aghasur koun tha |
अघासुर कौन था
पूर्व जन्म में अघासुर शंखासुर का पुत्र था उसका नाम था अघ। अघ कामदेव के सामान ही बड़ा ही सुन्दर और रूपवान था। उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा ही घमंड था। एक दिन अघ वन में विचरण कर रहा था तभी वहाँ से ऋषि अष्टावक्र निकले। उनका शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था इस कारन वे बड़े कुरूप दिखते थे इसलिए उनका नाम अष्टावक्र पड़ा। उनको देखकर अघ उनका बड़ा ही उपहास किया। अघ बोला -क्या सूंदर चाल है आपकी ऐसी चाल को देखकर तो स्वर्ग की अप्सराए भी लज्जित हो जाती होगी। परन्तु ऋषि अष्टावक्र अघ की बातो को अनसुना कर दिया और आगे बढ़ने लगे। परन्तु अघ मान नहीं रहा था। फिर अघ बोला -अरे मुनि सुनिए ,मैंने कहा ये कुसुमलता की बेल की भांति बलखाती ये सूंदर और लचकदार कमर किस दूकान से लाये हो भाई हमें भी उसका पता बता दो। ऐसा कहकर अघ जोर जोर से हसने लगा। परन्तु ऋषि अष्टावक्र ने फिर भी उसकी बातो को अनसुना कर दिया। परन्तु अघ बार बार उनका उपहास कर रहा था। ऋषि अष्टावक्र क्रोधी स्वाभाव के नहीं थे परन्तु गलती की सजा मिलनी चाहिए। फिर ऋषि अष्टावक्र ने अघ को श्राप दिया की -ऐसा शरीर मुझे भगवान् की दुकान से मिला है। ऐसी लचकदार कमर और टेड़े मेढ़े शरीर भगवान् धरती पर रेंगने वाले सर्पो को देता है जा तू सर्प बन जा।
फिर अघ को अपने कर्मो पर पछतावा होता है और वो ऋषि अष्टावक्र से बोलता है -छमा ऋषिवर ; छमा मैंने सिर्फ विनोदवश होकर आपका अपमान कर दिया मुझे छमा करे। ऋषि अष्टावक्र बहुत ही दयालु थे वे बोले -मेरा श्राप तो टल नहीं सकता परन्तु जा जब द्वापर के अंत में भगवान् विष्णु कृष्णा अवतार लेगे तो उनके हाथो तेरी मुक्ति होगी। फिर द्वापर युग में वही अघ ,अघासुर बन कर कृष्णा को मारने आया था।
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