीवन यापन कर रहे थे प्रभु का नाम ले रहे थे। कृष्णा जी भी गलियों में घूम रहे थे वे किसी की मटकी फोड़ते तो किसी का माखन चुराते ऐसा ही लीला करते प्रभु अपने घर को पधारे तो देखा की मैया माखन निकाल रही है। छोटे से बाल गोपाल जिनके पैरो में पैजनिया है कमर में कमरबंध है हाथो में छोटी से मुरली हैं सर पर मोर मुकुट है बालो में भी थोड़ी से मिटटी लगी है ,दौड़ के आके मैया के गले लग जाते है और मैया से बाल गोपाल बोलते है की -मैया माखन दो ना। तो मैया कहती है -जा जा के कही से चुरा के खा ले। उस समय नन्द बाबा इंद्रा की पूजा में लगे थे हुए बलराम सहित अन्य गोपाल भी यज्ञ देखने चले गए थे। कृष्णा मैया को बड़े प्यार से गले लगा के बोलते है की -मैया तू कितनी प्यारी है मेरा कितना ख्याल रखती है तू। मैया भी कृष्णा को अपनी गोद में ले कर बड़ा प्यार करती है और कहती है -अरे तू है ही इतना प्यारा। धन्य है यशोदा ,जो परमात्मा बड़े बड़े ऋषि मुनि के पास नहीं आता जिनको पाने के लिए लोग बड़ी कठोर तपस्या करते है उन परब्रम्ह परमात्मा को यशोदा अपनी गोद में लिए है ये सारा दृश्य देवता आकाश से देख कर भाव विभोर हो रहे थे। तभी कृष्णा ने मैया से पुछा की -मैया ये बताओ तुमको सारे जग में मुझसे प्यारा कोई और लगता है क्या। मैया कहती है -नहीं ,तू ही मुझे सबसे प्यारा लगता है। ये सुनते ही भगवान् मैया के गले लग जाते है।
तभी मैया को याद आता है की उसने रसोई घर में चूल्हे पर दूध चढ़ाया था और अब तक तो वो उबलने वाला होगा ऐसा विचार मन में आते ही मैया कृष्णा को अपनी गोद से तत्काल उतार देती है और कृष्णा से बोलती है की मैं अभी दूध का पात्र चूल्हे से उतार कर आती हु और दौड़ कर रसोई घर की ओर जाती है।
ऐसा देखकर कृष्णा को बड़ा ही गुस्सा आता है और कहते है की मैया बोलती है की मैं उसे सबसे प्यारा हु परन्तु उसने दूध के लिए मुझे छोड़ दिया। संसार में भी ऐसा ही होता है संसारी दूध (भौतिक सुख )के लिए भगवान् को भूल जाता है और उसे छोड़ देता है। फिर कृष्णा ने एक डंडा उठाया और वहाँ रखी सारी माखन,दूध और दही की हाँडीयो को फोड़ दिया।
krishna and yashoda |
जब मैया वापस आती है तो सारा दूध ,दही और माखन को ऐसे भूमि पर गिरा देखती है तो बहुत ही क्रोधित होती है। वो कृष्णा से बोलती है की -क्यों रे ;ये सब तूने किया है। कृष्णा मुस्कुरा के हामी भरते है। मैया फिर एक छड़ी ले के कृष्णा को मारने के लिए कृष्णा के पास आती है। भगवान् घर के बाहर भागते है। और मैया छड़ी ले के भगवान् के पीछे पीछे दौड़ती है। और बोलती है -रुक जा कृष्णा नहीं तो बहुत पिटेगा। कृष्णा जी सोचते है की -अगर कोई महादैत्य होता उसका कोई महाभयंकर अस्त्र होता तो उसको पल भर में ही मार देता परन्तु ये तो माँ की छड़ी है पड़ेगी तो जोर से लगेगी।
जो भगवान् सारे असुरो को पल भर में मार देते है वही आज मार के डर से आगे आगे भाग रहे है ये सब देखकर देवता भी आनंदित हो रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैया कृष्णा को पकड़ पाती है परन्तु जैसे ही छड़ी से मारने को अपने हाथ उठाती है तो मैया को दया आ जाती है और छड़ी को छोड़कर रस्सी से बांधने को सोचती है। मैया वही पास में पड़ी रस्सिया उठाती है और एक ऊखल में बाँधने लगती है और कहती है की -आज सारा दिन धूप में रहेगा तो तेरी अकल ठिकाने आ जायगी।
मगर जैसे ही मैया कृष्णा को बांधने लगती है तो रस्सी छोटी हो जाती है। ऐसा कई बार होता है।सबके बंधन
खोलने वाले को मैया आज बाँधने चली है। जब मैया हार जाती है तो बोलती है -क्यों रे ,मुझे क्यों सता रहा है। फिर कृष्णा आराम से अपने आप को ऊखल से बँधवा लेते है।
फिर कुछ गोपिया कहती है -हे नंदरानी तुम्हारा ये बालक जब हमारे घर में आकर हमारे बर्तन भाड़े भोड़ता है तो हम तो इसे कुछ नहीं कहती और तुम कुछ पात्रो के टूटने पर इस कोमल से बालक को ऊखल से बाँध रही हो तुम बड़ी ही निर्दई हो नंदरानी। परन्तु यशोदा उनकी बातो का कोई उत्तर नहीं देती है और गोपिया भी वहाँ से चली जाती है। और यशोदा भी भवन के अंदर चली जाती है।सारे प्राणियों का बंधन चिंतन मात्र से ही खोल देने वाले भगवान् आज खुद बंधन में बंधे है।
यहाँ कृष्णा ऊखल से बंधे खड़े है तभी उनकी नज़र वहा लगे दो यमलाअर्जुन के पेड़ो पर पड़ती है जो की पास पास लगे हुए थे। कृष्णा ने सोचा की क्यों न मैं इस ऊखल को इन यमलाअर्जुन पेड़ो के मध्य में फसा कर खीचू ताकि रस्सी टूट जाये। ऐसा विचार करके कृष्णा ऊखल को गिरा कर घसीटकर उन यमलार्जुन पेड़ो की ओर जाने लगते है।
जब कृष्णा उन यमलाअर्जुन के पेड़ो के समीप पहुंचते है तो उन पेड़ो की मनो दशा का वर्णन कौन कर सकता है। पेड़ो में भी जीवन होता है और इनको तो पूर्व के देवजीवन से अब तक की सारी घटनाये याद है। सौ देव वर्षो के लम्बी अवधि के बाद अपने उद्धार की घडी और भगवान् श्रीकृष्ण को समीप देखकर उनके अंतर्मन में क्या क्या भाव आ रहे थे ये तो या तो वे खुद जानते थे या फिर जगदीश्वर श्रीकृष्ण।
फिर कृष्णा उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य में प्रवेश करते है। भगवान् जिसके अंतर्मन में प्रवेश करते है उसमे क्लेश और जड़ता नहीं रहती है। और फिर ऊखल को उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य फसा कर जोर से रस्सी को खींचा बस फिर क्या था वे दो विशाल यमलार्जुन पेड़ भारी शब्द करते हुए भूमि पर गिर पड़े। और वे इस तरह गिरे की वहाँ पर किसी भी वस्तु या प्राणी को किसी भी प्रकार की कोई छति ना हुई।वे तो कृष्णा भक्त थे भला वे किसी को छति कैसे पंहुचा सकते थे।
यहाँ पर कुछ विद्वानों का कहना है की भगवान् की आज्ञा से देवी योगमाया ने यमलार्जुन पेड़ो की गिरने की ध्वनि को अवरुद्ध कर दिया था ताकि मैया यशोदा तथा गांव वाले ना आ जाये और यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार में बाधा उत्पन्न हो अत:जब तक यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार ना हो गया तब तक योगमाया ने अपना प्रभाव बनाये रक्खा।
