गोकुल वालों का इंद्र पूजा की तैयारी करना
वर्षा ऋतु नजदीक थी और हर साल की तरह इस साल भी गोकुल वासी अच्छी बारिश के लिए देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी मे लगे थे । कोई फूल माला तैयार कर रहा था तो कोई बैलगाड़ी को सजा रहा था । 56 प्रकार के व्यंजन भी बने थे जो की अलग अलग पात्रो मे रक्खे थे हर कोई पूजा को सफल बनाने मे व्यस्त था । कई सारे ऋषि गण भी मंत्रो के उच्चारण मे लगे थे । नन्द बाबा और यशोदा मैया सहित सारे गोकुल वासी तरह तरह के सुंदर वस्त्र पहने हुए थे ।
कृष्ण का गोकुल वालों को समझना
इसी बीच भगवान कृष्ण अपने ग्वाल बालो के साथ आते है और ये सारी तैयारी देखकर नन्द बाबा से पूछते है की -बाबा ये सब क्या हो रहा है और किसके लिए हो रहा है । क्या आज कोई उत्सव है । नन्द बाबा बोलते है की -हा कान्हा उत्सव ही समझो आज इन्द्र देव की पूजा है । ये पूजा हर साल होती है । इस पर कृष्ण बोलते है की -आप लोग इन्द्र की पूजा क्यो करते हो । कृष्ण की ये बात सुनकर सब लोग चौक जाते है और कहते है की अरे लल्ला इन्द्र बारिश के देवता है और उनकी आज्ञा से ही ब्रज मे बारिश होती है जिससे हमे प्रचुर मात्रा मे अनाज प्राप्त होता है । इसे इन्द्रोज यज्ञ भी कहते है । कृष्ण बोलते है की -अगर पूजा न की तो । तभी एक वृद्ध बोलता है -अगर पूजा ना हुई तो इन्द्र नाराज हो जायेगा और ब्रज मे बारिश नहीं करेगा जिससे ब्रज मे सूखा पड़ जाएगा ।
कृष्ण बोले -ये आप सब का कैसा देवता है जो की आप सब से जबर्दस्ती पूजा करवाता है और पूजा ना करने पर बारिश नहीं करेगा । पूजा करोगे तो बारिश होगी अगर नहीं करोगे तो बारिश नहीं होगी ,ये तो कोई व्यापारी है देवता नहीं । हमे इन्द्र की पूजा छोड़कर अपने गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए जिससे बादल ब्रज के बाहर नहीं जा पाते है और यही पर बरस जाते है ,जिसके जंगलो मे हमारी गौये घास चरती है और हमे दूध देती है ,हमे खाना पकाने के लिए ईंधन प्राप्त होता है । इसलिए हमे इन्द्र को छोड़कर अपने गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए । बहुत विवाद के बाद लोगो को कृष्ण की बाते सही लगने लगी और सबने इन्द्र की पूजा के स्थान पर गोवर्धन की पूजा करने का निश्चय किया ।
इंद्र का क्रोध मे आना और मेघो को भेजना
जब इंद्र को इस बारे मे पता चला की गोकुल वासी मेरी पूजा छोड़ कर उस नादान बालक कृष्ण की बातों मे आकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने जा रहे है तो वो क्रोध से आगबबूला हो गया । वो बोला -ये अज्ञानी मेरी अवहेलना करके उस पर्वत की पूजा करने जा रहे है ,इन ग्वालो का इतना दुस्साहस ,इनको धन का घमंड हो गया है । ये जंगली क्या समझते है की ये पर्वत मेरे क्रोध से इनकी रक्कचा करेगा तो ये इनकी भूल है ।
फिर इन्द्र ने प्रलय करने वाले मेघो के सावर्तक नामक गड़ को बुलाया और कहा की -जाओ सावर्तक और इन घमंडी ग्वालो के ब्रज को डुबो दो हर तरफ जल जल दिखना चाहिए । इनके सारे जानवरो का संघार कर दो मै भी ऐरावत पर तुम्हारे पीछे पीछे आता हू । और इस तरह इन्द्र ने उन महा प्रलयंकारी मेघो के बंधन खोल दिये ।
वे सारे मेघ अपनी पूरी शक्ति के साथ ब्रज पर बरस पड़े ज़ोर ज़ोर से आंधिया चलने लगी ,बिजली चमकने लगी और बीजलिया धरती पर गिरने लगी ,बड़े बड़े ओले गिरने लगे और स्तम्भ के समान मोटी मोटी जल धारा गिरने लगी । लोग ठंड से कापने लगे हर तरफ जल ही जल था क्या ऊचा और क्या नीचा कुछ समझ नहीं आ रहा था । बहुतों के तो घर भी बह गए हर ओर सिर्फ विनाश ही विनाश दिख रहा था और ये सब देख कर इंद्रा बहुत ही खुश हो रहा था ।
भगवान कृष्ण का गोवर्धन पर्वत को उठाना
सारे गोकुल वासी भगवान श्रीकृष्ण के शरण मे गए और उनसे कहा की -हे कृष्ण ;तुम्हारे कहने पर ही हम लोगो ने आज गोवर्धन पर्वत की पूजा की है जिससे नाराज होकर इन्द्र ने ये सब किया है । हम सब की रक्छा करो कृष्ण । कृष्ण भी समझ गए की इंद्र ने क्रोध मे आकर ये सब किया है ,इन्द्र को अपने पद और शक्ति का बड़ा घमंड हो गया है आज मे उसका ये घमंड तोडुगा । ये मूर्ख अपने आप को लोकपाल मानते है । देवताओ को क्रोध नहीं करना चाहिए ,इनके घमंड को चूर चूर करके मै इनको अंत मे शांति प्रदान करुगा ।
