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  • The legend of the arrival of Kali Yuga and King Parikshit

       कलयुग के आगमन और राजा परीक्षित की कथा।

    राजा परीक्षित कौन थे। 

    आज से 5000 हजार साल पहले जब भगवान श्री कृष्ण अपने धाम वापस चले गए । पांडव द्रौपति सहित स्वर्ग चले गए थे तो उनके राज्य को पांडवो का नाती जिसका नाम राजा परीक्षित  था वो संभाल रहा था। वो बड़ा ही प्रतापी राजा था। राजा परीक्षित  अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। जब ये गर्भ मे थे तो अस्वाथमा ने  ब्रम्हशिर अस्त्र से परीक्षित को मारने का प्रयत्न किया था परंतु भगवान कृष्ण ने इनको बचा लिया था। परीक्षित प्रजापालक एवं कर्तव्यनिष्ठ राजा थे उंन्होने तीन अश्वमेध यज्ञ किये तथा कई धर्मनिष्ठ कार्य किये।
    कलयुग का आगमन 
    जिस समय राजा परीक्षित का राज चल रहा था उस समय एक दिन गाय रूपी धरती एक जगह खड़ी  रो रही थी । उसी समय वहा  बैल रूपी धर्म आया और धरती से पूछा की -"हे देवी आप इतनी दुखी और मलिन क्यो लग रही है क्या आप इस बात से दुखी तो नहीं की मेरे केवल एक ही पैर बचा है। "
    तो धरती ने बोला -"हे धर्म सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने हो ,मै तो इसलिए दुखी हू की जब भगवान श्री कृष्ण थे तो उनके चरण कमल मुझ पर पड़ते थे और मै आनंदित होती थी परंतु जब से वो गए है तब से मै दुखी हू । "
    वो दोनों बाते कर रहे थे की वहा पर कलयुग आ जाता है और बड़ी ज़ोर ज़ोर से हसता हुआ और अपने हाथ मे डंडा से दोनों को बुरी तरह  मारने लगता  है। तभी वहा राजा परीक्षित आ जाते है और देखते है की एक काला सा दैत्यकार मानव कामधेनु के समान सुंदर गाय और एक सफ़ेद सुंदर बैल जिसके केवल एक ही पैर है उनको अत्यंत क्रूरता से मार रहा है।
    महाराज परीक्षित ने जोर से कहा- दुष्ट पापी! तू कौन है? इन निरीह गाय तथा बैल को  क्यों सता रहा है? तू महान अपराधी है। तेरे अपराध का उचित दण्ड तेरा वध ही है।" उनके इन वचनों को सुन कर कलियुग भय से काँपने लगा। और  त्राहि-त्राहि करने लगा और उनसे अपने जीवन की भीख मांगने लगा।
     राजा परीक्षित ने कलयुग से कहा की -"तुम मेरी शरण मे आए हो इसलिए मै तुमको जीवनदान देता हू परंतु तुमको यहा से जाना होगा। और फिर कभी लौट कर मेरे राज्य मे मत आना क्यो की सारे पापो का कारण केवल तू  ही है। " गाय और बैल भी अपने असली रूप मे आ गए और अपने दुख का कारण बताया
    तब कलयुग ने कहा की -"हे राजन सारी पृथ्वी पर तो केवल आपका ही राज्य है फिर मै कहा जाऊ और द्वापरयुग समाप्त हो चुका है और मेरा इस समय यहा होना काल के अनुरूप ही है "
    तब राजा सोच मे पड़ गए और फिर बोले की -"हे कलियुग! द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन और हिंसा इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। इन चार स्थानों में निवास करने की मैं तुझे छूट देता हूँ।"
    तब कलयुग ने कहा की ये चारो स्थान मेरे लिए पर्याप्त नही है कोई एक स्थान और दे तब राजा ने कलयुग को स्वर्ण मे रहने की अनुमति दे दी । यही पर  राजा परीक्षित से गलती हो गई कलयुग आदृश्य होकर राजा के स्वर्ण मुकुट मे आकर बैठ गया ।
    इसके बाद राजा आगे चल दिये आगे चलने पर वो प्यास से तड़पने लगे वो शमिक ऋषि का आश्रम दिखा वो ऋषि के पास गए और उनसे पानी मांगा परंतु ऋषि ध्यान मे लीन थे वो राजा की पुकार सुन न सके । कलयुग के कारण राजा को बड़ा क्रोध आया । वो ऋषि को दंड देना चाहते थे परंतु उनके अच्छे कर्मो ने उनको रोक लिया । फिर उन्होने देखा की पास ही एक मारा हुआ सर्प पड़ा है कलयुग के प्रभाव से उन्होने वो मरा हुआ सर्प शमिक ऋषि के गले मे डाल दिया और राजमहल वापस आ गए ।और वापस आ कर जैसे ही राजा ने अपना मुकुट उतारा वैसे ही वो कलयुग के प्रभाव से मुक्त हुये और उन्हे अपनी गलती का भान हुआ और वो बहुत पछताए । और उधर  उस शमिक ऋषि का पुत्र शृंगी बडा ही तेजस्‍वी था उस समय वह नदी में नहा रहा था। दूसरे ऋषि कुमारों ने आकर उसे सारा वृत्तान्त सुनाया की कैसे एक राजा ने आपके पिता का अपमान किया है।
    इस बात से शृंगी बड़ा ही क्रोधित हुआ और उसी समय अपनी हाथ मे जल लेकर श्राप दिया की-"जिस अभिमानी और मूर्ख राजा ने मेरे पिता का ऐसा घोर अपमान किया है उसको आज से सातवे दिन तक्षक नाग डस लेगा और उसकी जीवन लीला समाप्त हो जायगी "
    जब ये बात राजा को पता चली तो उन्होने बहुत छमा मागी परंतु छमा नहीं मिली तब रिसियों द्वारा बताए जाने पर राजा परीक्षित ने श्रीमद्भागवत कथा का  स्रवण किया और मुक्ति को प्राप्त हुए ।





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