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SUNIL GUPTA

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Sunil Gupta

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  • aghasur koun tha

    aghasur koun tha

    aghasur koun tha
    aghasur koun tha

                                                                अघासुर कौन था 
    पूर्व जन्म में अघासुर शंखासुर का पुत्र था उसका नाम था अघ। अघ कामदेव के सामान ही बड़ा ही सुन्दर और रूपवान था। उसे अपनी सुंदरता पर बड़ा ही घमंड था। एक दिन अघ वन में विचरण कर रहा था तभी वहाँ से ऋषि अष्टावक्र निकले। उनका शरीर आठ स्थानों से टेढ़ा था इस कारन वे बड़े कुरूप दिखते थे इसलिए  उनका नाम अष्टावक्र पड़ा। उनको देखकर अघ उनका  बड़ा ही उपहास किया। अघ बोला -क्या सूंदर चाल है आपकी ऐसी चाल को देखकर तो स्वर्ग की अप्सराए भी लज्जित हो जाती होगी। परन्तु ऋषि अष्टावक्र अघ की बातो को अनसुना कर दिया और आगे बढ़ने लगे। परन्तु अघ मान नहीं रहा था। फिर अघ बोला -अरे मुनि सुनिए ,मैंने कहा ये कुसुमलता की बेल की भांति बलखाती ये सूंदर और लचकदार कमर किस दूकान से लाये हो भाई हमें भी उसका पता बता दो। ऐसा कहकर अघ जोर जोर से हसने लगा। परन्तु ऋषि अष्टावक्र ने फिर भी उसकी बातो को अनसुना कर दिया। परन्तु अघ बार बार उनका उपहास कर रहा था। ऋषि अष्टावक्र क्रोधी स्वाभाव के नहीं थे परन्तु गलती की सजा मिलनी चाहिए। फिर ऋषि अष्टावक्र ने अघ को श्राप दिया की -ऐसा शरीर मुझे भगवान् की दुकान से मिला है। ऐसी लचकदार कमर और टेड़े मेढ़े शरीर भगवान् धरती पर रेंगने वाले सर्पो को देता है जा तू सर्प बन जा। 
    फिर अघ को  अपने कर्मो पर पछतावा होता है और वो ऋषि अष्टावक्र से बोलता है -छमा ऋषिवर ; छमा मैंने सिर्फ विनोदवश होकर आपका अपमान कर दिया मुझे छमा करे। ऋषि अष्टावक्र बहुत ही दयालु थे वे बोले -मेरा  श्राप तो टल नहीं सकता परन्तु जा जब द्वापर के अंत में भगवान् विष्णु कृष्णा अवतार लेगे तो उनके हाथो तेरी मुक्ति होगी। फिर द्वापर युग में वही अघ ,अघासुर बन कर कृष्णा को मारने आया था। 
  • Aghasura vadh