इसके बाद कृष्ण के कहा -डरो नहीं जिसकी हमने पूजा की है वही हमारी रक्छा भी करेगा ,वही गोवर्धन जी हम सब की रक्छा करेगे । आओ मेरे साथ ,फिर सब कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत के पास गए और फिर कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाना सुरू किया देखते ही देखते पूरा गोवर्धन पर्वत को उखाड़कर कृष्ण ने अपनी कनिष्का उंगली के ऊपर उठा लिया । फिर सभी लोग गोवर्धन पर्वत के नीचे जिसको कृष्ण ने एक छाते के समान धारण कर रक्खा था उसके नीचे आ गए । और कृष्ण की ओर ममतामई दृष्टि से देखने लगे ।
उधर इंद्र ये सब देख रहा था और अपने मेघो को और भी ज्यादा बारिश करने को बोला । इधर कृष्ण ने सभी गोकुल वासियो की भूक प्यास भूलाकर सात दिनो तक एक ही जगह खड़े रहकर और बंशी बजाते हुए बिता दिये ,और इन सात दिनो मे इंद्र के मेघो के पास जल की एक बूंद भी ना बची ,इंद्र के पास सारा जल समाप्त हो गया और वो गोकुल वालों का कुछ न बिगाड़ पाया ये देखकर उसके आश्चर्य की सीमा ना रही ,इंद्रा ये समझ ही नहीं पा रहा था की कृष्ण वास्तव मे है कौन ।
तभी वहा देवगुरु ब्रहस्पति प्रकट हुए और इन्द्र से बोले -हे इन्द्र आज तुम्हारा सामना उससे है जो परम शक्तिशाली है जो अविनाशी और अनंत है जिससे सारी शक्ति प्रकट होती है और फिर उनही मे समा जाती है । तब इन्द्र बोला -हे गुरुदेव ऐसी अवस्था मे हमे क्या करना चाहिए । देवगुरु बोले -जहा शक्ति काम नहीं आती वहा भक्ति काम आती है । तुम भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध करने के जगह उनकी शरण मे जाओ वही तुम्हारी हार को जीत मे बदल सकते है।
इधर बारिश रुक जाती है बादल छट जाते है और सूरज निकल आता है तब कृष्ण सभी लोगो से कहते है -अब बारिश बंद हो गई है तथा पानी भी नीचे जा चुका है अब आप सब अपने गऔ के साथ निकल जाए और अपने घर को जाए । सबके जाने के बाद कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपने स्थान पर रख देते है और एक जगह पर बैठ जाते है तभी वहा देवराज इन्द्र आते है और कृष्ण को प्रणाम करता है तब कृष्ण बोलते है -आइये देवराज ,मैंने देखा की आप मेरा कितना आदर करते है । इंद्रा बोले -छमा करे प्रभु ,छमा करे प्रभु हे अविनाशी हे दया के सागर मुझसे जो गलती हुई है उसके लिए छमा करे प्रभु । कृष्ण बोले -तुम हमे पहचान ना सके और तुमने ये सब किया इसके लिए हम तुम्हें दोषी नहीं मानते है क्योकि ये तो हमारी माया का ही प्रभाव है परंतु तुम्हारे दूसरे दोष के लिए हम तुम्हें अवश्य दोषी मानते है ,जो तुम्हारा कर्तव्य था तुमने उसे अपना अधिकार समझ लिया ,और उसके बदले तुम धरती वासियो से पूजा रूपी रिश्वत लेते हो ,तुम चाहोगे तो पानी बरसेगा और तुम नहीं चाहोगे तो पानी नहीं बरसेगा हमे तुमसे ये आशा ना थी ।
परंतु इंद्र को आत्मग्लानि मे देखकर भगवान उसे छमा कर देते है ,फिर इंद्र भगवान से अपने पुत्र अर्जुन की रक्कचा का वचन लेकर वापस चले जाते है । और इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक और लीला का विस्तार किया ।
कालिया नाग कद्रू का पुत्र और पन्नग जाति का नागराज था। वह पहले रमण द्वीप में निवास करता था। लेकिन पक्षीराज गरुड़ से शत्रुता हो जाने के कारण वह यमुना नदी में रहने लगा था। जिस कारण यमुना नदी का जल बहुत ही विषैला हो गया था । यमुना नदी के जिस कुंड मे कालिया नाग रहता था उसका जल खौलता रहता और उस कुंड के ऊपर से निकलने वाले नभचर प्राणी भी उस विष की गर्मी से अचेत हो जाते थे ।
पूरे गोकुल मे इस बात की चर्चा हो रही थी की उस कालिया नाग को कैसे भगाया जाए पर सब विवश थे क्यो वो बहुत ही विषैला और शक्तिशाली था। भगवान श्रीक़ृष्ण को भी उसके बारे मे पता चला तो उन्होने उसे यमुना से भगाने का निश्चय किया ।
एक दिन कृष्ण अपने बाल सखाओ के साथ यमुना के तट पर गेद खेल रहे थे लेकिन मनसूखा को कोई गेद नहीं दे रहा था तो उसने कृष्ण से कहा की -कान्हा तुम मुझे गेद दो न कोई मुझे गेद नहीं दे रहा है । कृष्ण बोले-ठीक है मै तुमको गेद देता हू पर उसे पकड़ लेना । तब कृष्ण ने बड़ी ज़ोर से गेद को फेका तो मनसूखा गेद को पकड़ ना सका और गेद यमुना मे जा गिरी ।
इस पर सभी ग्वाले शोर मचाने लगे जिसने गेद फेकी है वही गेद लाएगा ऐसा सुनकर कृष्ण बोले ठीक है मै गेद लाता हू ऐसा कहकर कृष्ण कदंब के पेड़ पर चड़ गए ये देखकर सभी ग्वाल बाल चिल्लाने लगे की कृष्ण नीचे आ जाओ हमे गेद नहीं चाहिए परंतु कृष्ण कहा सुनने वाले थे कृष्ण ने यमुना मे छलांग लगा दी । कृष्ण यमुना की गहराई मे समाते चले गए और वहा पाहुच गए जहा कालिया नाग अपनी चारो पत्नियों के साथ रहता था । कालिया नाग की पत्नियों ने जब कृष्ण को देखा तो वे सब मन्त्रामुग्ध हो गई । जब कृष्ण कालिया नाग की तरफ बढ़ने लगे तो उन चारो मे से एक स्त्री बोलती है की -अरे अरे कहा चले आ रहे हो ,यहा क्या करने आए हो । कृष्ण बोले -मेरी गेद यहा गिर गई है उसे ही लेने आया हू । तब दूसरी स्त्री बोलती है की - अरे गेद क्या अगर यहा हाथी भी गिर जाए तो जलकर भस्म हो जाता है जाने तू कैसे बच गया जा वापस चला जा । कृष्ण बोले -बिना गेद लिए अगर मै वापस चला गया तो मेरे मित्र मुझ पर क्रोध करेगे । तभी चारो स्त्री बोलती है की -मित्रो के क्रोध से तो तू बच जाएगा परंतु नागराज के क्रोध से तुझे कोन बचाईगा । कृष्ण बोले -तुम बचाओगी न मैया ।