जहा से वे यमलार्जुन पेड़ गिरे थे उस स्थान से दो दिव्य ज्योति प्रकट हुई उस ज्योति में से दिव्य वस्त्रो और आभूषणों से सज्जित दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए जो वास्तव में नलकुबेर और मणिग्रीव थे।
नलकुबेर और मणिग्रीव ने भगवान् के परिक्रमा की और उनके चरण स्पर्श किये। तथा उनकी कई प्रकार से स्तुति की तब भगवान् कृष्णा हसे और बोले -मै तो सदा मुक्त रहता हु परन्तु जीव मेरी स्तुति तब करता है जब वो बंधन में बंधा होता है किन्तु आज स्तिथि विपरीत है मैं बंधा हु और मुक्त जीव मेरी स्तुति कर रहा है। तुम दोनों को मेरी असीमित भक्ति प्राप्त हो चुकी है तुम दोनों आज नारद जी के श्राप से मुक्त हुए अब तुम दोनों अपने लोक को प्रस्थान करो।
नलकुबेर और मणिग्रीव के वहाँ से प्रस्थान करते ही योगमाया ने अपना प्रभाव समाप्त किया और फिर सबको पेड़ो के गिरने की ध्वनि सुनाई पड़ी यशोदा जी भाग कर बाहर आई और कई गांव वाले और बालगोपाल वह एकत्रित हो गए नन्द बाबा भी वहाँ आ गए कोई बोला की ये इतना बड़ा पेड़ कैसे गिरा ना आंधी आई और ना ही इसकी जड़े खोखली है। तभी एक बाल गोपाल बोला -मैंने देखा कृष्णा ने इस ऊखल से ही इन पेड़ो को गिराया है और इसमें से दो दिव्या आत्माये बाहर आई और कृष्णा के पैर छूकर आकाश में चली गई।
सबने उस बालगोपाल की ओर संदेह की दृस्टि से देखा और फिर उसकी बातो को अनसुना कर दिया। किसी किसी को संदेह भी हुआ की कृष्णा को मारने कई असुर आ चुके है परन्तु ये बड़ा ही भाग्यशाली है। फिर नन्द बाबा ने कृष्णा को अपनी गोद में उठाया और भवन के अंदर चले गए और गांव वाले भी अपने अपने घर को चले गए।
aghasur koun tha
aghasur koun tha |
अघासुर कौन था
पूर्व जन्म में अघासुर शंखासुर का पुत्र था उसका नाम था अघ। अघ कामदेव के सामान ही बड़ा ही सुन्दर और रूपवान था। उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा ही घमंड था। एक दिन अघ वन में विचरण कर रहा था तभी वहाँ से ऋषि अष्टावक्र निकले। उनका शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था इस कारन वे बड़े कुरूप दिखते थे इसलिए उनका नाम अष्टावक्र पड़ा। उनको देखकर अघ उनका बड़ा ही उपहास किया। अघ बोला -क्या सूंदर चाल है आपकी ऐसी चाल को देखकर तो स्वर्ग की अप्सराए भी लज्जित हो जाती होगी। परन्तु ऋषि अष्टावक्र अघ की बातो को अनसुना कर दिया और आगे बढ़ने लगे। परन्तु अघ मान नहीं रहा था। फिर अघ बोला -अरे मुनि सुनिए ,मैंने कहा ये कुसुमलता की बेल की भांति बलखाती ये सूंदर और लचकदार कमर किस दूकान से लाये हो भाई हमें भी उसका पता बता दो। ऐसा कहकर अघ जोर जोर से हसने लगा। परन्तु ऋषि अष्टावक्र ने फिर भी उसकी बातो को अनसुना कर दिया। परन्तु अघ बार बार उनका उपहास कर रहा था। ऋषि अष्टावक्र क्रोधी स्वाभाव के नहीं थे परन्तु गलती की सजा मिलनी चाहिए। फिर ऋषि अष्टावक्र ने अघ को श्राप दिया की -ऐसा शरीर मुझे भगवान् की दुकान से मिला है। ऐसी लचकदार कमर और टेड़े मेढ़े शरीर भगवान् धरती पर रेंगने वाले सर्पो को देता है जा तू सर्प बन जा।
फिर अघ को अपने कर्मो पर पछतावा होता है और वो ऋषि अष्टावक्र से बोलता है -छमा ऋषिवर ; छमा मैंने सिर्फ विनोदवश होकर आपका अपमान कर दिया मुझे छमा करे। ऋषि अष्टावक्र बहुत ही दयालु थे वे बोले -मेरा श्राप तो टल नहीं सकता परन्तु जा जब द्वापर के अंत में भगवान् विष्णु कृष्णा अवतार लेगे तो उनके हाथो तेरी मुक्ति होगी। फिर द्वापर युग में वही अघ ,अघासुर बन कर कृष्णा को मारने आया था।
Aghasura vadh
श्री कृष्णा भगवान् ने कंस द्वारा भेजे गए बहुत से असुरो को यमराज के पास पंहुचा दिया था। कंस को पहले ही ये विश्वास था की कृष्णा ही देवकी का आठवां पुत्र है। मगर कृष्णा को मारा कैसे जाये और किसे भेजा जाये इसी उधेड़बुन में वो अपने राजदरबार में परेशान बैठा था और अपने मंत्रियो से विचार विमर्श कर रहा था। लेकिन कोई उसे सही मार्ग नहीं बता पा रहा था तभी उसे अघासुर की याद आयी जो पूतना और बकासुर का भाई भी था। कंस ने तुरंत अघासुर को पुकारा और दुसरे ही पल वह अघासुर प्रकट हो गया था वो देखने में एक बहुत विशाल अजगर था और बड़ा ही भयानक थ। अघासुर बड़ा ही प्रसन्न हुुआ की महाराज कंस नेे उसे याद किया ।अघासुर बोला -हे महाराज अगर आप मुुझे ना भी बुलाते तो भी मैं आ जाता मैं भी उस कृष्णा से अपने भाई और बहन की मृत्यु का बदला लेना चाहता हु। कंस बोलै -वो बालक बहुत ही मायावी है। क्या तुम उसे मार सकोगे ?अघासुर बोला -मै वो गलती नहीं करूँगा जो मेरे भाई ने की थी। अपने शिकार को मुँह में ले के उगलने की मै तो पूरे गोकुल को ही अपने मुँह में समाहित कर सकता हु।और वैसे भी सर्प की कुंडली में जो जकड गया उसे तो देवता भी नहीं छुड़ा सकते है। मुझे जाने की आज्ञा दे। कंस बहुत ही प्रसन्न होता है और उसे जाने की आज्ञा देता है।
अघासुर का गोकुल जाना
अघासुर भी बहुत मायावी था वो अपने शरीर का आकर को मनचाहा बड़ा सकता था परन्तु कृष्णा तो मायापति थे उनसे भला कुछ कैसे चुप पाता।अघासुर गोकुल आता है और जहा कृष्णा सहित सारे बाल गोपाल गैया चराते थे वही कही पर जाकर अपने शरीर को बड़ा करके और अपने विशाल मुँह को खोल कर स्थिर हो जाता है। देखने में ऐसा लगता मानो कोई बहुत बड़ी गुफा हो। और फिर अघासुर कृष्णा की राह देखने लगता है।
कृष्णा द्वारा अघासुर का वध होना
