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  • Aghasura vadh

    Aghasura vadh
    Aghasura vadh 
    श्री कृष्णा भगवान् ने कंस द्वारा भेजे गए बहुत से असुरो को यमराज के पास पंहुचा दिया था। कंस को पहले ही ये विश्वास था की कृष्णा ही देवकी का आठवां पुत्र है। मगर कृष्णा को मारा कैसे जाये और किसे भेजा जाये इसी उधेड़बुन में वो अपने राजदरबार में परेशान बैठा था और अपने मंत्रियो से विचार विमर्श कर रहा था। लेकिन कोई उसे सही मार्ग नहीं बता पा रहा था तभी उसे अघासुर की याद आयी जो पूतना और बकासुर का भाई भी था। कंस ने तुरंत अघासुर को पुकारा और दुसरे ही पल वह अघासुर प्रकट हो गया था वो देखने में एक बहुत विशाल अजगर था और बड़ा ही भयानक थ। अघासुर बड़ा ही प्रसन्न हुुआ की महाराज कंस नेे उसे याद किया ।अघासुर बोला -हे महाराज अगर आप मुुझे ना भी बुलाते तो भी मैं आ जाता मैं भी उस कृष्णा से अपने भाई और बहन की मृत्यु का बदला लेना चाहता हु। कंस बोलै -वो बालक बहुत ही मायावी है। क्या तुम उसे मार सकोगे ?अघासुर बोला -मै वो गलती नहीं करूँगा जो मेरे भाई ने की थी। अपने शिकार को मुँह में ले के उगलने की मै तो पूरे  गोकुल को ही अपने मुँह में समाहित कर सकता हु।और वैसे भी सर्प की कुंडली में जो जकड गया उसे तो देवता भी नहीं छुड़ा सकते है।  मुझे जाने की आज्ञा दे। कंस बहुत ही प्रसन्न होता है और उसे जाने की आज्ञा देता है। 
    अघासुर का गोकुल जाना 
    अघासुर भी बहुत मायावी था वो अपने शरीर का आकर को मनचाहा बड़ा सकता था परन्तु कृष्णा तो मायापति थे उनसे भला कुछ कैसे चुप पाता।अघासुर गोकुल आता है और जहा कृष्णा सहित सारे  बाल गोपाल गैया चराते थे वही कही पर जाकर अपने शरीर को बड़ा करके और अपने विशाल मुँह को खोल कर स्थिर हो जाता है। देखने में ऐसा लगता मानो कोई बहुत बड़ी गुफा हो। और फिर अघासुर कृष्णा की  राह देखने लगता है। 
     कृष्णा द्वारा अघासुर का वध होना 
    दुसरे दिन कृष्णा और मनसुखा ,श्रीदामा वा दुसरे बालगोपाल गैया चराने जाते है और खेलते है खेलते खेलते वे थोड़ा आगे निकल आते है तो वे सब एक गुफा को देखकर चौक पड़ते है। मनसुखा बोलता है -अरे ये गुफा कहा से आ गई पहले तो यहाँ कोई गुफा नहीं थी। यहाँ तो बहुत घनी झाडिया थी। श्रीदामा कहता है -अरे कल रात आंधी आयी थी ना उड़ गई  हो गी । मनसुखा बोलता है -हा ये हो सकता है चलो चल कर देखते है। फिर सारे ग्वाले उस गुफा में जाते है जो वास्तव में अघासुर था। अंदर जाकर मनसुखा कृष्णा से कहता है -कृष्णा अंदर आओ देखो कितनी लम्बी सुरंग है। कृष्णा जी तो सर्वज्ञाता है वो तो सब जानते थे परन्तु अपनी लीला को विस्तार देने के लिए वे अंदर गए। श्रीदामा कहता है -ये गुफा कितनी ठंडी है आज से हम यही भोजन किया करेंगे। 
    तभी अघासुर अपना मुख बंद कर लेता है। फिर सारे ग्वाले बिन जल के मछली की तरह तड़पने लगते है और कृष्णा को जोर जोर से पुकारने लगते है और प्राणवायु न मिलने के कारन वे बेहोश हो जाते है। फिर भगवान् कृष्णा अपना शरीर का आकर बड़ा करके अघासुर के  मुख को खोलते है और फिर अघासुर के  मुख को तोड़कर उसका वध कर देते है। ऐसा होते ही आकाश से सरे देवता पुष्प वर्षा करते है और मंगल गीत गाते है। फिर सारे ग्वाल बाल होश में आ जाते है तो वे देखते है की अघासुर मारा पड़ा है वे सब कृष्णा से पूछते है की ये सब किसने किया तो भगवान् बोलते है की ईश्वर ने हम सब को इस अघासुर से बचाया है। इसके बाद सब अपने घर की ओर चल पड़ते है 
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