मैया सुनकर उन चारो के कानो मे अमृत सा घुल गया था मानो उन चारो को कृष्ण पर बड़ा ही प्रेम आ रहा था । वे बोली तेरा भाग्य अच्छा है जो नागराज सो रहे है जा चला जा मै तुझे बाहर छोड़ कर आती हू । तभी कृष्ण क्रोध मे बोले की -मुझ पर दया ना करो नागरानी अपने पति पर दया करो जिसने अपने विष से यमुना के जल को विषैला कर दिया है जिससे सारे पशु पक्छि मर रहे आज मे इसे यहा से निकालने आया हू ।
तभी कालिया नाग जाग जाता है और बड़े ही क्रोध मे बोलता है -कौन है जिसने हमारे आराम मे विघ्न डाला है । उधर पूरे गोकुल मे हाहाकार मच गया की कृष्ण यमुना मे कूद पड़े है नन्द बाबा ,यशोदा और बलराम सहित सारे गाँव वाले यमुना तट पर आ गए मैया का तो रो रो कर बूरा हाल था । मनसूखा बोला -कृष्ण यमुना मे कूदा और फिर निकला ही नहीं ।
यमुना के अंदर कालिया बोला के कौन है और ये अभी तक जीवित कैसे है । तभी उसकी एक पत्नी बोली की -ये अबोध बालक है ये खुद ही यहा आ गया है इसे छमा कर दे स्वामी ,कालिया बोला -छमा करना हमारे स्वभाव के विपरीत है । कौन हो तुम । कृष्ण बोले -कृष्ण । कालिया -कौन कृष्ण । कृष्ण बोले -वो कृष्ण जो काल का भी काल है जो तुम जैसे पापियो को मारने के लिए इस धरा पर अवतार लिया है हमे पहचानो कालिया ।
इतना सुनते ही कालिया नाग कृष्ण पर छपट पड़ा और दोनों मे ही बड़ा ही भयंकर युद्ध हुआ कालिया कृष्ण को अपनी कुंडली मे जकड़ लेता है और विष की फुँकार छोड़ता है तो कभी डसता है परंतु भगवान उसे युद्ध मे हरा ही देते है कृष्ण कालिया के फनो पर चड़ जाते है और अपने चरणों से बड़ी ज़ोर से दबाने लगते है जिससे कालिया नाग का बुरा हाल हो जाता है और वो उठ नहीं पाता है । तभी कालिया नाग की पत्नी कृष्ण से कहती है की -दया प्रभु दया इन्हे छोड़ दे ,मैया कहा है तो मैया को विधवा ना करे । कालिया नाग भी कृष्ण के चरणों के आगे नतमस्तक होकर छमा मांगने लगता है ।
कृष्ण कालिया नाग से बोले -छमा मिलेगी परंतु एक शर्त पर की तुम यमुना को छोड़ कर यमुना के रास्ते होकर समुद्र के मध्य स्थित रमण द्वीप पर जा कर निवास करो जो की महान सर्पो के रहने का एक स्थान है । इस पर कालिया नाग बोला की -हे नाथ ;पहले मै रमण द्वीप पर ही रहता था परंतु एक दिन आपके वाहन गरुड मेरे प्राण लेने के लिए मुझ पर आक्रमण किया तो उनके भय से मै अपनी पत्नियों के साथ यमुना मे आ कर छुप गया आप तो जानते है की सौरंग ऋषि के श्राप के कारण गरुड यहा नहीं आ सकते है ।
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कृष्ण बोले -नहीं नागराज अब गरुड तुम्हें कुछ नहीं करेगे क्योकि तुम्हारे ऊपर हमारी चरण धूलि है इसको देख कर गरुड तुम्हें मारने की बजाए इस चरण धूलि को नमसकर करेगे । अब हमे ऊपर ले चलो ।
जब कृष्ण को कालिया नाग ऊपर लाता है तो मैया सहित सारे गोकुल वासी मारे खुशी के पागल हो जाते है और फिर कृष्ण कालिया नाग के ऊपर नाचने लगते है उनके साथ साथ सारे गोकुल वाले भी नाचने लगते है और आकाश से देवता फूल बरसाने लगते है । उसके बाद कालिया नाग कृष्ण को तट पर उतार कर यमुना जी से सदा के लिए चला जाता है । और इस तरह भगवान ने अपनी एक और लीला की ।
एक समय की बात है एक बार गोकुल मे एक फल बेचने वाली थी वो फल बेच कर अपना जीवन यापन कर रही थी और प्रभु की भक्ति करती थी एक बार वो सारा दिन गाँव मे घूमती रही सुबह से शाम हो गई परंतु उसकी बोहनी भी ना हुई और वो जिस किसी से भी पूछती की बेटा फल ले लो ताजे और मीठे है तो लोग बोलते ना माई आज जरूरत नहीं है । बहुत ही दुखी और परेशान हो गई थी की शायद आज उसे भूका ही सोना ना पड़ जाए। यही विचार अपने मन मे लिए वो आगे बढ़ती जा रही थी और बोलती जा रही थी की -फल ले लो फल ताजे ताजे फल ले लो । यही बोलते बोलते वो फल बेचने वाली नन्द बाबा के भवन के पास जा पाहुची और अपनी फलो से भरी टोकरी को अपने सर से उतारा और वही बैठ कर अपना पसीना पोछने लगी और ऊपर आसमान की तरफ देख कर बोली की -आज भूका ही रक्खो गे प्रभु ।
