/> -->

SUNIL GUPTA

I am a Writer

Sunil Gupta

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit, sed diam nonummy nibh euismod tincidunt ut laoreet dolore magna aliquam erat volutpat. Ut wisi enim ad minim veniam, quis nostrud exerci tation ullamcorper suscipit .
Erat volutpat. Ut wisi enim ad minim veniam, quis nostrud exerci tation ullamcorper.

  • 112 United Nagar Kanpur,India
  • +918858194776,+916393894046
  • sunielgupta.86@gmail.com
Me

My Professional Skills

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit, sed diam nonummy nibh euismod tincidunt ut laoreet dolore magna aliquam erat volutpat.

Deta Entry 90%
Typing 70%
Painting 95%

Deta Entry

I can deta entry work with complete accuracy and satisfaction

Typing

I can typing work very short time and targated time

Painting

I will can make a beautiful painting .different image and colour

Fast support

I will support you 24*7 days.you contact me anytime

div>
0
completed project
0
design award
0
facebook like
0
current projects
  • krishna and trinavart

    krishna and trinavart

                   तृणावर्त  का उद्धार 

    krishna and trinavart

    पूतना के वध के बाद कंस बहुत ही क्रोधित,दुखी और अचंभित हुआ की 6 दिन का बालक ने पूतना जैसी विशाल और भयानक  दैत्य का वध कैसे कर दिया और फिर ये सब सोचने के बाद कंस को पूरा भरोसा हो गया की वो कृष्ण ही है जिसे मै खोज रहा हू। और फिर उसने पूतना से भी ज्यादा शक्तिशाली दैत्य और अपने सेवक को बुलाया  जिसका नाम था तृणावर्त ।
    तृणावर्त बहुत ही विशाल था वो एक बवंडर के रूप मे था जो बहुत तेज घूमता था वो कंस के पास आता है और बोलता है की क्यो बुलाया है आपने मुझे । तो कंस उसे सारी बात बताता है तो उसे बड़ा आश्चर्य होता है। कंस उसे बताता है की वो बहुत ही मायावी बालक है।

    तृणावर्त का गोकुल आना 

    वहा  गोकुल मे सब शांति से चल रहा था चरो और खुशहली और हरियाली थी। सारे ग्वाले अपना काम कर रहे थे बछड़े गाय का दूध पी रहे थे। कृष्ण जी यशोदा माँ के साथ खेल रहे थे। तभी तृणावर्त वहा आ जाता है बड़ा विशाल और बहुत तेज़ घूमता हुआ बवंडर का रूप लिए वो दैत्य बहुत ही भयानक लग रहा था।
    कृष्ण जी मैया के साथ खेल रहे थे की मैया ने देखा की आसमान मे बादल घिर आए है। और हवाए बहुत तेज़ गति से चलने लगी थी। पूरे ब्रज मे धूल भरी आँधी चलने लगी है। यशोदा माँ कृष्ण को दरवाजे की चौखट पर बैठा कर गाय के पास जाती जो की बहुत डरी हुई थी ।
    तभी वहा तृणावर्त आ जाता है और वो ऐसे हवा चलाता  है की किसी को कुछ दिखाई नही देता है।तभी तृणावर्त कृष्ण को उठा ले जाता है। तृणावर्त कृष्ण को बहुत उचाई पर ले जाता है । और यहा नीचे सब कृष्ण को ना पाकर सब व्याकुल हो जाते है। तभी एक ग्वाला देखता है की कृष्ण को वो तृणावर्त अपने साथ ले गया है ।
    वहा ऊपर तृणावर्त कृष्ण से बोलता है की -"अरे तू इतना छोटा और हल्का है की तुझको मै अपनी उँगलियो से मसल दूँगा । पता नही क्यो कंस महाराज इस छोटे से बालक से डरते है की इसे मारने के लिए उन्होने मुझ जैसे बलवान असुर को यहा भेजा है। "
    तृणावर्त अपने ही विचारो मे खोया था की कृष्ण जी अपना शरीर का वजन बढ़ाने लगते है और तृणावर्त को लगता है की उसने नीलगिरी पर्वत उठा लिया हो। तृणावर्त कृष्ण जी के वजन को संभाल नही पा रहा था । तभी कृष्ण जी उसकी गर्दन दबाने लगते है । तृणावर्त बहुत प्रयास करता है अपने आप को मुक्त कराने का परंतु आसफल रहता है। और अंत मे कृष्ण जी के द्वारा तृणावर्त मारा जाता है।
    तृणावर्त का मृत शरीर एक स्थान पर आकर गिरता है तभी सभी गावों वाले भी वहा पर आ जाते है । वो सब देखते है की तृणावर्त मरा पड़ा है और कृष्ण जी उसकी छाती पर खेल रहे है। इस प्रकार भगवान ने तृणावर्त का वध किया ।