दुसरे दिन कृष्णा और मनसुखा ,श्रीदामा वा दुसरे बालगोपाल गैया चराने जाते है और खेलते है खेलते खेलते वे थोड़ा आगे निकल आते है तो वे सब एक गुफा को देखकर चौक पड़ते है। मनसुखा बोलता है -अरे ये गुफा कहा से आ गई पहले तो यहाँ कोई गुफा नहीं थी। यहाँ तो बहुत घनी झाडिया थी। श्रीदामा कहता है -अरे कल रात आंधी आयी थी ना उड़ गई हो गी । मनसुखा बोलता है -हा ये हो सकता है चलो चल कर देखते है। फिर सारे ग्वाले उस गुफा में जाते है जो वास्तव में अघासुर था। अंदर जाकर मनसुखा कृष्णा से कहता है -कृष्णा अंदर आओ देखो कितनी लम्बी सुरंग है। कृष्णा जी तो सर्वज्ञाता है वो तो सब जानते थे परन्तु अपनी लीला को विस्तार देने के लिए वे अंदर गए। श्रीदामा कहता है -ये गुफा कितनी ठंडी है आज से हम यही भोजन किया करेंगे।
तभी अघासुर अपना मुख बंद कर लेता है। फिर सारे ग्वाले बिन जल के मछली की तरह तड़पने लगते है और कृष्णा को जोर जोर से पुकारने लगते है और प्राणवायु न मिलने के कारन वे बेहोश हो जाते है। फिर भगवान् कृष्णा अपना शरीर का आकर बड़ा करके अघासुर के मुख को खोलते है और फिर अघासुर के मुख को तोड़कर उसका वध कर देते है। ऐसा होते ही आकाश से सरे देवता पुष्प वर्षा करते है और मंगल गीत गाते है। फिर सारे ग्वाल बाल होश में आ जाते है तो वे देखते है की अघासुर मारा पड़ा है वे सब कृष्णा से पूछते है की ये सब किसने किया तो भगवान् बोलते है की ईश्वर ने हम सब को इस अघासुर से बचाया है। इसके बाद सब अपने घर की ओर चल पड़ते है
Bakasur vadh
bakasur vadh |
अपने इतने असुरो को काल के गाल में समाता देखकर कंस बहुत हीदुखी हो गया था उसे अब पूरा भरोसा हो गया था की कृष्णा ही देवकी का वो आठवां पुत्र है जो उसका काल बन कर आया है। कंस अब कृष्णा को समाप्त करने की कोई और योजना बनाने लगा था की तभी उसे बकासुर की याद आयी जो की उसका परम मित्र था। उसने तत्काल ही बकासुर को बुलाया और कुछ समय बाद बकासुर कंस के सामने था। बकासुर बहुत ही विशाल बगुले के सामान एक पछी था जिसकी चोच बहुत ही बड़ी थी। कंस को परेशान देखकर बकासुर ने पुछा-हे मित्र तुम्हारी इस चिंता का क्या कारन है जिसने तुमको इतना विचलित कर रक्खा है।"तब कंस बोला -हे मित्र मेरी परेशानी का कारन मेरी बहन देवकी का आठवां पुत्र कृष्णा है जो की मेरा काल है वो एक छोटा बालक है परन्तु बहुत ही मायावी है उसने मेरे बहुत से असुरो को मौत की नींद सुला दिया है।
इतना सुनते ही बकासुर बड़ी जोर से हँसा और बोला - एक सामान्य से बालक ने आपको इतना परेशान कर दिया। अरे अगर आप मुझे पहले ही बुला लेते तो आपको अपने इतने असुरो को खोना ना पड़ता। तब कंस ने कहा -अरे मुर्ख वो कोई सामान्य बालक नहीं है वो बहुत ही मायावी है। इतना सुनते ही बकासुर बोलता है की -क्या मुझसे भी बड़ा है। आप मुझे आज्ञा दे मैं अभी जाकर उसको यमराज के पास पहुंचा देता हु। कंस बकासुर की बात सुनकर बड़ा ही खुस होता है और उसको जाने की आज्ञा देता है।
कृष्णा द्वारा बकासुर का वध होना
उधर वहा गोकुल में सवेरा हुआ है मैया कृष्णा को उठा रही है और बोल रही है की -कान्हा उठो गैया चराने नहीं जाना है क्या। कृष्णा जी उठते है और बलदाऊ और ग्वाल बालो के साथ चले जाते है गैया चराने। आगे आगे कृष्णा जी बंसी बजाते हुए चल रहे है और पीछे सारी गैया और ग्वाल बाल। गैया चराते हुए दोपहर हो गई सबने भोजन किया। कृष्णा वही पेड़ की छाया में लेटकर आराम करने लगे सारी गाये सामने चर रही थी। कुछ ग्वालबाल यमुना के किनारे पानी पीने चले गए। वे पानी पीने बैठे ही थे की एक भयंकर प्राणी को देखकर चीत्कार कर उठे। वह प्राणी था तो बगुले के आकार का परन्तु उसकी चोच बहुत बड़ी थी और उसका शरीर भी बहुत बड़ा था। वास्तव में वो बकासुर था। ग्वालबालो की चीत्कार सुनकर कृष्णा भी उसी ओर दौड़ पड़े।
कृष्णा ने देखा की एक विशाल बगुला यमुना जी के किनारे खड़ा है और सारे ग्वालबाल एक साथ दूर डरे खड़े है। तब कृष्णा बोले -डरो नहीं ये कुछ नहीं करेगा मैं अभी इसके पास जाता हु। इतना कहकर कृष्णा बकासुर के पास जाते है और उसके आस पास घुमते है। कृष्णा ग्वाल बालो से बोलते है -देखा मैंने कहा था न की ये कुछ नहीं करेगा।इतने में ही बकासुर कृष्णा को झपटकर निगल लेता है। बलराम समेत सभी ग्वालबालों ने जब ये देखा की बकासुर ने कृष्णा को निगल लिया है तो वे सब अचेत हो गए। कृष्णा तो लोकपितामह ब्रम्हा के भी पिता है। जब वे बकासुर के तालु के नीचे पहुंचे तो वे उसका तालु आग के सामान जलाने लगे और फिर बकासुर ने अपना मुख खोल दिया और कृष्णा बाहर आ गए।
फिर बकासुर ने अपनी कठोर चोच से कृष्णा पर प्रहार करने लगा वो बार बार प्रहार कर रहा था और कृष्णा उससे बच रहे थे मानो वे बकासुर के साथ क्रीड़ा कर रहे हो। बकासुर कृष्णा पर प्रहार करने के लिए झपटा ही था की कृष्णा ने उसके दोनों ठोर पकड़ कर चिर दिया और बकासुर का अंत कर दिया। ये देखकर सभी देवता खुश हुए और कृष्णा पर पुष्प वर्षा की। सारे ग्वाले ये सब देखकर आचम्भित हो गए। बलराम सहित सारे ग्वाले भगवान् के पास गए और सबको गले लगाया।फिर सब सारी गायो को हाँककर अपने अपने घर चले जाते है। फिर सारे गोकुल में इस बात की चर्चा होने लगी की कृष्णा को जो भी मारने आया वो खुद ही मारा गया क्या कृष्णा कोई देवता है। माँ यशोदा और नन्द बाबा भी कृष्णा से यही पूछते तो कृष्णा मुस्कुरा कर मैया के गले लग जाते है और बोलते है की मै तो आपका कान्हा हूँ मैया। फिर मैया भी कृष्णा की बात को सच मानकर उनको गले लगा लेती है।
vatsasura and krishna
vatsasura and krishna |
