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  • krishna and yashoda

    yamla arjun ka uddhar
    yamla arjun ka uddhar

    कृष्णा भगवान् कब और कैसी लीला करते है ये कोई नहीं जानता  गोकुल में सब आनंदमय जीवन यापन कर रहे थे प्रभु का नाम ले रहे थे। कृष्णा जी भी गलियों में घूम रहे थे वे किसी की मटकी फोड़ते तो किसी का माखन चुराते ऐसा ही लीला करते प्रभु अपने घर को पधारे तो देखा की मैया माखन निकाल रही है। छोटे से बाल गोपाल जिनके पैरो में पैजनिया है कमर में कमरबंध है हाथो में छोटी से मुरली हैं  सर पर मोर मुकुट है बालो में भी थोड़ी से मिटटी लगी है ,दौड़ के आके मैया के गले लग जाते है और मैया से बाल गोपाल बोलते है की -मैया माखन दो ना। तो मैया कहती है -जा जा के कही से चुरा के खा ले। उस समय नन्द बाबा इंद्रा की पूजा में लगे थे हुए बलराम सहित अन्य गोपाल भी यज्ञ देखने चले गए थे। कृष्णा मैया को बड़े प्यार से गले लगा के बोलते है की -मैया तू कितनी प्यारी है मेरा कितना ख्याल रखती है तू। मैया भी कृष्णा को अपनी गोद में ले कर बड़ा प्यार करती है और कहती है -अरे तू है ही इतना प्यारा। धन्य है यशोदा ,जो परमात्मा बड़े बड़े ऋषि मुनि के पास नहीं आता जिनको पाने के लिए लोग बड़ी कठोर तपस्या करते है उन परब्रम्ह परमात्मा को यशोदा अपनी गोद में लिए है ये सारा दृश्य देवता आकाश से देख कर भाव विभोर हो रहे थे। तभी कृष्णा ने मैया से पुछा की -मैया ये बताओ तुमको सारे जग में मुझसे प्यारा कोई और लगता है क्या। मैया कहती है -नहीं ,तू ही मुझे सबसे प्यारा लगता है। ये सुनते ही भगवान् मैया के गले लग जाते है। 
    तभी मैया को याद आता है की उसने रसोई घर में चूल्हे पर दूध चढ़ाया था और अब तक तो वो उबलने वाला होगा ऐसा विचार मन में आते ही मैया कृष्णा को अपनी गोद से तत्काल उतार देती है और कृष्णा से बोलती है की मैं अभी दूध का पात्र चूल्हे से उतार कर आती हु और दौड़ कर रसोई घर की ओर जाती है।  
    ऐसा देखकर कृष्णा को बड़ा ही गुस्सा आता है और कहते है की मैया बोलती है की मैं उसे सबसे प्यारा हु परन्तु उसने दूध के लिए मुझे छोड़ दिया। संसार में भी ऐसा ही होता है संसारी दूध (भौतिक सुख )के लिए भगवान् को भूल जाता है और उसे छोड़ देता है। फिर कृष्णा ने एक डंडा उठाया और वहाँ रखी सारी माखन,दूध और दही की हाँडीयो को फोड़ दिया। 
    krishna and yashoda
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    जब मैया वापस आती है तो सारा दूध ,दही और माखन को ऐसे भूमि पर गिरा देखती है तो बहुत ही क्रोधित होती है। वो कृष्णा से बोलती है की -क्यों रे ;ये सब तूने किया है। कृष्णा मुस्कुरा के हामी भरते है। मैया फिर एक छड़ी ले के कृष्णा को मारने के लिए कृष्णा के पास आती है। भगवान् घर के बाहर भागते है। और मैया छड़ी ले के भगवान् के पीछे पीछे दौड़ती है। और बोलती है -रुक जा कृष्णा नहीं तो बहुत पिटेगा। कृष्णा जी सोचते है की -अगर कोई महादैत्य होता उसका कोई महाभयंकर अस्त्र होता  तो उसको पल भर में ही मार देता परन्तु ये तो माँ की छड़ी है पड़ेगी तो जोर से लगेगी। 
    जो भगवान् सारे असुरो को पल भर में मार देते है वही आज मार के डर से आगे आगे भाग रहे है ये सब देखकर देवता भी आनंदित हो रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैया कृष्णा को पकड़ पाती है परन्तु जैसे ही छड़ी से मारने को अपने हाथ उठाती है तो मैया को दया आ जाती है और छड़ी को छोड़कर रस्सी से बांधने को सोचती है। मैया वही पास में पड़ी रस्सिया उठाती है और एक ऊखल में बाँधने लगती है और कहती है की -आज सारा दिन धूप में रहेगा तो तेरी अकल ठिकाने आ जायगी। 
    मगर जैसे ही मैया कृष्णा को बांधने लगती है तो रस्सी छोटी हो जाती है। ऐसा कई बार होता है।सबके बंधन 
    खोलने वाले को मैया आज  बाँधने चली है। जब मैया हार जाती है तो बोलती है -क्यों रे ,मुझे क्यों सता रहा है। फिर कृष्णा आराम से अपने आप को ऊखल से बँधवा लेते है। 