    तृणावर्त कौन था 

    बहुत पहले की बात है पांडु देश मे एक सहस्त्राक्छ नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन वह अपनी रानियो के साथ जल क्रीडा कर रहा था। और क्रीडा करते करते वह बहुत मगन हो गया था । उसी समय वहा  से दुर्वासा ऋषि निकलते है और वह ऋषि को प्रणाम करना भूल जाता है। दुर्वासा ऋषि बहुत ही क्रोधि स्वभाव के थे अतः उन्हे राजा का प्रणाम न करना अपना अपमान लगता है और वो राजा को श्राप दे देते है की जिस प्रकार तू जल मे घूम रहा है उसी प्रकार दैत्य कुल मे जन्म लेकर मिट्टी और धूल मे घूमेगा । राजा को अपनी भूल का भान होता है और वो दुर्वासा ऋषि से छमा मांगते है और अपनी मुक्ति का उपाय पूछते है।
    तब दुर्वासा ऋषि कहते है की -हे राजन जब भगवान विष्णु द्वापर युग मे कृष्ण अवतार लेगे तब उनके द्वारा मारे जाने पर ही तुम्हारा उद्धार होगा । बाद मे वही राजा  तृणावर्त बना और कृष्ण के द्वारा मारा गया और मुक्त हुआ।


  • pootna koun thi

    pootna koun thi

                         पूतना कौन थी             


    पूतना कौन थी ? पूतना कोई साधारण स्त्री नहीं थी। पूर्वकाल में वह राजा बलि की बेटी थी, जिसका नाम  रत्नमाला  था । वो बहुत ही गुणवान और रूपवती थी। 
    एक बार जब राजा बलि अपने 100 अस्वामेद्घ यज्ञ पूरे करने वाले थे तो उस समय भगवान वामन राजा बलि की  परीक्षा लेने आए । वामन भगवान बहुत सुंदर और छोटे थे। 
    भगवान वामन आए तो उनका रूप सौन्दर्य देखकर  रत्नमाला  की ममता जाग  उठी । रत्नमाला ने सोचा की  'मेरा विवाह होने के बाद मुझे भी ऐसा ही पुत्र प्राप्त हो तो मैं उसको गले लगाऊं और उसको अपना खूब दूध पिलाऊं।'भगवान वामन ने रत्नमाला की इच्छा जानकार उसको तथास्तु कहा ।  परंतु जब छोटे से वामन भगवान विराट हो गया और उसने बलि राजा का सर्वस्व छीन लिया तो रत्नमाला क्रोधित हो गई अपने मन मे कहा की "मैं इसको दूध पिलाऊं? नहीं इसको तो मैं जहर पिलाऊं, जहर!'भगवान वामन ने रत्नमाला की यह इच्छा भी जानकार उसको तथास्तु कहा ।  
    कालांतर में वही राजकन्या पूतना हुई। संयोग ऐसा बैठा कि विष्णु अवतार कान्हा को दूध भी पिलाया और जहर भी। उसे भगवान ने अपने स्वधाम भेज दिया।तब पूतना कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी थी और श्रीकृष्ण को स्तनपान के जरिए विष देकर मार देना चाहती थी। कृष्ण को विषपान कराने के लिए पूतना ने एक सुंदर स्त्री के रूप में वृंदावन जा पहुंची। जैसे ही पूतना ने बालक कृष्ण को स्तनपान कराया। उसी दौरान श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया। इस तरह श्री हरि ने दो अवतारों में पूतना की इच्छा पूर्ण की।