फिर वो भवन के अंदर देखने लगी की शायद यशोदा रानी देख जाए तो कुछ फल ले ले परंतु वहा कोई नहीं था । तो उस फल बेचने वाली ने कृष्ण को पुकारा -लल्ला अरे ओ लल्ला कहा हो तुम फल ले लो । कुछ देर ऐसा पुकारने के बाद कृष्ण भवन के बाहर आए सर पर मोर मुकुट पैरो मे पैजनिया कमर मे कमर बंध और उसमे एक छोटी और प्यारी से मुरली धारण किए हुए अपने छोटे छोटे कमल चरणों के द्वारा उस फल बेचने वाली के पास आए और बड़े ही प्यार से बोले -हे माई क्या काम है ,मैया तो है नहीं । वो फल बेचने वाली कुछ देर तक प्रभु को एक टक देखती रही फिर उस फल बेचने वाली ने कहा की लल्ला तुझको तो देखकर ही मेरी सारी थकान जैसे गायब ही हो गई है । ऐसा क्या जादू है रे तुझमे ।
कृष्ण बोले -मै कोई जादूगर थोड़े ही हु मै तो अपनी मैया का लल्ला हु । परंतु तुमको क्या चाहिए । तो उस फल बेचने वाली ने कहा -फल लायी हु थोड़े से लो तो आज भूका ना सोना पडे । उस फल बेचने वाली की बात सुनकर कृष्ण बोले -मैया तो है नहीं । इस पर उस फल बेचने वाली ने कहा की -मैया नहीं है तो क्या हुआ तुम ही ले लो । तब कृष्ण बोले -पर तुम तो धन मगोगी और धन तो मेरे पास है नहीं । तो उस फल बेचने वाली ने कहा -अगर धन नहीं है तो थोड़ा सा अनाज ही दे देना रे ।
कृष्ण दौड़ कर भवन के अंदर गए और अपनी अंजुली मे अनाज भर कर चल दिये कृष्ण के हाथ छोटे है तो रास्ते मे अनाज गिरता भी जा रहा था और जब कृष्ण उस फल बेचने वाली के पास पहुचे तो उनके हाथो मे सिर्फ अनाज के कुछ ही दाने बचे थे । उस फल बेचने वाली ने कहा -कितना अनाज लाये हो लल्ला । तो कृष्णा बोले -वो मेरे हाथ छोटे है ना तो सारा अनाज रास्ते मे ही गिर गया अब ये ही बचा है ।
फल बेचने वाली ने कहा -कोई बात नहीं ये ही बहुत है उसने सारे फल कृष्ण को दे दिये और वो अनाज के दाने को अपनी टोकरी मे रख कर जाने लगी और बोली की -आज बड़ा ही अच्छा सौदा हुआ है हा बड़ा ही अच्छा सौदा हुआ है । और जब वो फल बेचने वाली अपने घर पाहुची तो उसने अपनी टोकरी मे देखा तो उसकी आंखे फटी की फटी रह है उसकी आश्चर्य का कोई ठिकाना ही न रहा जो अनाज के दाने कृष्ण ने दिये थे वो अब बहुमूल्य रत्नो और हीरे मोती मे बादल गए थे जिनसे पूरी टोकरी ही भरी थी । ये देख कर उस फल बेचने वाली ने कृष्ण को हाथ जोड़कर धन्यवाद किया ।
इस प्रकार प्रभु ने उस फल बेचने वाली पर कृपा की और अपनी एक और लीला का विस्तार किया ।
mouth of krishna |
भगवान् कृष्ण अपनी लीला का विस्तार करे जा रहे थे और कई असुरो का वध भी कर चुके थे। इसी बीच एक दिन मैया भगवान् को लेकर यमुना के किनारे अपनी सखियों के साथ स्नान करने पहुंची। मैया ने कृष्णा को एक जगह पर बैठाया और खुद स्नान करने चली गई। भगवान् कृष्ण जो अनंत है वो मिटटी में बैठे है। कुछ सखिया यशोदा से पूछ रही है की -क्यों रे यशोदा आज कन्हा को भी ले आयी। तो यशोदा बोली -क्या करू ये है ही इतना शैतान कल माखन का बड़ा सा गोला खाने जा रहा था अपच हो जाती तो। तभी दूसरी सखी बोली-अरे ग्वाले का बालक है माखन मिश्री नहीं खायेगा तो क्या खाइयेगा। तभी भगवान् अपनी तोतली बोली में बोले -मैंने माखन नहीं खाया। तो मैया बोली -आ आ ह ह मैंने माखन नहीं खाया झूठा कही का। यशोदा कितनी भाग्यशाली है की परमपिता परमेश्वर को भी डांट रही है। यशोदा ,कृष्ण से बोलती है की -देख कान्हा चुपचाप यही बैठ मै अभी स्नान करके आती हूँ। तभी एक गोपी यशोदा को ताने देते हुए बोली -अरे कान्हा तेरी मैया पहली बार तुझे घाट पर लायी है और बंदी बना कर रख दिया है अगर मेरी माँ ऐसा करती तो मै भी मटकी फोड़ती। तो मैया बोलती है की -अरे इसे ऐसे सीख मत दे ये प्रतिदिन एक मटकी फोड़ सकता है। तभी एक और सखी बोलती है की -अरे तो क्या हुआ अगर प्रतिदिन एक मटकी फोड़ता भी है तो नन्द बाबा की कोई हानि नहीं होने वाली।
यशोदा यमुना जी में स्नान करने के लिए प्रवेश करती है और यमुना जी से प्राथना करती है की -हे यमुना मैया मेरे लाल का कल्याण करना ,गोकुल का कल्याण करना सारे विश्व का कल्याण करना। इधर मैया स्नान कर रही है और उधर कृष्ण मिटटी से खेल रहे है तभी वहाँ पृथ्वी माता प्रकट होती है और भगवान् के चरणों को छूकर प्रणाम करती है और कहती है की - हे प्रभु; अपनी दासी पृथ्वी का प्रणाम स्वीकार करे। आज आपने पहली बार अपने दिव्य चरण मेरे वछ स्थल पर रक्खे है आज तक आप पलने में या माता की गोद में ही रहते थे। यमुना जी ने तो आपके जन्म के समय में ही श्री चरणों को स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया था लेकिन मुझे राह तकनी पड़ी। आज आपने मुझ पर कृपा की है मै तो ख़ुशी के मारे पागल हुई जा रही हूँ मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है की मै आपको क्या दू ,मेरे पास तो केवल मिटटी और कंकड़ ही है। ये कह कर धरती माँ के आँखों में अश्रु आ गए।
