vatsasura and krishna |
कैसे किया भगवान श्री कृष्ण ने वत्सासुर का संहार - वृंदावन में प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा फैला हुआ था. चारों और फलों से लदे वृक्ष थे. जगह- जगह पर कुंज बने हुए थे. प्रत्येक डाल पर पक्षी अपने मधुर स्वरों से वातावरण को गुंजित कर रहे थे. वृंदावन का नजारा बहुत ही भव्य था. वृंदावन में गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी और भी सुंदर बना रहे थे. भगवान श्री कृष्ण प्रतिदिन वन में अपने साथियों के साथ गायों को चराने के लिए जाते और उनके साथ खेला करते थे. श्री कृष्ण अपना पूरा समय वन में ही व्यतीत करते थे. शाम के समय सभी लोग अपने- अपने घर वापस लौट जाते थे. जब शाम को सब अपने- अपने घर लौटते तो थक हारकर सो जाते थे. वहीं एक दिन दोपहर के समय श्री कृष्ण एक पेड़ के नीचे अपने सखाओं के संग खेल रहे थे. चारों और शांति थी अचानक ही श्री कृष्ण की दृष्टि अपने बछड़ों पर पड़ी. उन सभी बछड़ों के बीच में एक अलग ही प्रकार का बछड़ा था. जिसे देखकर भगवान श्री कृष्ण आश्चर्यचकित रह गए. वह बछड़ा कोई और नहीं बल्कि एक राक्षस था. जिसने बछड़ों का रूप धारण कर रखा था. वह काफी समय से भगवान श्री कृष्ण को नुकसान पहुंचाने की प्रतीक्षा कर रहा था.गायों के बछड़े का रूप धारण करने के कारण ही उस असुर का नाम वत्सासुर पड़ गया था. भगवान श्री कृष्ण ने उस बछड़े को देखते ही पहचान लिया कि यह कोई बछड़ा नही है बल्कि कोई असुर है. भगवान श्री कृष्ण तो आखें बंद करके भी पूरे संसार को देख सकते थे तो उनसे यह असुर कैसे छिप सकता था. वत्सासुर को देखते ही कृष्ण उसकी और दौड़ पड़े और उसको गरदन से दबोच लिया. इसके बाद उन्होंने उस असुर के पेट पर इतनी जोर से प्रहार किया कि उसकी जीभ बाहर की और आ गई. इस आघात के बाद वह अपने असली रूप में आ गया और जमीन पर जा गिरा. जिसके बाद उसी मृत्यु हो गई . भगवान श्री कृष्ण के सभी मित्र उसे देखकर अचंभित रह गए . श्री कृष्ण की जय-जयकार से वहां का वातावरण गुंज उठा.
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