  • pootna ka uddhar

    pootna ka uddhar

                       पूतना का उद्धार 

    krishna ko doodh pilati hue pootna

    जब कंस को पता चला की उसको मारने वाला गोकुल पहुच चुका है तो उसको बड़ी चिंता होने लगी की आखिर वो कौन है उसको कैसे पहचाना जाए । 5 दिन बीत गए थे  इसी बीच उसका मंत्री आता है और उसको ये राय देता है की क्यो ना गोकुल मे सभी नवजात शिशुवों ही हत्या करवा दी जाए इससे वो भी मर जायेगा जिससे आपको भय है।
    तो कंस बोलता है की -"अरे मूर्ख अगर हम लोगो ने ऐसे किया तो सारी प्रजा बगावत कर देगी और हमारी सत्ता हो सकता है हमारे हाथ से चली जाए । "कोई दूसरा उपाय बताओ । तब उसके मंत्री ने पूतना का नाम सुझाया तो कंस के मुख पर एक चमक आ गई।
    कंस ने पूतना को बुलाया  -तब कंस ने पूतना को बुलाया वो बड़ी ही विशाल आकार वाली काले मुख वाली उसकी बड़ी बड़ी भयानक आंखे थी बड़े बड़े दाँत और नख थे । वो बड़ी ज़ोर ज़ोर से हस रही थी। पूतना ने कहा -"कहो कंस महाराज मुझे कैसे याद किया । "कंस ने पूतना से कहा- "हे पूतना गोकुल मे हमे मारने वाला कोई जन्म ले चुका है जाओ उसे मार दो "पूतना ने कहा की एक छोटे से शिशु के लिए आपने मुझे बुलाया है । तब कंस बोला की वो कोई साधारण बालक नही है बहुत मायावी है । तुम जाओ और बड़ी ही चालाकी से उसको मार दो । फिर पूतना ने एक योजना बनाई की वो कृष्ण को अपना दूध पिला कर मार देगी और उसने अपने स्तनो मे जहर लगा लिया
    << पूतना कौन थी ये जानने के लिए यहा क्लिक करे >>
    पूतना भेष बदलकर गोकुल गई
    जब पूतना गोकुल पहुची तो वह पर हर तरफ कृष्ण के जन्म की खुशिया मनाई जा रही थी ।कृष्ण को जन्म लिए आज 6दिन हो गए थे । पूतना ने देखा की सब औरते एक ही घर मे जा रही है तो वो समझ गई की यही वो बालक है जिसको मारने के लिए कंस ने हमे यहा भेजा है। वो तुरंत ही अपना रूप  बदल  लेती है और एक सुंदर स्त्री बन जाती है ।
    अपने दोनों हाथो मे कमल के फूल ले के उन्हे घूमाते हुए वो चल रही थी जो कोई भी उसे देखता वो देखता ही रह जाता जैसे कोई अप्सरा ही धरती पर आ गई हो। वो सब से नन्द बाबा का घर का पता पूछती थी।
    बाल कृष्ण द्वारा पूतना का वध होना
    जब पूतना नन्द जी के भवन पहुची तो बहुत भीड़ थी वो एक गोपी से पूछती है की बालक कहा है तो वो गोपी भी उसे देखती रह जाती है फिर वो गोपी से पूछती है की बालक की माँ कहा है तो गोपी उसे यशोदा की तरफ इसारे से बताती है। फिर वो यशोदा के पास जाती है और उसे खूब गले लगती है और बधाई देती है। यशोदा पूतना को  पहचान नही पाती है और उससे पूछती है की -आप कौन है तो पूतना यशोदा से कहती है की वो उसकी दूर की चचेरी बहन है । फिर वो कृष्ण को अपने गोद मे लेने के जिद करने लगती है। तो यशोदा मान जाती है। और कृष्ण को पूतना की गोद मे दे देती है।
    फिर पूतना कृष्ण को खिलाने लगती है और मौका पाकर कृष्ण को अपना विषैला दूध पिलाने लगती है । कृष्ण उसका दूध बड़े प्रेम से पीने लगते है पूतना को लगता है की अब ये बालक मर जायेगा परंतु कृष्ण दूध के साथ साथ उसका प्राण भी खीचने लगते है। पूतना को अब बहुत ही पीड़ा होने लगी वो कृष्ण को अपने से दूर करने लगी परंतु वो विफल रही अब वो इधर उधर भागने लगी और अपने असली रूप मे आ गई
    उसका ये रूप देख कर सब डर गए । पूतना अब अपने विशाल भयानक रूप मे आ चुकी थी और आकाश मे उड़ने लगी थी परंतु कृष्ण ने उसको नही छोड़ा था। और उसका प्राण कृष्ण ने हर लिया पूतना एक जगह गिर पड़ी और उसकी आत्मा कृष्ण मे लीन हो गई । कृष्ण ने पूतना को वही गति प्रदान की जो उन्होने माँ यशोदा के लिए सोच कर रखी थी।
    सब लोग भागते हुए आए तो देखा की पूतना  मरी पड़ी है और बाल कृष्ण खेल रहे है। यशोदा ने कृष्ण को उठा कर अपने गले से लगाया । घर ले जाकर यशोदा माँ ने कृष्ण की नज़र गाय की पूछ से उतारी थी।
    पूतना का अंतिम संस्कार करना
    पूतना का मृत शरीर वह पड़ा था तो नन्द बाबा ने सोचा की अगर ये शरीर यहा ऐसा ही पड़ा रहा तो सड़ेगा और बीमारी फैलेगी तो उन्होने गाव वालों के साथ मिलकर उसके शरीर को कई टुकड़ो मे बाट दिया और फिर कई सारी चिताए बनाकर उन टुकड़ो को जला दिया जब वो चिताए जल रही थी तो उसमे से एक विशेष प्रकार की सुगंध आ रही थी जिससे पूरा गोकुल सुगंधित हो रहा था।
    इस प्रकार बालकृष्ण ने पूतना का उद्धार किया