कैसे किया भगवान श्री कृष्ण ने वत्सासुर का संहार - वृंदावन में प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा फैला हुआ था. चारों और फलों से लदे वृक्ष थे. जगह- जगह पर कुंज बने हुए थे. प्रत्येक डाल पर पक्षी अपने मधुर स्वरों से वातावरण को गुंजित कर रहे थे. वृंदावन का नजारा बहुत ही भव्य था. वृंदावन में गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी और भी सुंदर बना रहे थे. भगवान श्री कृष्ण प्रतिदिन वन में अपने साथियों के साथ गायों को चराने के लिए जाते और उनके साथ खेला करते थे. श्री कृष्ण अपना पूरा समय वन में ही व्यतीत करते थे. शाम के समय सभी लोग अपने- अपने घर वापस लौट जाते थे. जब शाम को सब अपने- अपने घर लौटते तो थक हारकर सो जाते थे. वहीं एक दिन दोपहर के समय श्री कृष्ण एक पेड़ के नीचे अपने सखाओं के संग खेल रहे थे. चारों और शांति थी अचानक ही श्री कृष्ण की दृष्टि अपने बछड़ों पर पड़ी. उन सभी बछड़ों के बीच में एक अलग ही प्रकार का बछड़ा था. जिसे देखकर भगवान श्री कृष्ण आश्चर्यचकित रह गए. वह बछड़ा कोई और नहीं बल्कि एक राक्षस था. जिसने बछड़ों का रूप धारण कर रखा था. वह काफी समय से भगवान श्री कृष्ण को नुकसान पहुंचाने की प्रतीक्षा कर रहा था.गायों के बछड़े का रूप धारण करने के कारण ही उस असुर का नाम वत्सासुर पड़ गया था. भगवान श्री कृष्ण ने उस बछड़े को देखते ही पहचान लिया कि यह कोई बछड़ा नही है बल्कि कोई असुर है. भगवान श्री कृष्ण तो आखें बंद करके भी पूरे संसार को देख सकते थे तो उनसे यह असुर कैसे छिप सकता था. वत्सासुर को देखते ही कृष्ण उसकी और दौड़ पड़े और उसको गरदन से दबोच लिया. इसके बाद उन्होंने उस असुर के पेट पर इतनी जोर से प्रहार किया कि उसकी जीभ बाहर की और आ गई. इस आघात के बाद वह अपने असली रूप में आ गया और जमीन पर जा गिरा. जिसके बाद उसी मृत्यु हो गई . भगवान श्री कृष्ण के सभी मित्र उसे देखकर अचंभित रह गए . श्री कृष्ण की जय-जयकार से वहां का वातावरण गुंज उठा.
shaktasur koun tha
krishna killed shaktasura |
शकटासुर पूर्व जन्म मे दैत्य राज हिरण्याक्ष का पुत्र ऊतकक्ष था ,जो की बहुत ही बलवान था। एक बार की बात है ऊतकक्ष अपनी शक्ति के मद मे चूर होकर लोमेश ऋषि के आश्रम पर जाकर वहा के सारे पेड़ो को अपने शरीर से कुचल रहा था। उसने सारे पेड़ो को तहस नहस कर दिया । जब महर्षि लोमेश ने ये सब देखा तो उन्हे बड़ा ही क्रोध आया और उन्होने ऊतकक्ष को श्राप दिया की -हे पापी जिस देह की शक्ति के वशीभूत होकर तूने इन पेड़ो को क्षति पहुचाइ है ना जा आज से तू देह रहित (बिना शरीर का)हो जा । तब ऊतकक्ष ऋषि के चरणों मे गिर पड़ा और बोला की -हे पुण्यत्मा ; मै अपनी शक्ति के घमंड मे चूर हो गया था। मुझे क्षमा कर दे । तब ऋषि ने कहा की -मूर्ख जा मै तुझे क्षमा करता हू । द्वापर युग मे जब भगवान श्रीक़ृष्ण जब पृथ्वी पर अवतार लेगे तब उनके चरणों के स्पर्श से तेरी मुक्ति हो जायेगी । वही असुर उस छकड़े मे आकर बैठ गया था। और भगवान के द्वारा उसकी मुक्ति हुई फिर ये शकटासुर कहलाया.......
krishna killed shaktasur
शकटासुर का वध
krishna killed shaktasur |
तब कंस ने कहा की -"अगर तुमने ये कार्य कर दिया तो वापस आने पर एक बहुत बड़ा उत्सव होगा ।शकटासुर(ऊतकक्ष ) ज़ोर से हसा और बोला की मेरे शब्दकोश मे असंभव शब्द है ही नहीं। मै दैत्य राज हिरण्याक्ष का पुत्र ऊतकक्ष ये वचन देता हू की आपका शत्रु कल प्रातः सूर्य नही देखेगा । <<शकटासुर कौन था ,जानने के लिए यहा क्लिक करे>>
शकटासुर का गोकुल जाना
उधर वहा गोकुल मे सब अपना कार्य कर रहे है सब तरफ शांति है । तभी यशोदा माँ कृष्ण को बाहर ले कर आती है और कृष्ण को एक छकड़े के नीचे लेटा देती है ताकि लल्ला को हवा भी लगती रहे और छाव भी मिलती रहे । और बाकी गोपियो के साथ काम करने लगती है। कुछ देर बाद यशोदा एक गोपी से कहती है की लल्ला का ध्यान रखना मै अभी भवन के अन्दर से आती हू। सारी गोपिया अपने काम मे इतना व्यस्त हो जाती है की उनका कृष्ण पर से ध्यान हट जाता है। तभी शकटासुर(ऊतकक्ष ) आता है और देखता है की कृष्ण छकड़े के नीचे लेटे है। वो तुरंत छकड़े के ऊपर चढ़ जाता है और कृष्ण को छकड़े से दबाकर मारने की योजना बनाता है। शकटासुर(ऊतकक्ष ) को कोई देख नहीं पा रहा था वो इसी बात का लाभ उठा रहा था मगर सर्व दृष्टा से कोन छुप सकता है।कृष्ण मुस्कुरा रहे थे और वो दुष्ट छकड़े को दबाकर कृष्ण के पास ला रहा था। छकड़े का आधे से भी ज्यादा पहिया जमीन मे समा चुका था। छकड़ा कृष्ण से टकराने ही वाला था की कृष्ण ने उस छकड़े को अपने कोमल से और नन्हें पैरो से एक ठोकर मारी और वो छकड़ा हवा मे कुछ उचाई तक चला गया और शकटासुर(ऊतकक्ष ) ऊपर आसमान मे उछलकर कही दूर किसी सरोवर मे गिर कर उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई। इधर वो छकड़ा हवा मे उछलकर कृष्ण के ऊपर गिर जाता है और जमीन से टकराकर उसके दोनों पहिये टूट जाते है। कुछ लकड़ी के पटरे भी टूट जाते है। परंतु कृष्ण जी को कुछ भी नहीं होता है और वो मुसकुराते ही रहते है।
जब गोपिया ये सब देखती है तो बहुत शोर मचाती है ,शोर सुनकर यशोदा जी भाग कर बाहर आती है और माता यशोदा के प्राण कंठ में आ जाते है वो दौड़कर भंग हो गये छकड़े के पास आयी। हठात अपने लाल को उसी प्रकार हस्ते देखकर लपककर उठा लिया और छाती से लगा लिया। उनकी आंखों से प्रसन्नता के कारण अश्रुधार फूट पड़े। वह अपना भाग्य को सराहने लगी। अगर लल्ला को कुछ हो जाता, वह लल्ला को इस प्रकार छकड़े के नीचे अकेला लेटाकर भवन के अन्दर क्यों गयी। मैया यशोदा अपने आप को कोसने लगी। की उनसे कितनी बड़ी भूल हो गई है, उनको ऐसा कार्य नहीं करना था। मेरे कृष्ण को कुछ हो गया होता तो ? अभी वह अपने को संभाल भी नहीं पायी थी कि तभी नंद बाबा आ गये। छकड़े की दशा देखकर चौंक गये। पूछा अरे छकड़ा इस प्रकार टुकड़े-टुकडे होकर कैसे पडा है। अतएव दोनों और गोकुलवासी भगवान की लीला को न जान सके।
krishna and trinavart
तृणावर्त का उद्धार
तृणावर्त बहुत ही विशाल था वो एक बवंडर के रूप मे था जो बहुत तेज घूमता था वो कंस के पास आता है और बोलता है की क्यो बुलाया है आपने मुझे । तो कंस उसे सारी बात बताता है तो उसे बड़ा आश्चर्य होता है। कंस उसे बताता है की वो बहुत ही मायावी बालक है।
तृणावर्त का गोकुल आना
