krishna and trinavart
तृणावर्त का उद्धार
तृणावर्त बहुत ही विशाल था वो एक बवंडर के रूप मे था जो बहुत तेज घूमता था वो कंस के पास आता है और बोलता है की क्यो बुलाया है आपने मुझे । तो कंस उसे सारी बात बताता है तो उसे बड़ा आश्चर्य होता है। कंस उसे बताता है की वो बहुत ही मायावी बालक है।
तृणावर्त का गोकुल आना
वहा गोकुल मे सब शांति से चल रहा था चरो और खुशहली और हरियाली थी। सारे ग्वाले अपना काम कर रहे थे बछड़े गाय का दूध पी रहे थे। कृष्ण जी यशोदा माँ के साथ खेल रहे थे। तभी तृणावर्त वहा आ जाता है बड़ा विशाल और बहुत तेज़ घूमता हुआ बवंडर का रूप लिए वो दैत्य बहुत ही भयानक लग रहा था।कृष्ण जी मैया के साथ खेल रहे थे की मैया ने देखा की आसमान मे बादल घिर आए है। और हवाए बहुत तेज़ गति से चलने लगी थी। पूरे ब्रज मे धूल भरी आँधी चलने लगी है। यशोदा माँ कृष्ण को दरवाजे की चौखट पर बैठा कर गाय के पास जाती जो की बहुत डरी हुई थी ।
तभी वहा तृणावर्त आ जाता है और वो ऐसे हवा चलाता है की किसी को कुछ दिखाई नही देता है।तभी तृणावर्त कृष्ण को उठा ले जाता है। तृणावर्त कृष्ण को बहुत उचाई पर ले जाता है । और यहा नीचे सब कृष्ण को ना पाकर सब व्याकुल हो जाते है। तभी एक ग्वाला देखता है की कृष्ण को वो तृणावर्त अपने साथ ले गया है ।
वहा ऊपर तृणावर्त कृष्ण से बोलता है की -"अरे तू इतना छोटा और हल्का है की तुझको मै अपनी उँगलियो से मसल दूँगा । पता नही क्यो कंस महाराज इस छोटे से बालक से डरते है की इसे मारने के लिए उन्होने मुझ जैसे बलवान असुर को यहा भेजा है। "
तृणावर्त अपने ही विचारो मे खोया था की कृष्ण जी अपना शरीर का वजन बढ़ाने लगते है और तृणावर्त को लगता है की उसने नीलगिरी पर्वत उठा लिया हो। तृणावर्त कृष्ण जी के वजन को संभाल नही पा रहा था । तभी कृष्ण जी उसकी गर्दन दबाने लगते है । तृणावर्त बहुत प्रयास करता है अपने आप को मुक्त कराने का परंतु आसफल रहता है। और अंत मे कृष्ण जी के द्वारा तृणावर्त मारा जाता है।
तृणावर्त का मृत शरीर एक स्थान पर आकर गिरता है तभी सभी गावों वाले भी वहा पर आ जाते है । वो सब देखते है की तृणावर्त मरा पड़ा है और कृष्ण जी उसकी छाती पर खेल रहे है। इस प्रकार भगवान ने तृणावर्त का वध किया ।
तृणावर्त कौन था
बहुत पहले की बात है पांडु देश मे एक सहस्त्राक्छ नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन वह अपनी रानियो के साथ जल क्रीडा कर रहा था। और क्रीडा करते करते वह बहुत मगन हो गया था । उसी समय वहा से दुर्वासा ऋषि निकलते है और वह ऋषि को प्रणाम करना भूल जाता है। दुर्वासा ऋषि बहुत ही क्रोधि स्वभाव के थे अतः उन्हे राजा का प्रणाम न करना अपना अपमान लगता है और वो राजा को श्राप दे देते है की जिस प्रकार तू जल मे घूम रहा है उसी प्रकार दैत्य कुल मे जन्म लेकर मिट्टी और धूल मे घूमेगा । राजा को अपनी भूल का भान होता है और वो दुर्वासा ऋषि से छमा मांगते है और अपनी मुक्ति का उपाय पूछते है।तब दुर्वासा ऋषि कहते है की -हे राजन जब भगवान विष्णु द्वापर युग मे कृष्ण अवतार लेगे तब उनके द्वारा मारे जाने पर ही तुम्हारा उद्धार होगा । बाद मे वही राजा तृणावर्त बना और कृष्ण के द्वारा मारा गया और मुक्त हुआ।