  • The legend of the arrival of Kali Yuga and King Parikshit

    The legend of the arrival of Kali Yuga and King Parikshit

       कलयुग के आगमन और राजा परीक्षित की कथा।

    राजा परीक्षित कौन थे। 

    आज से 5000 हजार साल पहले जब भगवान श्री कृष्ण अपने धाम वापस चले गए । पांडव द्रौपति सहित स्वर्ग चले गए थे तो उनके राज्य को पांडवो का नाती जिसका नाम राजा परीक्षित  था वो संभाल रहा था। वो बड़ा ही प्रतापी राजा था। राजा परीक्षित  अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। जब ये गर्भ मे थे तो अस्वाथमा ने  ब्रम्हशिर अस्त्र से परीक्षित को मारने का प्रयत्न किया था परंतु भगवान कृष्ण ने इनको बचा लिया था। परीक्षित प्रजापालक एवं कर्तव्यनिष्ठ राजा थे उंन्होने तीन अश्वमेध यज्ञ किये तथा कई धर्मनिष्ठ कार्य किये।
    कलयुग का आगमन 
    जिस समय राजा परीक्षित का राज चल रहा था उस समय एक दिन गाय रूपी धरती एक जगह खड़ी  रो रही थी । उसी समय वहा  बैल रूपी धर्म आया और धरती से पूछा की -"हे देवी आप इतनी दुखी और मलिन क्यो लग रही है क्या आप इस बात से दुखी तो नहीं की मेरे केवल एक ही पैर बचा है। "
    तो धरती ने बोला -"हे धर्म सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने हो ,मै तो इसलिए दुखी हू की जब भगवान श्री कृष्ण थे तो उनके चरण कमल मुझ पर पड़ते थे और मै आनंदित होती थी परंतु जब से वो गए है तब से मै दुखी हू । "
    वो दोनों बाते कर रहे थे की वहा पर कलयुग आ जाता है और बड़ी ज़ोर ज़ोर से हसता हुआ और अपने हाथ मे डंडा से दोनों को बुरी तरह  मारने लगता  है। तभी वहा राजा परीक्षित आ जाते है और देखते है की एक काला सा दैत्यकार मानव कामधेनु के समान सुंदर गाय और एक सफ़ेद सुंदर बैल जिसके केवल एक ही पैर है उनको अत्यंत क्रूरता से मार रहा है।
    महाराज परीक्षित ने जोर से कहा- दुष्ट पापी! तू कौन है? इन निरीह गाय तथा बैल को  क्यों सता रहा है? तू महान अपराधी है। तेरे अपराध का उचित दण्ड तेरा वध ही है।" उनके इन वचनों को सुन कर कलियुग भय से काँपने लगा। और  त्राहि-त्राहि करने लगा और उनसे अपने जीवन की भीख मांगने लगा।
     राजा परीक्षित ने कलयुग से कहा की -"तुम मेरी शरण मे आए हो इसलिए मै तुमको जीवनदान देता हू परंतु तुमको यहा से जाना होगा। और फिर कभी लौट कर मेरे राज्य मे मत आना क्यो की सारे पापो का कारण केवल तू  ही है। " गाय और बैल भी अपने असली रूप मे आ गए और अपने दुख का कारण बताया
    तब कलयुग ने कहा की -"हे राजन सारी पृथ्वी पर तो केवल आपका ही राज्य है फिर मै कहा जाऊ और द्वापरयुग समाप्त हो चुका है और मेरा इस समय यहा होना काल के अनुरूप ही है "
    तब राजा सोच मे पड़ गए और फिर बोले की -"हे कलियुग! द्यूत, मद्यपान, परस्त्रीगमन और हिंसा इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। इन चार स्थानों में निवास करने की मैं तुझे छूट देता हूँ।"