वहा गोकुल मे सब शांति से चल रहा था चरो और खुशहली और हरियाली थी। सारे ग्वाले अपना काम कर रहे थे बछड़े गाय का दूध पी रहे थे। कृष्ण जी यशोदा माँ के साथ खेल रहे थे। तभी तृणावर्त वहा आ जाता है बड़ा विशाल और बहुत तेज़ घूमता हुआ बवंडर का रूप लिए वो दैत्य बहुत ही भयानक लग रहा था।कृष्ण जी मैया के साथ खेल रहे थे की मैया ने देखा की आसमान मे बादल घिर आए है। और हवाए बहुत तेज़ गति से चलने लगी थी। पूरे ब्रज मे धूल भरी आँधी चलने लगी है। यशोदा माँ कृष्ण को दरवाजे की चौखट पर बैठा कर गाय के पास जाती जो की बहुत डरी हुई थी ।
तभी वहा तृणावर्त आ जाता है और वो ऐसे हवा चलाता है की किसी को कुछ दिखाई नही देता है।तभी तृणावर्त कृष्ण को उठा ले जाता है। तृणावर्त कृष्ण को बहुत उचाई पर ले जाता है । और यहा नीचे सब कृष्ण को ना पाकर सब व्याकुल हो जाते है। तभी एक ग्वाला देखता है की कृष्ण को वो तृणावर्त अपने साथ ले गया है ।
वहा ऊपर तृणावर्त कृष्ण से बोलता है की -"अरे तू इतना छोटा और हल्का है की तुझको मै अपनी उँगलियो से मसल दूँगा । पता नही क्यो कंस महाराज इस छोटे से बालक से डरते है की इसे मारने के लिए उन्होने मुझ जैसे बलवान असुर को यहा भेजा है। "
तृणावर्त अपने ही विचारो मे खोया था की कृष्ण जी अपना शरीर का वजन बढ़ाने लगते है और तृणावर्त को लगता है की उसने नीलगिरी पर्वत उठा लिया हो। तृणावर्त कृष्ण जी के वजन को संभाल नही पा रहा था । तभी कृष्ण जी उसकी गर्दन दबाने लगते है । तृणावर्त बहुत प्रयास करता है अपने आप को मुक्त कराने का परंतु आसफल रहता है। और अंत मे कृष्ण जी के द्वारा तृणावर्त मारा जाता है।
तृणावर्त का मृत शरीर एक स्थान पर आकर गिरता है तभी सभी गावों वाले भी वहा पर आ जाते है । वो सब देखते है की तृणावर्त मरा पड़ा है और कृष्ण जी उसकी छाती पर खेल रहे है। इस प्रकार भगवान ने तृणावर्त का वध किया ।
तृणावर्त कौन था
बहुत पहले की बात है पांडु देश मे एक सहस्त्राक्छ नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन वह अपनी रानियो के साथ जल क्रीडा कर रहा था। और क्रीडा करते करते वह बहुत मगन हो गया था । उसी समय वहा से दुर्वासा ऋषि निकलते है और वह ऋषि को प्रणाम करना भूल जाता है। दुर्वासा ऋषि बहुत ही क्रोधि स्वभाव के थे अतः उन्हे राजा का प्रणाम न करना अपना अपमान लगता है और वो राजा को श्राप दे देते है की जिस प्रकार तू जल मे घूम रहा है उसी प्रकार दैत्य कुल मे जन्म लेकर मिट्टी और धूल मे घूमेगा । राजा को अपनी भूल का भान होता है और वो दुर्वासा ऋषि से छमा मांगते है और अपनी मुक्ति का उपाय पूछते है।तब दुर्वासा ऋषि कहते है की -हे राजन जब भगवान विष्णु द्वापर युग मे कृष्ण अवतार लेगे तब उनके द्वारा मारे जाने पर ही तुम्हारा उद्धार होगा । बाद मे वही राजा तृणावर्त बना और कृष्ण के द्वारा मारा गया और मुक्त हुआ।
pootna koun thi
पूतना कौन थी ? पूतना कोई साधारण स्त्री नहीं थी। पूर्वकाल में वह राजा बलि की बेटी थी, जिसका नाम रत्नमाला था । वो बहुत ही गुणवान और रूपवती थी।
एक बार जब राजा बलि अपने 100 अस्वामेद्घ यज्ञ पूरे करने वाले थे तो उस समय भगवान वामन राजा बलि की परीक्षा लेने आए । वामन भगवान बहुत सुंदर और छोटे थे।
भगवान वामन आए तो उनका रूप सौन्दर्य देखकर रत्नमाला की ममता जाग उठी । रत्नमाला ने सोचा की 'मेरा विवाह होने के बाद मुझे भी ऐसा ही पुत्र प्राप्त हो तो मैं उसको गले लगाऊं और उसको अपना खूब दूध पिलाऊं।'भगवान वामन ने रत्नमाला की इच्छा जानकार उसको तथास्तु कहा । परंतु जब छोटे से वामन भगवान विराट हो गया और उसने बलि राजा का सर्वस्व छीन लिया तो रत्नमाला क्रोधित हो गई अपने मन मे कहा की "मैं इसको दूध पिलाऊं? नहीं इसको तो मैं जहर पिलाऊं, जहर!'भगवान वामन ने रत्नमाला की यह इच्छा भी जानकार उसको तथास्तु कहा ।
कालांतर में वही राजकन्या पूतना हुई। संयोग ऐसा बैठा कि विष्णु अवतार कान्हा को दूध भी पिलाया और जहर भी। उसे भगवान ने अपने स्वधाम भेज दिया।तब पूतना कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी। कृष्ण को विषपान कराने के लिए पूतना ने एक सुंदर स्त्री के रूप में वृंदावन जा पहुंची। जैसे ही पूतना ने बालक कृष्ण को स्तनपान कराया। उसी दौरान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। इस तरह श्री हरि ने दो अवतारों में पूतना की इच्छा पूर्ण की।
pootna ka uddhar
पूतना का उद्धार
krishna ko doodh pilati hue pootna |
जब कंस को पता चला की उसको मारने वाला गोकुल पहुच चुका है तो उसको बड़ी चिंता होने लगी की आखिर वो कौन है उसको कैसे पहचाना जाए । 5 दिन बीत गए थे इसी बीच उसका मंत्री आता है और उसको ये राय देता है की क्यो ना गोकुल मे सभी नवजात शिशुवों ही हत्या करवा दी जाए इससे वो भी मर जायेगा जिससे आपको भय है।
तो कंस बोलता है की -"अरे मूर्ख अगर हम लोगो ने ऐसे किया तो सारी प्रजा बगावत कर देगी और हमारी सत्ता हो सकता है हमारे हाथ से चली जाए । "कोई दूसरा उपाय बताओ । तब उसके मंत्री ने पूतना का नाम सुझाया तो कंस के मुख पर एक चमक आ गई।
कंस ने पूतना को बुलाया -तब कंस ने पूतना को बुलाया वो बड़ी ही विशाल आकार वाली काले मुख वाली उसकी बड़ी बड़ी भयानक आंखे थी बड़े बड़े दाँत और नख थे । वो बड़ी ज़ोर ज़ोर से हस रही थी। पूतना ने कहा -"कहो कंस महाराज मुझे कैसे याद किया । "कंस ने पूतना से कहा- "हे पूतना गोकुल मे हमे मारने वाला कोई जन्म ले चुका है जाओ उसे मार दो "पूतना ने कहा की एक छोटे से शिशु के लिए आपने मुझे बुलाया है । तब कंस बोला की वो कोई साधारण बालक नही है बहुत मायावी है । तुम जाओ और बड़ी ही चालाकी से उसको मार दो । फिर पूतना ने एक योजना बनाई की वो कृष्ण को अपना दूध पिला कर मार देगी और उसने अपने स्तनो मे जहर लगा लिया
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पूतना भेष बदलकर गोकुल गई