तभी भगवान् विष्णु \प्रकट हुए और बोले की -हे धरती माता सारे विश्व में तुम जैसा छमाशील और कोई नहीं है। तुम्हारी धरती पर साधु जन भी विचरते है और महा पापी भी अपने क्रूर चरण धरती पर रखकर चलते है। कुछ लोग तुम्हारी धरती पर पुण्य कर्मो के फूल खिलाते है। और कुछ तेरी धरती पर पाप का लहू बहाते है। परन्तु तुम सबको सहन करती हो सबको अपनी गोद में धारण करती हो। अपना सीना फाड़ कर सबके लिए अन्न देती हो सबका भरण पोषण करती हो। माँ की तरह ही अपने सभी बालको का कल्याण ही करती हो किसी का अहित नहीं करती हो इसलिए हे माँ तेरी ये मिटटी इतनी पवित्र है ,इससे अच्छी भेट मेरे लिए और क्या होगी अतः मै इसे ही नैवैद्य समझकर स्वीकार करता हूँ।
dharti mata |
इसके बाद भगवान् कृष्ण ने बड़े ही प्रेम से मिटटी खाना शुरू किया और खूब मिटटी खायी।तभी एक गोपी कृष्ण को मिटटी खाते हुए देख लेती है और जा कर यशोदा से कहती है की -यशोदा तेरा लल्ला तो मिटटी खा रहा है। तभी यशोदा कृष्ण के पास जाती है और देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है तब मैया अपने पल्लू से कृष्ण का मुँह साफ़ करती है की एक गोपी बोलती है की अरे बाहर से क्या साफ करती है मुँह के अंदर तो देख कितना बड़ा मिटटी का गोला खाया है। इतना कहकर सारी गोपिया वहा से चली जाती है तो मैया कृष्ण से पूछती है की मिटटी क्यों खाई खोल मुँह ,तो कृष्ण बड़े ही प्यार से बोलते है की -मैया मैंने मिटटी नहीं खाई।
तो मैया बोलती है -झूठा कही का ,मिटटी नहीं खाई खोल मुँह। तब भगवान् को विवश होकर अपना मुँह खोलना पड़ा तो यशोदा भगवान् के मुँह में देखती है तो उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रह जाता है वो देखती है की सारा भूमण्डल ,सारे गृह नक्छत्र तारे ,धरती आकाश पाताल सागर नदिया तीनो लोक ,पहाड़, ब्रम्हा ,विष्णु, महेश सब के सब मुँह के अंदर है यहाँ तक की वो अपने आप को भी और कृष्ण को भी कृष्ण के ही मुँह में ही देख रही है उसकी मति भ्रमित हो जाती है।
तभी वहाँ भगवान् विष्णु प्रकट होते है और यशोदा को सत्य का वास्तविक ज्ञान कराते है उसके बाद अपनी माया का पर्दा डालकर वहाँ से अन्तर्ध्यान हो जाते है। तब यशोदा अपने होश में आती है तो देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है उसे कुछ भी याद नहीं रहता है वो हाथ जोड़कर ईश्वर से प्राथना करती है की उसके पुत्र की रकछा करे और फिर कृष्ण का मुँह साफ़ करके अपने साथ घर ले आती है।
यमला अर्जुन के पूर्व जन्म की कथा
यमला अर्जुन पूर्व जन्म में धन के देवता कुबेर के पुत्र थे और इनका नाम नलकुबर और मणिग्रीव था। इनके पास धन,सौंदर्य और शक्ति थी। ये सब उनको बिना मेहनत किये अपने पिता से मिला था अतः उनको इन सब पर बहुत घमंड था। जो भी वस्तु बिना मेहनत के प्राप्त होती है जीव उसका मूल्य नहीं समझता है। और उसमे अहंकार आ जाता है। देवर्षि नारद के श्राप के कारन ये दोनों नन्द बाबा के प्रांगढ़ में एक साथ अर्जुन के पेड़ बन गये थे इस कारन इनका नाम यमलार्जुन पड़ा।
देवर्षि नारद द्वारा नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप देना
एक दिन नलकुबर और मणिग्रीव मन्दाकिनी के तट पर सुन्दर वातावरण के बीच नग्न होकर सुरापान करके नग्न स्त्रियों के साथ गंगा जी में स्नान कर रहे थे। जैसै हाथी हथनियो के साथ जल क्रीड़ा करता है वैसे ही। तभी वहाँ देवर्षि नारद प्रभु की भक्ति में नारायण नारायण करते हुए विचरण कर रहे रहे थे नारद की जी विणा जहा भक्ति रस को बड़ा रही थी वही नलकुबर और मणिग्रीव के भोग रास को भी बड़ा रही थी। एक ही समय दो लोगो के लिए विपरीत होता है। नलकुबर और मणिग्रीव दोनों नग्न थे और उनके साथ स्नान कर रही स्त्रियाँ भी नग्न थी। तभी ठीक उसी स्थान से देवर्षि नारद निकले तो देवर्षि नारद को देखकर स्त्रियाँ बहुत लज्जित हुई और उन्होंने तत्काल ही अपने वस्त्रो को पहन लिया;किन्तु ये दोनों वैसे ही पेड़ो की तरह खड़े रहें और देवर्षि नारद का उपहास उड़ाने लगे। देवर्षि नारद को उन दोनों पर क्रोध आ गया वे बोले की कहाँ ये दोनों लोकपाल के पुत्र और कहाँ इनकी ये दशा इनको तो ये भी भान नहीं की ये दोनों निर्वस्त्र है। देवर्षि नारद ने नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप दे दिया -तुम दोनों धन ,पद और शक्ति के वशीभूत होकर अंधे होकर पेड़ो की तरह खड़े हो अतः जाओ पेड़ बन जाओ। श्राप को सुनकर उन दोनों का नशा तुरंत ही दूर हो गया नलकुबर और मणिग्रीव पश्चाताप करते हुए नारद जी के पास आये और अपनी गलती की छमा माँगी। तब नारद जी बोले -मेरा शाप टल तो नहीं सकता किन्तु मेरी कृपा से तुम दोनों को वृछ योनि में भी भगवान् की स्मृति बनी रहेगी। देवताओ के सौ वर्ष बीत जाने पर जब भगवान् विष्णु इस धराधाम पर कृष्णा अवतार लेगे तब उनके द्वारा तुम दोनों का उद्धार होगा और भगवान् की असीम भक्ति प्राप्त होगी। फिर नलकुबर और मणिग्रीव को गोकुल में वृछ योनि प्राप्त हुई।