    तब कलयुग ने कहा की ये चारो स्थान मेरे लिए पर्याप्त नही है कोई एक स्थान और दे तब राजा ने कलयुग को स्वर्ण मे रहने की अनुमति दे दी । यही पर  राजा परीक्षित से गलती हो गई कलयुग आदृश्य होकर राजा के स्वर्ण मुकुट मे आकर बैठ गया ।
    इसके बाद राजा आगे चल दिये आगे चलने पर वो प्यास से तड़पने लगे वो शमिक ऋषि का आश्रम दिखा वो ऋषि के पास गए और उनसे पानी मांगा परंतु ऋषि ध्यान मे लीन थे वो राजा की पुकार सुन न सके । कलयुग के कारण राजा को बड़ा क्रोध आया । वो ऋषि को दंड देना चाहते थे परंतु उनके अच्छे कर्मो ने उनको रोक लिया । फिर उन्होने देखा की पास ही एक मारा हुआ सर्प पड़ा है कलयुग के प्रभाव से उन्होने वो मरा हुआ सर्प शमिक ऋषि के गले मे डाल दिया और राजमहल वापस आ गए ।और वापस आ कर जैसे ही राजा ने अपना मुकुट उतारा वैसे ही वो कलयुग के प्रभाव से मुक्त हुये और उन्हे अपनी गलती का भान हुआ और वो बहुत पछताए । और उधर  उस शमिक ऋषि का पुत्र शृंगी बडा ही तेजस्‍वी था उस समय वह नदी में नहा रहा था। दूसरे ऋषि कुमारों ने आकर उसे सारा वृत्तान्त सुनाया की कैसे एक राजा ने आपके पिता का अपमान किया है।
    इस बात से शृंगी बड़ा ही क्रोधित हुआ और उसी समय अपनी हाथ मे जल लेकर श्राप दिया की-"जिस अभिमानी और मूर्ख राजा ने मेरे पिता का ऐसा घोर अपमान किया है उसको आज से सातवे दिन तक्षक नाग डस लेगा और उसकी जीवन लीला समाप्त हो जायगी "
    जब ये बात राजा को पता चली तो उन्होने बहुत छमा मागी परंतु छमा नहीं मिली तब रिसियों द्वारा बताए जाने पर राजा परीक्षित ने श्रीमद्भागवत कथा का  स्रवण किया और मुक्ति को प्राप्त हुए ।





  • सतयुग ,त्रेतायुग,द्वापरयुग,कलयुग

    सतयुग ,त्रेतायुग,द्वापरयुग,कलयुग

                    युग कितने प्रकार के  होते है । 

    दोस्तो इस पूरे संसार मे समय का अपना एक अलग ही महत्तव है । हर चीज समय से ही जुड़ी होती है।
    दोस्तो जैसा की हम जानते है की.................
     एक साल मे 12 महीने (365 दिन )होते है ।
    एक महीने मे 30 दिन होते है ।
    एक दिन मे 24 घंटे होते है ।
    एक घंटे मे  1440 मिनट होते है ।
    उसी प्रकार युगो को भी 4 भागो मे बाटा गया है। और हर युग के 4 चरण होते है  जो इस प्रकार है ।
    1   सतयुग                                                                         
    2  त्रेतायुग
    3   द्वापरयुग
    4   कलयुग

                            सतयुग      

    इस युग को धरती का स्वर्णिम काल कहा जाता है। इस युग के लोग धर्म पारायण होते थे । और दीर्घ आकृति वाले और दीर्घ आयु वाले होते थे । इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने चार पैरो पर खड़ा था ।


     सतयुग के अवतार : सतयुग मे भगवान विष्णु  के 4 अवतार मत्स्य, कूर्म, वराह और नृसिंह हुए है । सतयुग का कालखंड  1,728,000 बर्सों का था।   