जब पूतना गोकुल पहुची तो वह पर हर तरफ कृष्ण के जन्म की खुशिया मनाई जा रही थी ।कृष्ण को जन्म लिए आज 6दिन हो गए थे । पूतना ने देखा की सब औरते एक ही घर मे जा रही है तो वो समझ गई की यही वो बालक है जिसको मारने के लिए कंस ने हमे यहा भेजा है। वो तुरंत ही अपना रूप बदल लेती है और एक सुंदर स्त्री बन जाती है ।
अपने दोनों हाथो मे कमल के फूल ले के उन्हे घूमाते हुए वो चल रही थी जो कोई भी उसे देखता वो देखता ही रह जाता जैसे कोई अप्सरा ही धरती पर आ गई हो। वो सब से नन्द बाबा का घर का पता पूछती थी।
बाल कृष्ण द्वारा पूतना का वध होना
जब पूतना नन्द जी के भवन पहुची तो बहुत भीड़ थी वो एक गोपी से पूछती है की बालक कहा है तो वो गोपी भी उसे देखती रह जाती है फिर वो गोपी से पूछती है की बालक की माँ कहा है तो गोपी उसे यशोदा की तरफ इसारे से बताती है। फिर वो यशोदा के पास जाती है और उसे खूब गले लगती है और बधाई देती है। यशोदा पूतना को पहचान नही पाती है और उससे पूछती है की -आप कौन है तो पूतना यशोदा से कहती है की वो उसकी दूर की चचेरी बहन है । फिर वो कृष्ण को अपने गोद मे लेने के जिद करने लगती है। तो यशोदा मान जाती है। और कृष्ण को पूतना की गोद मे दे देती है।
फिर पूतना कृष्ण को खिलाने लगती है और मौका पाकर कृष्ण को अपना विषैला दूध पिलाने लगती है । कृष्ण उसका दूध बड़े प्रेम से पीने लगते है पूतना को लगता है की अब ये बालक मर जायेगा परंतु कृष्ण दूध के साथ साथ उसका प्राण भी खीचने लगते है। पूतना को अब बहुत ही पीड़ा होने लगी वो कृष्ण को अपने से दूर करने लगी परंतु वो विफल रही अब वो इधर उधर भागने लगी और अपने असली रूप मे आ गई
उसका ये रूप देख कर सब डर गए । पूतना अब अपने विशाल भयानक रूप मे आ चुकी थी और आकाश मे उड़ने लगी थी परंतु कृष्ण ने उसको नही छोड़ा था। और उसका प्राण कृष्ण ने हर लिया पूतना एक जगह गिर पड़ी और उसकी आत्मा कृष्ण मे लीन हो गई । कृष्ण ने पूतना को वही गति प्रदान की जो उन्होने माँ यशोदा के लिए सोच कर रखी थी।
सब लोग भागते हुए आए तो देखा की पूतना मरी पड़ी है और बाल कृष्ण खेल रहे है। यशोदा ने कृष्ण को उठा कर अपने गले से लगाया । घर ले जाकर यशोदा माँ ने कृष्ण की नज़र गाय की पूछ से उतारी थी।
पूतना का अंतिम संस्कार करना
पूतना का मृत शरीर वह पड़ा था तो नन्द बाबा ने सोचा की अगर ये शरीर यहा ऐसा ही पड़ा रहा तो सड़ेगा और बीमारी फैलेगी तो उन्होने गाव वालों के साथ मिलकर उसके शरीर को कई टुकड़ो मे बाट दिया और फिर कई सारी चिताए बनाकर उन टुकड़ो को जला दिया जब वो चिताए जल रही थी तो उसमे से एक विशेष प्रकार की सुगंध आ रही थी जिससे पूरा गोकुल सुगंधित हो रहा था।
इस प्रकार बालकृष्ण ने पूतना का उद्धार किया
The legend of the arrival of Kali Yuga and King Parikshit
कलयुग के आगमन और राजा परीक्षित की कथा।
राजा परीक्षित कौन थे।
आज से 5000 हजार साल पहले जब भगवान श्री कृष्ण अपने धाम वापस चले गए । पांडव द्रौपति सहित स्वर्ग चले गए थे तो उनके राज्य को पांडवो का नाती जिसका नाम राजा परीक्षित था वो संभाल रहा था। वो बड़ा ही प्रतापी राजा था। राजा परीक्षित अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। जब ये गर्भ मे थे तो अस्वाथमा ने ब्रम्हशिर अस्त्र से परीक्षित को मारने का प्रयत्न किया था परंतु भगवान कृष्ण ने इनको बचा लिया था। परीक्षित प्रजापालक एवं कर्तव्यनिष्ठ राजा थे उंन्होने तीन अश्वमेध यज्ञ किये तथा कई धर्मनिष्ठ कार्य किये।
कलयुग का आगमन
जिस समय राजा परीक्षित का राज चल रहा था उस समय एक दिन गाय रूपी धरती एक जगह खड़ी रो रही थी । उसी समय वहा बैल रूपी धर्म आया और धरती से पूछा की -"हे देवी आप इतनी दुखी और मलिन क्यो लग रही है क्या आप इस बात से दुखी तो नहीं की मेरे केवल एक ही पैर बचा है। "तो धरती ने बोला -"हे धर्म सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने हो ,मै तो इसलिए दुखी हू की जब भगवान श्री कृष्ण थे तो उनके चरण कमल मुझ पर पड़ते थे और मै आनंदित होती थी परंतु जब से वो गए है तब से मै दुखी हू । "
वो दोनों बाते कर रहे थे की वहा पर कलयुग आ जाता है और बड़ी ज़ोर ज़ोर से हसता हुआ और अपने हाथ मे डंडा से दोनों को बुरी तरह मारने लगता है। तभी वहा राजा परीक्षित आ जाते है और देखते है की एक काला सा दैत्यकार मानव कामधेनु के समान सुंदर गाय और एक सफ़ेद सुंदर बैल जिसके केवल एक ही पैर है उनको अत्यंत क्रूरता से मार रहा है।
महाराज परीक्षित ने जोर से कहा- दुष्ट पापी! तू कौन है? इन निरीह गाय तथा बैल को क्यों सता रहा है? तू महान अपराधी है। तेरे अपराध का उचित दण्ड तेरा वध ही है।" उनके इन वचनों को सुन कर कलियुग भय से काँपने लगा। और त्राहि-त्राहि करने लगा और उनसे अपने जीवन की भीख मांगने लगा।
राजा परीक्षित ने कलयुग से कहा की -"तुम मेरी शरण मे आए हो इसलिए मै तुमको जीवनदान देता हू परंतु तुमको यहा से जाना होगा। और फिर कभी लौट कर मेरे राज्य मे मत आना क्यो की सारे पापो का कारण केवल तू ही है। " गाय और बैल भी अपने असली रूप मे आ गए और अपने दुख का कारण बताया
तब कलयुग ने कहा की -"हे राजन सारी पृथ्वी पर तो केवल आपका ही राज्य है फिर मै कहा जाऊ और द्वापरयुग समाप्त हो चुका है और मेरा इस समय यहा होना काल के अनुरूप ही है "
तब राजा सोच मे पड़ गए और फिर बोले की -"हे कलियुग! द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन और हिंसा इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। इन चार स्थानों में निवास करने की मैं तुझे छूट देता हूँ।"
तब कलयुग ने कहा की ये चारो स्थान मेरे लिए पर्याप्त नही है कोई एक स्थान और दे तब राजा ने कलयुग को स्वर्ण मे रहने की अनुमति दे दी । यही पर राजा परीक्षित से गलती हो गई कलयुग आदृश्य होकर राजा के स्वर्ण मुकुट मे आकर बैठ गया ।