कृष्णा भगवान् कब और कैसी लीला करते है ये कोई नहीं जानता गोकुल में सब आनंदमय जीवन यापन कर रहे थे प्रभु का नाम ले रहे थे। कृष्णा जी भी गलियों में घूम रहे थे वे किसी की मटकी फोड़ते तो किसी का माखन चुराते ऐसा ही लीला करते प्रभु अपने घर को पधारे तो देखा की मैया माखन निकाल रही है। छोटे से बाल गोपाल जिनके पैरो में पैजनिया है कमर में कमरबंध है हाथो में छोटी से मुरली हैं सर पर मोर मुकुट है बालो में भी थोड़ी से मिटटी लगी है ,दौड़ के आके मैया के गले लग जाते है और मैया से बाल गोपाल बोलते है की -मैया माखन दो ना। तो मैया कहती है -जा जा के कही से चुरा के खा ले। उस समय नन्द बाबा इंद्रा की पूजा में लगे थे हुए बलराम सहित अन्य गोपाल भी यज्ञ देखने चले गए थे। कृष्णा मैया को बड़े प्यार से गले लगा के बोलते है की -मैया तू कितनी प्यारी है मेरा कितना ख्याल रखती है तू। मैया भी कृष्णा को अपनी गोद में ले कर बड़ा प्यार करती है और कहती है -अरे तू है ही इतना प्यारा। धन्य है यशोदा ,जो परमात्मा बड़े बड़े ऋषि मुनि के पास नहीं आता जिनको पाने के लिए लोग बड़ी कठोर तपस्या करते है उन परब्रम्ह परमात्मा को यशोदा अपनी गोद में लिए है ये सारा दृश्य देवता आकाश से देख कर भाव विभोर हो रहे थे। तभी कृष्णा ने मैया से पुछा की -मैया ये बताओ तुमको सारे जग में मुझसे प्यारा कोई और लगता है क्या। मैया कहती है -नहीं ,तू ही मुझे सबसे प्यारा लगता है। ये सुनते ही भगवान् मैया के गले लग जाते है।
तभी मैया को याद आता है की उसने रसोई घर में चूल्हे पर दूध चढ़ाया था और अब तक तो वो उबलने वाला होगा ऐसा विचार मन में आते ही मैया कृष्णा को अपनी गोद से तत्काल उतार देती है और कृष्णा से बोलती है की मैं अभी दूध का पात्र चूल्हे से उतार कर आती हु और दौड़ कर रसोई घर की ओर जाती है।
ऐसा देखकर कृष्णा को बड़ा ही गुस्सा आता है और कहते है की मैया बोलती है की मैं उसे सबसे प्यारा हु परन्तु उसने दूध के लिए मुझे छोड़ दिया। संसार में भी ऐसा ही होता है संसारी दूध (भौतिक सुख )के लिए भगवान् को भूल जाता है और उसे छोड़ देता है। फिर कृष्णा ने एक डंडा उठाया और वहाँ रखी सारी माखन,दूध और दही की हाँडीयो को फोड़ दिया।
krishna and yashoda |
जब मैया वापस आती है तो सारा दूध ,दही और माखन को ऐसे भूमि पर गिरा देखती है तो बहुत ही क्रोधित होती है। वो कृष्णा से बोलती है की -क्यों रे ;ये सब तूने किया है। कृष्णा मुस्कुरा के हामी भरते है। मैया फिर एक छड़ी ले के कृष्णा को मारने के लिए कृष्णा के पास आती है। भगवान् घर के बाहर भागते है। और मैया छड़ी ले के भगवान् के पीछे पीछे दौड़ती है। और बोलती है -रुक जा कृष्णा नहीं तो बहुत पिटेगा। कृष्णा जी सोचते है की -अगर कोई महादैत्य होता उसका कोई महाभयंकर अस्त्र होता तो उसको पल भर में ही मार देता परन्तु ये तो माँ की छड़ी है पड़ेगी तो जोर से लगेगी।
जो भगवान् सारे असुरो को पल भर में मार देते है वही आज मार के डर से आगे आगे भाग रहे है ये सब देखकर देवता भी आनंदित हो रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैया कृष्णा को पकड़ पाती है परन्तु जैसे ही छड़ी से मारने को अपने हाथ उठाती है तो मैया को दया आ जाती है और छड़ी को छोड़कर रस्सी से बांधने को सोचती है। मैया वही पास में पड़ी रस्सिया उठाती है और एक ऊखल में बाँधने लगती है और कहती है की -आज सारा दिन धूप में रहेगा तो तेरी अकल ठिकाने आ जायगी।
मगर जैसे ही मैया कृष्णा को बांधने लगती है तो रस्सी छोटी हो जाती है। ऐसा कई बार होता है।सबके बंधन
खोलने वाले को मैया आज बाँधने चली है। जब मैया हार जाती है तो बोलती है -क्यों रे ,मुझे क्यों सता रहा है। फिर कृष्णा आराम से अपने आप को ऊखल से बँधवा लेते है।