                             त्रेतायुग 

    इसके बाद शुरू होता है त्रेतायुग जो की दूसरा युग है। इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने तीन पैरो पर खड़ा था ।

    त्रेतायुग के अवतार : इस युग में भगवान विष्णु के तीन अवतार वामन ,परशुराम और राम प्रकट हुए थे। त्रेतायुग का कालखंड 1,296,000 बर्सों का था।   

                           द्वापरयुग 

    मानव युग मे इसको तीसरा युग भी कहते है ।इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने दो  पैरो पर खड़ा था ।इस युग मे पाप ज्यादा हो रहा था ।

    द्वापरयुग के अवतार : इस युग मे भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया था । द्वापरयुग का कालखंड 864,000 बर्सों का था।   

                              कलयुग  

    इस युग को मानव चौथा युग भी कहते है। कलयुग मे पाप अपनी चरम सीमा भी पार कर लेगा।  झूठ और अधर्म का ही बोल बाला रहेगा । न्याय सिर्फ गरीबो के लिए ही रहेगा । भाई भाई को मरेगा ।  इस युग मे बैल रूपी धर्म अपने एक पैर पर खड़ा होगा।

    कलयुग के अवतार : श्रीमदभागवतपूराण के अनुसार जब पाप अपनी चरम सीमा भी पार कर लेगा तब भगवान विष्णु   कल्कि अवतार धारण करेगे और पापियो का नाश करेगे। कलयुग का कालखंड 432,000  बर्सों का है। 

                                                                    god is great 













  • krishna janam mahotsav

    krishna janam mahotsav

                                         कृष्ण  जन्म महोत्सव       




         जब कृष्ण गोकुल पहुचे तो सारे ब्रज मे उल्लास मनाया गया । धरती खिल उठी मुरझाए फूल खिल गए शीतल वायु बहने लगी तरह तरह के पच्ची गीत गाने लगे । कृष्ण जी को एक सुंदर से झूले मे लिटाया गया उनको सुंदर कपड़े पहनाए गए । तरह तरह के बधाई गीत गाये जा रहे थे । पूरा गोकुल मे उत्सव का महोल था ऐसा लग रहा था मानो  की जैसे कोई उत्सव हो ,और हो  भी   क्यो न आखिर भगवान श्री कृष्ण ने जन्म लिया था । 

                                               कृष्ण  जन्म महोत्सव की तैयारी  

    कृष्ण  जन्म महोत्सव की तैयारी  मे तो पूरा गोकुल ही लगा था । नन्द बाबा ने पूरे गोकुल को भोजन करने की तैयारी मे लगे थे तो माँ यशोदा कृष्ण जी को तैयार करने और पूरे भवन की साज सज्जा मे लगी थी । 


    कोई कुछ काम कर रहा था तो कोई कुछ सब अपने अपने काम मे लगे थे । कोई सभी गायों को साफ कर रहा था । कोई नगर को सजा रहा था । कृष्ण जन्म महोत्सव की तैयारी अपने पूरे ज़ोर पर थी। 
    सारी धरती मे एक अजीब सी शांति और खुशी की अनुभूति हो रही थी । और होना भी चाहिए क्यो की उनके तारण हार जे अवतार लिया था । मनुस्यों के साथ साथ आकाश मे देवता भी इस उत्सव को बड़ी धूम धाम से मना रहे थे । आकाश से फूलो की वर्षा हो  रही थी सारे देवता भी कृष्ण के इस बाल रूप का दर्शन करना चाहते थे और उनमे से तो कई देवता मनुस्य का रूप ले कर गोकुल भी आए थे । 
    कृष्ण जन्म महोत्सव मे नन्द बाबा ने खूब दान दिया और यशोदा माँ ने भी दान दिया । कृष्ण के मुख पर ऐसा तेज़ था की किसी की नज़र उनसे हटती ही नहीं थी । ऐसा आलोकिक रूप तो पहले कभी ने नहीं देखा था। सब यही कहते की कोई देवता ने ही जन्म लिया है । 
    सारी गोपिया  उनको अपने गोद मे लेने को ललयइट हो रही थी । मानो की जैसे कृष्ण उनके ही पुत्र हो ।  
    इस तरह कई दिनो तक भाति भाति के कार्यक्रम हुए और सभी ने बहुत उल्लास मनाया । 