इसके बाद राजा आगे चल दिये आगे चलने पर वो प्यास से तड़पने लगे वो शमिक ऋषि का आश्रम दिखा वो ऋषि के पास गए और उनसे पानी मांगा परंतु ऋषि ध्यान मे लीन थे वो राजा की पुकार सुन न सके । कलयुग के कारण राजा को बड़ा क्रोध आया । वो ऋषि को दंड देना चाहते थे परंतु उनके अच्छे कर्मो ने उनको रोक लिया । फिर उन्होने देखा की पास ही एक मारा हुआ सर्प पड़ा है कलयुग के प्रभाव से उन्होने वो मरा हुआ सर्प शमिक ऋषि के गले मे डाल दिया और राजमहल वापस आ गए ।और वापस आ कर जैसे ही राजा ने अपना मुकुट उतारा वैसे ही वो कलयुग के प्रभाव से मुक्त हुये और उन्हे अपनी गलती का भान हुआ और वो बहुत पछताए । और उधर उस शमिक ऋषि का पुत्र शृंगी बडा ही तेजस्वी था उस समय वह नदी में नहा रहा था। दूसरे ऋषि कुमारों ने आकर उसे सारा वृत्तान्त सुनाया की कैसे एक राजा ने आपके पिता का अपमान किया है।
इस बात से शृंगी बड़ा ही क्रोधित हुआ और उसी समय अपनी हाथ मे जल लेकर श्राप दिया की-"जिस अभिमानी और मूर्ख राजा ने मेरे पिता का ऐसा घोर अपमान किया है उसको आज से सातवे दिन तक्षक नाग डस लेगा और उसकी जीवन लीला समाप्त हो जायगी "
जब ये बात राजा को पता चली तो उन्होने बहुत छमा मागी परंतु छमा नहीं मिली तब रिसियों द्वारा बताए जाने पर राजा परीक्षित ने श्रीमद्भागवत कथा का स्रवण किया और मुक्ति को प्राप्त हुए ।
सतयुग ,त्रेतायुग,द्वापरयुग,कलयुग
युग कितने प्रकार के होते है ।
दोस्तो इस पूरे संसार मे समय का अपना एक अलग ही महत्तव है । हर चीज समय से ही जुड़ी होती है।दोस्तो जैसा की हम जानते है की.................
एक साल मे 12 महीने (365 दिन )होते है ।
एक महीने मे 30 दिन होते है ।
एक दिन मे 24 घंटे होते है ।
एक घंटे मे 1440 मिनट होते है ।
उसी प्रकार युगो को भी 4 भागो मे बाटा गया है। और हर युग के 4 चरण होते है जो इस प्रकार है ।
1 सतयुग
2 त्रेतायुग
3 द्वापरयुग
4 कलयुग
सतयुग
इस युग को धरती का स्वर्णिम काल कहा जाता है। इस युग के लोग धर्म पारायण होते थे । और दीर्घ आकृति वाले और दीर्घ आयु वाले होते थे । इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने चार पैरो पर खड़ा था ।
सतयुग के अवतार : सतयुग मे भगवान विष्णु के 4 अवतार मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह हुए है । सतयुग का कालखंड 1,728,000 बर्सों का था।
त्रेतायुग
इसके बाद शुरू होता है त्रेतायुग जो की दूसरा युग है। इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने तीन पैरो पर खड़ा था ।त्रेतायुग के अवतार : इस युग में भगवान विष्णु के तीन अवतार वामन ,परशुराम और राम प्रकट हुए थे। त्रेतायुग का कालखंड 1,296,000 बर्सों का था।
द्वापरयुग
मानव युग मे इसको तीसरा युग भी कहते है ।इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने दो पैरो पर खड़ा था ।इस युग मे पाप ज्यादा हो रहा था ।द्वापरयुग के अवतार : इस युग मे भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया था । द्वापरयुग का कालखंड 864,000 बर्सों का था।
कलयुग
इस युग को मानव चौथा युग भी कहते है। कलयुग मे पाप अपनी चरम सीमा भी पार कर लेगा। झूठ और अधर्म का ही बोल बाला रहेगा । न्याय सिर्फ गरीबो के लिए ही रहेगा । भाई भाई को मरेगा । इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने एक पैर पर खड़ा होगा।कलयुग के अवतार : श्रीमदभागवतपूराण के अनुसार जब पाप अपनी चरम सीमा भी पार कर लेगा तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार धारण करेगे और पापियो का नाश करेगे। कलयुग का कालखंड 432,000 बर्सों का है।
krishna janam mahotsav
कृष्ण जन्म महोत्सव
जब कृष्ण गोकुल पहुचे तो सारे ब्रज मे उल्लास मनाया गया । धरती खिल उठी मुरझाए फूल खिल गए शीतल वायु बहने लगी तरह तरह के पच्ची गीत गाने लगे । कृष्ण जी को एक सुंदर से झूले मे लिटाया गया उनको सुंदर कपड़े पहनाए गए । तरह तरह के बधाई गीत गाये जा रहे थे । पूरा गोकुल मे उत्सव का महोल था ऐसा लग रहा था मानो की जैसे कोई उत्सव हो ,और हो भी क्यो न आखिर भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था ।
कृष्ण जन्म महोत्सव की तैयारी
कृष्ण जन्म महोत्सव की तैयारी मे तो पूरा गोकुल ही लगा था । नन्द बाबा ने पूरे गोकुल को भोजन करने की तैयारी मे लगे थे तो माँ यशोदा कृष्ण जी को तैयार करने और पूरे भवन की साज सज्जा मे लगी थी ।
कोई कुछ काम कर रहा था तो कोई कुछ सब अपने अपने काम मे लगे थे । कोई सभी गायों को साफ कर रहा था । कोई नगर को सजा रहा था । कृष्ण जन्म महोत्सव की तैयारी अपने पूरे ज़ोर पर थी।
सारी धरती मे एक अजीब सी शांति और खुशी की अनुभूति हो रही थी । और होना भी चाहिए क्यो की उनके तारण हार जे अवतार लिया था । मनुस्यों के साथ साथ आकाश मे देवता भी इस उत्सव को बड़ी धूम धाम से मना रहे थे । आकाश से फूलो की वर्षा हो रही थी सारे देवता भी कृष्ण के इस बाल रूप का दर्शन करना चाहते थे और उनमे से तो कई देवता मनुस्य का रूप ले कर गोकुल भी आए थे ।
कृष्ण जन्म महोत्सव मे नन्द बाबा ने खूब दान दिया और यशोदा माँ ने भी दान दिया । कृष्ण के मुख पर ऐसा तेज़ था की किसी की नज़र उनसे हटती ही नहीं थी । ऐसा आलोकिक रूप तो पहले कभी ने नहीं देखा था। सब यही कहते की कोई देवता ने ही जन्म लिया है ।
सारी गोपिया उनको अपने गोद मे लेने को ललयइट हो रही थी । मानो की जैसे कृष्ण उनके ही पुत्र हो ।
इस तरह कई दिनो तक भाति भाति के कार्यक्रम हुए और सभी ने बहुत उल्लास मनाया ।
krishna janmashtami
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की पौराणिक कथा
" जब जब धर्म की हानि होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं इस धरती पर अवतार लूँगा "
