यमला अर्जुन के पूर्व जन्म की कथा
यमला अर्जुन पूर्व जन्म में धन के देवता कुबेर के पुत्र थे और इनका नाम नलकुबर और मणिग्रीव था। इनके पास धन,सौंदर्य और शक्ति थी। ये सब उनको बिना मेहनत किये अपने पिता से मिला था अतः उनको इन सब पर बहुत घमंड था। जो भी वस्तु बिना मेहनत के प्राप्त होती है जीव उसका मूल्य नहीं समझता है। और उसमे अहंकार आ जाता है। देवर्षि नारद के श्राप के कारन ये दोनों नन्द बाबा के प्रांगढ़ में एक साथ अर्जुन के पेड़ बन गये थे इस कारन इनका नाम यमलार्जुन पड़ा।
देवर्षि नारद द्वारा नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप देना
एक दिन नलकुबर और मणिग्रीव मन्दाकिनी के तट पर सुन्दर वातावरण के बीच नग्न होकर सुरापान करके नग्न स्त्रियों के साथ गंगा जी में स्नान कर रहे थे। जैसै हाथी हथनियो के साथ जल क्रीड़ा करता है वैसे ही। तभी वहाँ देवर्षि नारद प्रभु की भक्ति में नारायण नारायण करते हुए विचरण कर रहे रहे थे नारद की जी विणा जहा भक्ति रस को बड़ा रही थी वही नलकुबर और मणिग्रीव के भोग रास को भी बड़ा रही थी। एक ही समय दो लोगो के लिए विपरीत होता है। नलकुबर और मणिग्रीव दोनों नग्न थे और उनके साथ स्नान कर रही स्त्रियाँ भी नग्न थी। तभी ठीक उसी स्थान से देवर्षि नारद निकले तो देवर्षि नारद को देखकर स्त्रियाँ बहुत लज्जित हुई और उन्होंने तत्काल ही अपने वस्त्रो को पहन लिया;किन्तु ये दोनों वैसे ही पेड़ो की तरह खड़े रहें और देवर्षि नारद का उपहास उड़ाने लगे। देवर्षि नारद को उन दोनों पर क्रोध आ गया वे बोले की कहाँ ये दोनों लोकपाल के पुत्र और कहाँ इनकी ये दशा इनको तो ये भी भान नहीं की ये दोनों निर्वस्त्र है। देवर्षि नारद ने नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप दे दिया -तुम दोनों धन ,पद और शक्ति के वशीभूत होकर अंधे होकर पेड़ो की तरह खड़े हो अतः जाओ पेड़ बन जाओ। श्राप को सुनकर उन दोनों का नशा तुरंत ही दूर हो गया नलकुबर और मणिग्रीव पश्चाताप करते हुए नारद जी के पास आये और अपनी गलती की छमा माँगी। तब नारद जी बोले -मेरा शाप टल तो नहीं सकता किन्तु मेरी कृपा से तुम दोनों को वृछ योनि में भी भगवान् की स्मृति बनी रहेगी। देवताओ के सौ वर्ष बीत जाने पर जब भगवान् विष्णु इस धराधाम पर कृष्णा अवतार लेगे तब उनके द्वारा तुम दोनों का उद्धार होगा और भगवान् की असीम भक्ति प्राप्त होगी। फिर नलकुबर और मणिग्रीव को गोकुल में वृछ योनि प्राप्त हुई।
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