  • krishna janmashtami

    krishna janmashtami

                                                                         भगवान  श्रीकृष्ण के जन्म की पौराणिक कथा  

                  "  जब  जब धर्म की हानि होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं इस धरती पर अवतार लूँगा   "
          
    ये बात उस समय की है जब द्वापर युग (4 युगो मे एक)  अपने अंतिम चरण मे था और कंस और जरासंध जैसे अनेक पापियो के पाप कर्मो से ये धारा कराह उठी थी । फिर सारे देवता पालनहार भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्राथना की की आप इस धरती को पाप से मुक्त करे । विष्णु जी ने उन सब की प्राथना स्वीकार की और कहा की मै अपने 8वे अवतार कृष्ण के रूप मे मथुरा मे जन्म लूँगा । 
       5 amazing legends and mythology about Lord Krishna's association ...
    भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में जन्मास्थिमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।  द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था। 
    जब कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल विदा करने ले गया तभी आकाश मे एक आकाश वाणी   हुई की देवकी का 8 वआ पुत्र ही तेरा काल होगा । इससे डर के कस ने देवकी और वसुदेव को बंदी बना लिया    
     Radhe Krishna | Radhe krishna wallpapers, Radha krishna love ...
    दोनों को कारगर मे डाल दिया उस कारगार मे    कई दरवाजे थे कई सैनिक थे । देवकी का जो भी संतान होती उसको कंस मार डालता । फिर वो समय आया जिसका सभी को इंतजार था भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र मे मूसलाधार बारिश हो रही थी तब भगवान कृष्ण प्रकट हुए । 
     Download Lord Of Krishna Wallpaper, HD Backgrounds Download - itl.cat
    संयोग से उसी समय नन्द बाबा की पत्नी यशोदा को भी एक संतान हुई जो की एक कन्या थी वो कोई और नही बल्कि माया थी । इधर करगार मे भगवान विष्णु ने देवकी और वसुदेव को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन दिये और वसुदेव को कहा की आप अपने बालक को नन्द गाव मे नन्द जी के यहा छोड़ आए और उनकी पुत्री को ले आए । फिर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए और वसुदेव की बेड़िया अपने आप खुल गई और सभी सैनिक सो गए । 
     Vasudeva, protected by Sesha Naga, sneaks out of Kamsa's prison ...
    वसुदेव ने कृष्ण को एक डलिया मे रख कर अपने सिर पर रखा और नन्द गाव की और चल दिया नंगे पाव रास्ते मे यमुना नदी पड़ी बारिश बहुत तेज़ हो रही थी । यमुना जी अपने उफान पर थी । वसुदेव नदी मे उतर गए और नदी पार करने लगे और पीछे से बारिश से बचाने के लिए कृष्ण भगवान के सेवक शेसनाग आ गए । 

    कृष्ण जी ने वसुदेव को डूबने से बचाया 

    जब वसुदेव यमुना जी के बीच मे पहुचे तो यमुना जी का पानी उनके सिर के ऊपर चला गया । क्यो की यमुना जी कृष्ण जी के चरण स्पर्श करना चाहती थी और  यमुना जी विष्णु जी की पत्नी  भी है । जब पानी सिर से काफी उपर आ गया तो कृष्ण जी ने अपना पैर डलिया से नीचे कर दिया और उनका पैर यमुना जी को छूने लगा । फिर यमुना जी ने अपना जल स्तर कम कर लिया और वसुदेव डूबने से बच गए । 

    यशोदा की पुत्री को उठा कर मथुरा लाना 

    जब वसुदेव नन्द बाबा के घर पहुचे तो सब सो रहे थे यहा तक की यशोदा को भी नही पता था की उसकी पुत्र हुआ है या पुत्री । 
    वसुदेव कृष्ण जी को यशोदा के पास लिटा दिये और कन्या रूपी माया को वह से साथ ले आए । जब वो कारागार पहुचे तो उनकी बेड़िया अपने आप फिर से लग गई । "कितनी बड़िया सीख है की जब कृष्ण (ईश्वर )हाथ मे आए तो बेड़िया खुल गई थी परंतु जैसे ही वो कन्या (माया )हाथ मे आई तो बेड़िया लग गई "
     माँ दुर्गा के सभी रुपों की कथा - Adhyatam
    फिर सारे सैनिक जाग गए और कंस को पता चला की देवकी के कन्या हुई है तो वो उसको मारने गया परंतु जैसे ही कंस ने उस कन्या को अपने हाथ मे लिया और मारने चला वो कन्या उसके हाथ से छूट कर  आकाश मे चली गई और एक देवी का रूप लिया जिसके कई हाथ थे और उनमे तरह तरह के अरत्र थे । वो देवी ज़ोर ज़ोर से हसने लगी और कहने लगी की 
    "हे मूर्ख जिसको तू मारने आया है वो तेरा काल तो कब का जन्म ले के कर  गोकुल पहुच पहुच चुका है । इतना कह कर कर वो देवी अंतेर्ध्यान हो गई" 