फिर कुछ गोपिया कहती है -हे नंदरानी तुम्हारा ये बालक जब हमारे घर में आकर हमारे बर्तन भाड़े भोड़ता है तो हम तो इसे कुछ नहीं कहती और तुम कुछ पात्रो के टूटने पर इस कोमल से बालक को ऊखल से बाँध रही हो तुम बड़ी ही निर्दई हो नंदरानी। परन्तु यशोदा उनकी बातो का कोई उत्तर नहीं देती है और गोपिया भी वहाँ से चली जाती है। और यशोदा भी भवन के अंदर चली जाती है।सारे प्राणियों का बंधन चिंतन मात्र से ही खोल देने वाले भगवान् आज खुद बंधन में बंधे है।
यहाँ कृष्णा ऊखल से बंधे खड़े है तभी उनकी नज़र वहा लगे दो यमलाअर्जुन के पेड़ो पर पड़ती है जो की पास पास लगे हुए थे। कृष्णा ने सोचा की क्यों न मैं इस ऊखल को इन यमलाअर्जुन पेड़ो के मध्य में फसा कर खीचू ताकि रस्सी टूट जाये। ऐसा विचार करके कृष्णा ऊखल को गिरा कर घसीटकर उन यमलार्जुन पेड़ो की ओर जाने लगते है।
जब कृष्णा उन यमलाअर्जुन के पेड़ो के समीप पहुंचते है तो उन पेड़ो की मनो दशा का वर्णन कौन कर सकता है। पेड़ो में भी जीवन होता है और इनको तो पूर्व के देवजीवन से अब तक की सारी घटनाये याद है। सौ देव वर्षो के लम्बी अवधि के बाद अपने उद्धार की घडी और भगवान् श्रीकृष्ण को समीप देखकर उनके अंतर्मन में क्या क्या भाव आ रहे थे ये तो या तो वे खुद जानते थे या फिर जगदीश्वर श्रीकृष्ण।
फिर कृष्णा उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य में प्रवेश करते है। भगवान् जिसके अंतर्मन में प्रवेश करते है उसमे क्लेश और जड़ता नहीं रहती है। और फिर ऊखल को उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य फसा कर जोर से रस्सी को खींचा बस फिर क्या था वे दो विशाल यमलार्जुन पेड़ भारी शब्द करते हुए भूमि पर गिर पड़े। और वे इस तरह गिरे की वहाँ पर किसी भी वस्तु या प्राणी को किसी भी प्रकार की कोई छति ना हुई।वे तो कृष्णा भक्त थे भला वे किसी को छति कैसे पंहुचा सकते थे।
यहाँ पर कुछ विद्वानों का कहना है की भगवान् की आज्ञा से देवी योगमाया ने यमलार्जुन पेड़ो की गिरने की ध्वनि को अवरुद्ध कर दिया था ताकि मैया यशोदा तथा गांव वाले ना आ जाये और यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार में बाधा उत्पन्न हो अत:जब तक यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार ना हो गया तब तक योगमाया ने अपना प्रभाव बनाये रक्खा।
जहा से वे यमलार्जुन पेड़ गिरे थे उस स्थान से दो दिव्य ज्योति प्रकट हुई उस ज्योति में से दिव्य वस्त्रो और आभूषणों से सज्जित दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए जो वास्तव में नलकुबेर और मणिग्रीव थे।
नलकुबेर और मणिग्रीव ने भगवान् के परिक्रमा की और उनके चरण स्पर्श किये। तथा उनकी कई प्रकार से स्तुति की तब भगवान् कृष्णा हसे और बोले -मै तो सदा मुक्त रहता हु परन्तु जीव मेरी स्तुति तब करता है जब वो बंधन में बंधा होता है किन्तु आज स्तिथि विपरीत है मैं बंधा हु और मुक्त जीव मेरी स्तुति कर रहा है। तुम दोनों को मेरी असीमित भक्ति प्राप्त हो चुकी है तुम दोनों आज नारद जी के श्राप से मुक्त हुए अब तुम दोनों अपने लोक को प्रस्थान करो।
नलकुबेर और मणिग्रीव के वहाँ से प्रस्थान करते ही योगमाया ने अपना प्रभाव समाप्त किया और फिर सबको पेड़ो के गिरने की ध्वनि सुनाई पड़ी यशोदा जी भाग कर बाहर आई और कई गांव वाले और बालगोपाल वह एकत्रित हो गए नन्द बाबा भी वहाँ आ गए कोई बोला की ये इतना बड़ा पेड़ कैसे गिरा ना आंधी आई और ना ही इसकी जड़े खोखली है। तभी एक बाल गोपाल बोला -मैंने देखा कृष्णा ने इस ऊखल से ही इन पेड़ो को गिराया है और इसमें से दो दिव्या आत्माये बाहर आई और कृष्णा के पैर छूकर आकाश में चली गई।
सबने उस बालगोपाल की ओर संदेह की दृस्टि से देखा और फिर उसकी बातो को अनसुना कर दिया। किसी किसी को संदेह भी हुआ की कृष्णा को मारने कई असुर आ चुके है परन्तु ये बड़ा ही भाग्यशाली है। फिर नन्द बाबा ने कृष्णा को अपनी गोद में उठाया और भवन के अंदर चले गए और गांव वाले भी अपने अपने घर को चले गए।
aghasur koun tha |
अघासुर कौन था
