mouth of krishna |
भगवान् कृष्ण अपनी लीला का विस्तार करे जा रहे थे और कई असुरो का वध भी कर चुके थे। इसी बीच एक दिन मैया भगवान् को लेकर यमुना के किनारे अपनी सखियों के साथ स्नान करने पहुंची। मैया ने कृष्णा को एक जगह पर बैठाया और खुद स्नान करने चली गई। भगवान् कृष्ण जो अनंत है वो मिटटी में बैठे है। कुछ सखिया यशोदा से पूछ रही है की -क्यों रे यशोदा आज कन्हा को भी ले आयी। तो यशोदा बोली -क्या करू ये है ही इतना शैतान कल माखन का बड़ा सा गोला खाने जा रहा था अपच हो जाती तो। तभी दूसरी सखी बोली-अरे ग्वाले का बालक है माखन मिश्री नहीं खायेगा तो क्या खाइयेगा। तभी भगवान् अपनी तोतली बोली में बोले -मैंने माखन नहीं खाया। तो मैया बोली -आ आ ह ह मैंने माखन नहीं खाया झूठा कही का। यशोदा कितनी भाग्यशाली है की परमपिता परमेश्वर को भी डांट रही है। यशोदा ,कृष्ण से बोलती है की -देख कान्हा चुपचाप यही बैठ मै अभी स्नान करके आती हूँ। तभी एक गोपी यशोदा को ताने देते हुए बोली -अरे कान्हा तेरी मैया पहली बार तुझे घाट पर लायी है और बंदी बना कर रख दिया है अगर मेरी माँ ऐसा करती तो मै भी मटकी फोड़ती। तो मैया बोलती है की -अरे इसे ऐसे सीख मत दे ये प्रतिदिन एक मटकी फोड़ सकता है। तभी एक और सखी बोलती है की -अरे तो क्या हुआ अगर प्रतिदिन एक मटकी फोड़ता भी है तो नन्द बाबा की कोई हानि नहीं होने वाली।
यशोदा यमुना जी में स्नान करने के लिए प्रवेश करती है और यमुना जी से प्राथना करती है की -हे यमुना मैया मेरे लाल का कल्याण करना ,गोकुल का कल्याण करना सारे विश्व का कल्याण करना। इधर मैया स्नान कर रही है और उधर कृष्ण मिटटी से खेल रहे है तभी वहाँ पृथ्वी माता प्रकट होती है और भगवान् के चरणों को छूकर प्रणाम करती है और कहती है की - हे प्रभु; अपनी दासी पृथ्वी का प्रणाम स्वीकार करे। आज आपने पहली बार अपने दिव्य चरण मेरे वछ स्थल पर रक्खे है आज तक आप पलने में या माता की गोद में ही रहते थे। यमुना जी ने तो आपके जन्म के समय में ही श्री चरणों को स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया था लेकिन मुझे राह तकनी पड़ी। आज आपने मुझ पर कृपा की है मै तो ख़ुशी के मारे पागल हुई जा रही हूँ मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है की मै आपको क्या दू ,मेरे पास तो केवल मिटटी और कंकड़ ही है। ये कह कर धरती माँ के आँखों में अश्रु आ गए।
तभी भगवान् विष्णु \प्रकट हुए और बोले की -हे धरती माता सारे विश्व में तुम जैसा छमाशील और कोई नहीं है। तुम्हारी धरती पर साधु जन भी विचरते है और महा पापी भी अपने क्रूर चरण धरती पर रखकर चलते है। कुछ लोग तुम्हारी धरती पर पुण्य कर्मो के फूल खिलाते है। और कुछ तेरी धरती पर पाप का लहू बहाते है। परन्तु तुम सबको सहन करती हो सबको अपनी गोद में धारण करती हो। अपना सीना फाड़ कर सबके लिए अन्न देती हो सबका भरण पोषण करती हो। माँ की तरह ही अपने सभी बालको का कल्याण ही करती हो किसी का अहित नहीं करती हो इसलिए हे माँ तेरी ये मिटटी इतनी पवित्र है ,इससे अच्छी भेट मेरे लिए और क्या होगी अतः मै इसे ही नैवैद्य समझकर स्वीकार करता हूँ।
dharti mata |
इसके बाद भगवान् कृष्ण ने बड़े ही प्रेम से मिटटी खाना शुरू किया और खूब मिटटी खायी।तभी एक गोपी कृष्ण को मिटटी खाते हुए देख लेती है और जा कर यशोदा से कहती है की -यशोदा तेरा लल्ला तो मिटटी खा रहा है। तभी यशोदा कृष्ण के पास जाती है और देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है तब मैया अपने पल्लू से कृष्ण का मुँह साफ़ करती है की एक गोपी बोलती है की अरे बाहर से क्या साफ करती है मुँह के अंदर तो देख कितना बड़ा मिटटी का गोला खाया है। इतना कहकर सारी गोपिया वहा से चली जाती है तो मैया कृष्ण से पूछती है की मिटटी क्यों खाई खोल मुँह ,तो कृष्ण बड़े ही प्यार से बोलते है की -मैया मैंने मिटटी नहीं खाई।
तो मैया बोलती है -झूठा कही का ,मिटटी नहीं खाई खोल मुँह। तब भगवान् को विवश होकर अपना मुँह खोलना पड़ा तो यशोदा भगवान् के मुँह में देखती है तो उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रह जाता है वो देखती है की सारा भूमण्डल ,सारे गृह नक्छत्र तारे ,धरती आकाश पाताल सागर नदिया तीनो लोक ,पहाड़, ब्रम्हा ,विष्णु, महेश सब के सब मुँह के अंदर है यहाँ तक की वो अपने आप को भी और कृष्ण को भी कृष्ण के ही मुँह में ही देख रही है उसकी मति भ्रमित हो जाती है।
तभी वहाँ भगवान् विष्णु प्रकट होते है और यशोदा को सत्य का वास्तविक ज्ञान कराते है उसके बाद अपनी माया का पर्दा डालकर वहाँ से अन्तर्ध्यान हो जाते है। तब यशोदा अपने होश में आती है तो देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है उसे कुछ भी याद नहीं रहता है वो हाथ जोड़कर ईश्वर से प्राथना करती है की उसके पुत्र की रकछा करे और फिर कृष्ण का मुँह साफ़ करके अपने साथ घर ले आती है।
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