                                     परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

                                      धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8।।
       









  • krishna

    krishna

                                                कृष्ण कौन है             

                             Photos and More | YSS Bookstore     

      कृष्णा कौन  हैं ,हम सभी को जैसा मालूम है कि कृष्णा जी भगवान विष्णु के अवतार थे। देवकी ,यशोदा इनकी माता थीं और वासुदेव और नन्द बाबा इनके पिता थे।  क्या वास्तव में हम लोग कृष्णा जी को जान पाए है जिनको बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं जान पाए उनको हम आप कैसे जान पायगे।  

    भागवान कृष्णा को हम लोग टुकड़ो में जानते है। 

    हम लोग इनको कभी कान्हा बोलते कभी लड्डू गोपाल बोलते है कभी माखनचोर बोलते है तो कभी रणछोर तो कभी श्याम कभी माया पति तो कभी मधुसूदन कहने का तातपर्य यह है की हम सभी उनको जानते है टुकड़ो में और प्राप्त करना चाहते है  पूर्णता को। 
                                                     
    वो ईश्वर थे वो जो चाहते वो होता परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया कुछ लो मेरी इस बात से सहमत ही नहीं होंगे 
    तो मै उंनसे ये कहना चाहता हूँ की किशना ने राधा से प्रेम किया  परन्तु विवाह हुआ  रुक्मणि से।  उन्होंने कभी भी   विधि के विधान में हस्तक्चेप नहीं। वो एक योगी भी थे एक योगी की तरह उन्होंने सांसारिक जीवन जिया।
    Krishna HD Wallpapers Images Pictures Photos Download

    धर्म के रक्छक और समाज सुधारक

    भगवान श्री कृष्णा धर्म के रक्छक  तो थे परन्तु एक  समाज सुधारक भी थे इस विषय में एक कथा है की एक
     नरकासुर नाम का एक असुर 16000   कन्याओ  को उसने बंदी बना कऱ उनसे विवाह करना चाहता था परन्तु महिलाये उससे विवाह नहीं करना चाहती थी। उन्होंने ईश्वर से प्राथना की तो उनसे नारद जी मिलने आये। नारद जी ने  कहा की आप  सब को योगेश्वर श्री  कृष्णा से सहायता मांगनी चाहिए। तो उन सभी 16000   कन्याओ  ने कृष्णा जी से प्राथना की कि हम सब की रक्छा  करे। कृष्णा जी उन सभी  की प्राथना
                                                Krishna Had 16000 Wives How Why – Ramani's blog 
    को स्वीकार किया और नरकासुर का वध किया और 16000 कन्याओ  को मुक्त कराया   परन्तु  उन  कन्याओ ने कृष्ण जी से  कहा की हम सब अब कहा जाए ना तो हमें हमारे घर वाले स्वीकारेगे और न ही समाज में उनसे कोई विवाह करेगा अब तो हमारे पास सिर्फ दो ही रस्ते है या तो हम मर जाये या वेश्यावृत्ति अपना ले।  तो कृष्ण जी  ने सोचा की इससे तो धर्म और समाज की बहुत हानि होगी तो कृष्ण जी ने उन सभी से विवाह करने का  निश्चय किया।
                         
                                             धर्मो रक्षति रक्षितः 
                                 

  • GET A FREE QUOTE NOW

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetuer adipiscing elit, sed diam nonummy nibh euismod tincidunt ut laoreet dolore magna aliquam erat volutpat.

    Blogger द्वारा संचालित.
    ADDRESS

    112 United Nagar Kanpur,UP

    EMAIL

    sunielgupta.86@gmail.com

    MOBILE

    8858194776,
    6393894046