ये बात उस समय की है जब द्वापर युग (4 युगो मे एक) अपने अंतिम चरण मे था और कंस और जरासंध जैसे अनेक पापियो के पाप कर्मो से ये धारा कराह उठी थी । फिर सारे देवता पालनहार भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्राथना की की आप इस धरती को पाप से मुक्त करे । विष्णु जी ने उन सब की प्राथना स्वीकार की और कहा की मै अपने 8वे अवतार कृष्ण के रूप मे मथुरा मे जन्म लूँगा ।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में जन्मास्थिमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।
जब कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल विदा करने ले गया तभी आकाश मे एक आकाश वाणी हुई की देवकी का 8 वआ पुत्र ही तेरा काल होगा । इससे डर के कस ने देवकी और वसुदेव को बंदी बना लिया
दोनों को कारगर मे डाल दिया उस कारगार मे कई दरवाजे थे कई सैनिक थे । देवकी का जो भी संतान होती उसको कंस मार डालता । फिर वो समय आया जिसका सभी को इंतजार था भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र मे मूसलाधार बारिश हो रही थी तब भगवान कृष्ण प्रकट हुए ।
संयोग से उसी समय नन्द बाबा की पत्नी यशोदा को भी एक संतान हुई जो की एक कन्या थी वो कोई और नही बल्कि माया थी । इधर करगार मे भगवान विष्णु ने देवकी और वसुदेव को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन दिये और वसुदेव को कहा की आप अपने बालक को नन्द गाव मे नन्द जी के यहा छोड़ आए और उनकी पुत्री को ले आए । फिर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए और वसुदेव की बेड़िया अपने आप खुल गई और सभी सैनिक सो गए ।
वसुदेव ने कृष्ण को एक डलिया मे रख कर अपने सिर पर रखा और नन्द गाव की और चल दिया नंगे पाव रास्ते मे यमुना नदी पड़ी बारिश बहुत तेज़ हो रही थी । यमुना जी अपने उफान पर थी । वसुदेव नदी मे उतर गए और नदी पार करने लगे और पीछे से बारिश से बचाने के लिए कृष्ण भगवान के सेवक शेसनाग आ गए ।
वसुदेव कृष्ण जी को यशोदा के पास लिटा दिये और कन्या रूपी माया को वह से साथ ले आए । जब वो कारागार पहुचे तो उनकी बेड़िया अपने आप फिर से लग गई । "कितनी बड़िया सीख है की जब कृष्ण (ईश्वर )हाथ मे आए तो बेड़िया खुल गई थी परंतु जैसे ही वो कन्या (माया )हाथ मे आई तो बेड़िया लग गई "
फिर सारे सैनिक जाग गए और कंस को पता चला की देवकी के कन्या हुई है तो वो उसको मारने गया परंतु जैसे ही कंस ने उस कन्या को अपने हाथ मे लिया और मारने चला वो कन्या उसके हाथ से छूट कर आकाश मे चली गई और एक देवी का रूप लिया जिसके कई हाथ थे और उनमे तरह तरह के अरत्र थे । वो देवी ज़ोर ज़ोर से हसने लगी और कहने लगी की
"हे मूर्ख जिसको तू मारने आया है वो तेरा काल तो कब का जन्म ले के कर गोकुल पहुच पहुच चुका है । इतना कह कर कर वो देवी अंतेर्ध्यान हो गई"
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में जन्मास्थिमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।
जब कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल विदा करने ले गया तभी आकाश मे एक आकाश वाणी हुई की देवकी का 8 वआ पुत्र ही तेरा काल होगा । इससे डर के कस ने देवकी और वसुदेव को बंदी बना लिया
दोनों को कारगर मे डाल दिया उस कारगार मे कई दरवाजे थे कई सैनिक थे । देवकी का जो भी संतान होती उसको कंस मार डालता । फिर वो समय आया जिसका सभी को इंतजार था भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र मे मूसलाधार बारिश हो रही थी तब भगवान कृष्ण प्रकट हुए ।
संयोग से उसी समय नन्द बाबा की पत्नी यशोदा को भी एक संतान हुई जो की एक कन्या थी वो कोई और नही बल्कि माया थी । इधर करगार मे भगवान विष्णु ने देवकी और वसुदेव को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन दिये और वसुदेव को कहा की आप अपने बालक को नन्द गाव मे नन्द जी के यहा छोड़ आए और उनकी पुत्री को ले आए । फिर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए और वसुदेव की बेड़िया अपने आप खुल गई और सभी सैनिक सो गए ।
वसुदेव ने कृष्ण को एक डलिया मे रख कर अपने सिर पर रखा और नन्द गाव की और चल दिया नंगे पाव रास्ते मे यमुना नदी पड़ी बारिश बहुत तेज़ हो रही थी । यमुना जी अपने उफान पर थी । वसुदेव नदी मे उतर गए और नदी पार करने लगे और पीछे से बारिश से बचाने के लिए कृष्ण भगवान के सेवक शेसनाग आ गए ।
कृष्ण जी ने वसुदेव को डूबने से बचाया
जब वसुदेव यमुना जी के बीच मे पहुचे तो यमुना जी का पानी उनके सिर के ऊपर चला गया । क्यो की यमुना जी कृष्ण जी के चरण स्पर्श करना चाहती थी और यमुना जी विष्णु जी की पत्नी भी है । जब पानी सिर से काफी उपर आ गया तो कृष्ण जी ने अपना पैर डलिया से नीचे कर दिया और उनका पैर यमुना जी को छूने लगा । फिर यमुना जी ने अपना जल स्तर कम कर लिया और वसुदेव डूबने से बच गए ।यशोदा की पुत्री को उठा कर मथुरा लाना
जब वसुदेव नन्द बाबा के घर पहुचे तो सब सो रहे थे यहा तक की यशोदा को भी नही पता था की उसकी पुत्र हुआ है या पुत्री ।वसुदेव कृष्ण जी को यशोदा के पास लिटा दिये और कन्या रूपी माया को वह से साथ ले आए । जब वो कारागार पहुचे तो उनकी बेड़िया अपने आप फिर से लग गई । "कितनी बड़िया सीख है की जब कृष्ण (ईश्वर )हाथ मे आए तो बेड़िया खुल गई थी परंतु जैसे ही वो कन्या (माया )हाथ मे आई तो बेड़िया लग गई "
फिर सारे सैनिक जाग गए और कंस को पता चला की देवकी के कन्या हुई है तो वो उसको मारने गया परंतु जैसे ही कंस ने उस कन्या को अपने हाथ मे लिया और मारने चला वो कन्या उसके हाथ से छूट कर आकाश मे चली गई और एक देवी का रूप लिया जिसके कई हाथ थे और उनमे तरह तरह के अरत्र थे । वो देवी ज़ोर ज़ोर से हसने लगी और कहने लगी की
"हे मूर्ख जिसको तू मारने आया है वो तेरा काल तो कब का जन्म ले के कर गोकुल पहुच पहुच चुका है । इतना कह कर कर वो देवी अंतेर्ध्यान हो गई"
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।