पूर्व जन्म में अघासुर शंखासुर का पुत्र था उसका नाम था अघ। अघ कामदेव के सामान ही बड़ा ही सुन्दर और रूपवान था। उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा ही घमंड था। एक दिन अघ वन में विचरण कर रहा था तभी वहाँ से ऋषि अष्टावक्र निकले। उनका शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था इस कारन वे बड़े कुरूप दिखते थे इसलिए उनका नाम अष्टावक्र पड़ा। उनको देखकर अघ उनका बड़ा ही उपहास किया। अघ बोला -क्या सूंदर चाल है आपकी ऐसी चाल को देखकर तो स्वर्ग की अप्सराए भी लज्जित हो जाती होगी। परन्तु ऋषि अष्टावक्र अघ की बातो को अनसुना कर दिया और आगे बढ़ने लगे। परन्तु अघ मान नहीं रहा था। फिर अघ बोला -अरे मुनि सुनिए ,मैंने कहा ये कुसुमलता की बेल की भांति बलखाती ये सूंदर और लचकदार कमर किस दूकान से लाये हो भाई हमें भी उसका पता बता दो। ऐसा कहकर अघ जोर जोर से हसने लगा। परन्तु ऋषि अष्टावक्र ने फिर भी उसकी बातो को अनसुना कर दिया। परन्तु अघ बार बार उनका उपहास कर रहा था। ऋषि अष्टावक्र क्रोधी स्वाभाव के नहीं थे परन्तु गलती की सजा मिलनी चाहिए। फिर ऋषि अष्टावक्र ने अघ को श्राप दिया की -ऐसा शरीर मुझे भगवान् की दुकान से मिला है। ऐसी लचकदार कमर और टेड़े मेढ़े शरीर भगवान् धरती पर रेंगने वाले सर्पो को देता है जा तू सर्प बन जा।
फिर अघ को अपने कर्मो पर पछतावा होता है और वो ऋषि अष्टावक्र से बोलता है -छमा ऋषिवर ; छमा मैंने सिर्फ विनोदवश होकर आपका अपमान कर दिया मुझे छमा करे। ऋषि अष्टावक्र बहुत ही दयालु थे वे बोले -मेरा श्राप तो टल नहीं सकता परन्तु जा जब द्वापर के अंत में भगवान् विष्णु कृष्णा अवतार लेगे तो उनके हाथो तेरी मुक्ति होगी। फिर द्वापर युग में वही अघ ,अघासुर बन कर कृष्णा को मारने आया था।
श्री कृष्णा भगवान् ने कंस द्वारा भेजे गए बहुत से असुरो को यमराज के पास पंहुचा दिया था। कंस को पहले ही ये विश्वास था की कृष्णा ही देवकी का आठवां पुत्र है। मगर कृष्णा को मारा कैसे जाये और किसे भेजा जाये इसी उधेड़बुन में वो अपने राजदरबार में परेशान बैठा था और अपने मंत्रियो से विचार विमर्श कर रहा था। लेकिन कोई उसे सही मार्ग नहीं बता पा रहा था तभी उसे अघासुर की याद आयी जो पूतना और बकासुर का भाई भी था। कंस ने तुरंत अघासुर को पुकारा और दुसरे ही पल वह अघासुर प्रकट हो गया था वो देखने में एक बहुत विशाल अजगर था और बड़ा ही भयानक थ। अघासुर बड़ा ही प्रसन्न हुुआ की महाराज कंस नेे उसे याद किया ।अघासुर बोला -हे महाराज अगर आप मुुझे ना भी बुलाते तो भी मैं आ जाता मैं भी उस कृष्णा से अपने भाई और बहन की मृत्यु का बदला लेना चाहता हु। कंस बोलै -वो बालक बहुत ही मायावी है। क्या तुम उसे मार सकोगे ?अघासुर बोला -मै वो गलती नहीं करूँगा जो मेरे भाई ने की थी। अपने शिकार को मुँह में ले के उगलने की मै तो पूरे गोकुल को ही अपने मुँह में समाहित कर सकता हु।और वैसे भी सर्प की कुंडली में जो जकड गया उसे तो देवता भी नहीं छुड़ा सकते है। मुझे जाने की आज्ञा दे। कंस बहुत ही प्रसन्न होता है और उसे जाने की आज्ञा देता है।
अघासुर का गोकुल जाना
अघासुर भी बहुत मायावी था वो अपने शरीर का आकर को मनचाहा बड़ा सकता था परन्तु कृष्णा तो मायापति थे उनसे भला कुछ कैसे चुप पाता।अघासुर गोकुल आता है और जहा कृष्णा सहित सारे बाल गोपाल गैया चराते थे वही कही पर जाकर अपने शरीर को बड़ा करके और अपने विशाल मुँह को खोल कर स्थिर हो जाता है। देखने में ऐसा लगता मानो कोई बहुत बड़ी गुफा हो। और फिर अघासुर कृष्णा की राह देखने लगता है।
कृष्णा द्वारा अघासुर का वध होना
दुसरे दिन कृष्णा और मनसुखा ,श्रीदामा वा दुसरे बालगोपाल गैया चराने जाते है और खेलते है खेलते खेलते वे थोड़ा आगे निकल आते है तो वे सब एक गुफा को देखकर चौक पड़ते है। मनसुखा बोलता है -अरे ये गुफा कहा से आ गई पहले तो यहाँ कोई गुफा नहीं थी। यहाँ तो बहुत घनी झाडिया थी। श्रीदामा कहता है -अरे कल रात आंधी आयी थी ना उड़ गई हो गी । मनसुखा बोलता है -हा ये हो सकता है चलो चल कर देखते है। फिर सारे ग्वाले उस गुफा में जाते है जो वास्तव में अघासुर था। अंदर जाकर मनसुखा कृष्णा से कहता है -कृष्णा अंदर आओ देखो कितनी लम्बी सुरंग है। कृष्णा जी तो सर्वज्ञाता है वो तो सब जानते थे परन्तु अपनी लीला को विस्तार देने के लिए वे अंदर गए। श्रीदामा कहता है -ये गुफा कितनी ठंडी है आज से हम यही भोजन किया करेंगे।
तभी अघासुर अपना मुख बंद कर लेता है। फिर सारे ग्वाले बिन जल के मछली की तरह तड़पने लगते है और कृष्णा को जोर जोर से पुकारने लगते है और प्राणवायु न मिलने के कारन वे बेहोश हो जाते है। फिर भगवान् कृष्णा अपना शरीर का आकर बड़ा करके अघासुर के मुख को खोलते है और फिर अघासुर के मुख को तोड़कर उसका वध कर देते है। ऐसा होते ही आकाश से सरे देवता पुष्प वर्षा करते है और मंगल गीत गाते है। फिर सारे ग्वाल बाल होश में आ जाते है तो वे देखते है की अघासुर मारा पड़ा है वे सब कृष्णा से पूछते है की ये सब किसने किया तो भगवान् बोलते है की ईश्वर ने हम सब को इस अघासुर से बचाया है। इसके बाद सब अपने घर की ओर चल पड़ते है