    फिर कुछ गोपिया कहती है -हे नंदरानी तुम्हारा ये बालक जब हमारे घर में आकर हमारे बर्तन भाड़े भोड़ता है तो हम तो इसे कुछ नहीं कहती और तुम कुछ पात्रो के टूटने पर इस कोमल से बालक को ऊखल से बाँध रही हो तुम बड़ी ही निर्दई हो नंदरानी। परन्तु यशोदा उनकी बातो का कोई उत्तर नहीं देती है और गोपिया भी वहाँ से चली जाती है। और यशोदा भी भवन के अंदर चली जाती है।सारे प्राणियों का बंधन चिंतन मात्र से ही खोल देने वाले भगवान् आज खुद बंधन में बंधे है। 
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    यहाँ कृष्णा ऊखल से बंधे खड़े है तभी उनकी नज़र वहा  लगे दो यमलाअर्जुन के पेड़ो पर पड़ती है जो की पास पास लगे हुए थे। कृष्णा ने सोचा की क्यों न मैं इस ऊखल को इन यमलाअर्जुन पेड़ो के मध्य में फसा कर खीचू ताकि रस्सी टूट जाये। ऐसा विचार करके कृष्णा ऊखल को गिरा कर घसीटकर उन यमलार्जुन पेड़ो की ओर जाने लगते है।  
    जब कृष्णा उन यमलाअर्जुन के पेड़ो के समीप पहुंचते है तो उन पेड़ो की मनो दशा का वर्णन कौन कर सकता है। पेड़ो में भी जीवन होता है और इनको तो पूर्व के देवजीवन से अब तक की सारी घटनाये याद है। सौ देव वर्षो के लम्बी अवधि के बाद अपने उद्धार की घडी और भगवान् श्रीकृष्ण को समीप देखकर उनके अंतर्मन में क्या क्या भाव आ रहे थे ये तो या तो वे खुद जानते थे या फिर जगदीश्वर श्रीकृष्ण। 
    फिर कृष्णा उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य में प्रवेश करते है। भगवान् जिसके अंतर्मन में प्रवेश करते है उसमे क्लेश और जड़ता नहीं रहती है। और फिर ऊखल को उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य फसा कर जोर से रस्सी को खींचा बस फिर क्या था वे दो विशाल यमलार्जुन पेड़ भारी शब्द करते हुए भूमि पर गिर पड़े। और वे इस तरह गिरे की वहाँ पर किसी भी वस्तु या प्राणी को किसी भी प्रकार की कोई छति ना हुई।वे तो कृष्णा भक्त थे भला वे किसी को छति कैसे पंहुचा सकते थे। 
    यहाँ पर कुछ विद्वानों का कहना है की भगवान् की आज्ञा से देवी योगमाया ने यमलार्जुन पेड़ो की गिरने की ध्वनि को अवरुद्ध कर दिया था ताकि मैया यशोदा तथा गांव वाले ना आ जाये और यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार में बाधा उत्पन्न हो अत:जब तक यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार ना हो गया तब तक योगमाया ने अपना प्रभाव बनाये रक्खा। 
    जहा से वे यमलार्जुन पेड़ गिरे थे उस स्थान से दो दिव्य ज्योति प्रकट हुई उस ज्योति में से दिव्य वस्त्रो और आभूषणों से सज्जित दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए जो वास्तव में नलकुबेर और मणिग्रीव थे।  
    नलकुबेर और मणिग्रीव ने भगवान् के परिक्रमा की और उनके चरण स्पर्श किये। तथा उनकी कई प्रकार से स्तुति की तब भगवान् कृष्णा हसे और बोले -मै तो सदा मुक्त रहता हु परन्तु जीव मेरी स्तुति तब करता है जब वो बंधन में बंधा होता है किन्तु आज स्तिथि विपरीत है  मैं बंधा हु और मुक्त जीव मेरी स्तुति कर रहा है। तुम दोनों को मेरी असीमित भक्ति प्राप्त हो चुकी है तुम दोनों आज नारद जी के श्राप से मुक्त हुए अब तुम दोनों अपने लोक को प्रस्थान करो। 
     नलकुबेर और मणिग्रीव के वहाँ से प्रस्थान करते ही योगमाया ने अपना प्रभाव समाप्त किया और फिर सबको पेड़ो के गिरने की ध्वनि सुनाई पड़ी यशोदा जी भाग कर बाहर आई और कई गांव वाले और बालगोपाल वह एकत्रित हो गए नन्द बाबा भी वहाँ आ गए कोई बोला की ये इतना बड़ा पेड़ कैसे गिरा ना आंधी आई और ना ही इसकी जड़े खोखली है। तभी एक बाल गोपाल बोला -मैंने देखा कृष्णा ने इस ऊखल से ही इन पेड़ो को गिराया है और इसमें से दो दिव्या आत्माये बाहर आई और कृष्णा के पैर छूकर आकाश में चली गई। 
    सबने उस बालगोपाल की ओर संदेह की दृस्टि से देखा और फिर उसकी बातो को अनसुना कर दिया। किसी किसी को संदेह भी हुआ की कृष्णा को मारने कई असुर आ चुके है परन्तु ये बड़ा ही भाग्यशाली है। फिर नन्द बाबा ने कृष्णा को अपनी गोद में उठाया और भवन के अंदर चले गए और  गांव वाले भी अपने अपने घर को चले गए।  
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