    Aghasura vadh

    Aghasura vadh
    Aghasura vadh 
    श्री कृष्णा भगवान् ने कंस द्वारा भेजे गए बहुत से असुरो को यमराज के पास पंहुचा दिया था। कंस को पहले ही ये विश्वास था की कृष्णा ही देवकी का आठवां पुत्र है। मगर कृष्णा को मारा कैसे जाये और किसे भेजा जाये इसी उधेड़बुन में वो अपने राजदरबार में परेशान बैठा था और अपने मंत्रियो से विचार विमर्श कर रहा था। लेकिन कोई उसे सही मार्ग नहीं बता पा रहा था तभी उसे अघासुर की याद आयी जो पूतना और बकासुर का भाई भी था। कंस ने तुरंत अघासुर को पुकारा और दुसरे ही पल वह अघासुर प्रकट हो गया था वो देखने में एक बहुत विशाल अजगर था और बड़ा ही भयानक थ। अघासुर बड़ा ही प्रसन्न हुुआ की महाराज कंस नेे उसे याद किया ।अघासुर बोला -हे महाराज अगर आप मुुझे ना भी बुलाते तो भी मैं आ जाता मैं भी उस कृष्णा से अपने भाई और बहन की मृत्यु का बदला लेना चाहता हु। कंस बोलै -वो बालक बहुत ही मायावी है। क्या तुम उसे मार सकोगे ?अघासुर बोला -मै वो गलती नहीं करूँगा जो मेरे भाई ने की थी। अपने शिकार को मुँह में ले के उगलने की मै तो पूरे  गोकुल को ही अपने मुँह में समाहित कर सकता हु।और वैसे भी सर्प की कुंडली में जो जकड गया उसे तो देवता भी नहीं छुड़ा सकते है।  मुझे जाने की आज्ञा दे। कंस बहुत ही प्रसन्न होता है और उसे जाने की आज्ञा देता है। 
    अघासुर का गोकुल जाना 
    अघासुर भी बहुत मायावी था वो अपने शरीर का आकर को मनचाहा बड़ा सकता था परन्तु कृष्णा तो मायापति थे उनसे भला कुछ कैसे चुप पाता।अघासुर गोकुल आता है और जहा कृष्णा सहित सारे  बाल गोपाल गैया चराते थे वही कही पर जाकर अपने शरीर को बड़ा करके और अपने विशाल मुँह को खोल कर स्थिर हो जाता है। देखने में ऐसा लगता मानो कोई बहुत बड़ी गुफा हो। और फिर अघासुर कृष्णा की  राह देखने लगता है। 
     कृष्णा द्वारा अघासुर का वध होना 
    दुसरे दिन कृष्णा और मनसुखा ,श्रीदामा वा दुसरे बालगोपाल गैया चराने जाते है और खेलते है खेलते खेलते वे थोड़ा आगे निकल आते है तो वे सब एक गुफा को देखकर चौक पड़ते है। मनसुखा बोलता है -अरे ये गुफा कहा से आ गई पहले तो यहाँ कोई गुफा नहीं थी। यहाँ तो बहुत घनी झाडिया थी। श्रीदामा कहता है -अरे कल रात आंधी आयी थी ना उड़ गई  हो गी । मनसुखा बोलता है -हा ये हो सकता है चलो चल कर देखते है। फिर सारे ग्वाले उस गुफा में जाते है जो वास्तव में अघासुर था। अंदर जाकर मनसुखा कृष्णा से कहता है -कृष्णा अंदर आओ देखो कितनी लम्बी सुरंग है। कृष्णा जी तो सर्वज्ञाता है वो तो सब जानते थे परन्तु अपनी लीला को विस्तार देने के लिए वे अंदर गए। श्रीदामा कहता है -ये गुफा कितनी ठंडी है आज से हम यही भोजन किया करेंगे। 
    तभी अघासुर अपना मुख बंद कर लेता है। फिर सारे ग्वाले बिन जल के मछली की तरह तड़पने लगते है और कृष्णा को जोर जोर से पुकारने लगते है और प्राणवायु न मिलने के कारन वे बेहोश हो जाते है। फिर भगवान् कृष्णा अपना शरीर का आकर बड़ा करके अघासुर के  मुख को खोलते है और फिर अघासुर के  मुख को तोड़कर उसका वध कर देते है। ऐसा होते ही आकाश से सरे देवता पुष्प वर्षा करते है और मंगल गीत गाते है। फिर सारे ग्वाल बाल होश में आ जाते है तो वे देखते है की अघासुर मारा पड़ा है वे सब कृष्णा से पूछते है की ये सब किसने किया तो भगवान् बोलते है की ईश्वर ने हम सब को इस अघासुर से बचाया है। इसके बाद सब अपने घर की ओर चल पड़ते है 
  • Bakasur vadh

    Bakasur vadh

    Bakasur vadh
    bakasur vadh
    अपने इतने असुरो को काल के गाल में समाता देखकर कंस बहुत हीदुखी  हो गया था उसे अब पूरा भरोसा हो गया था की कृष्णा ही देवकी का वो आठवां पुत्र है जो उसका काल बन कर आया है। कंस अब कृष्णा को समाप्त करने की कोई और योजना बनाने लगा था की तभी उसे बकासुर की याद आयी जो की उसका परम मित्र था। उसने तत्काल ही बकासुर को बुलाया और कुछ समय बाद बकासुर कंस के सामने था। बकासुर बहुत ही विशाल बगुले के सामान एक पछी था जिसकी चोच बहुत ही बड़ी थी। कंस को परेशान देखकर बकासुर ने पुछा-हे मित्र तुम्हारी इस चिंता का क्या कारन है जिसने तुमको इतना विचलित कर रक्खा है।"तब कंस बोला -हे मित्र मेरी परेशानी का कारन मेरी बहन देवकी का आठवां पुत्र कृष्णा है जो की मेरा काल है वो एक छोटा बालक है परन्तु बहुत ही मायावी है उसने मेरे बहुत से असुरो को मौत की नींद सुला दिया है। 
    इतना सुनते ही बकासुर बड़ी जोर से हँसा और बोला - एक सामान्य से बालक ने आपको इतना परेशान कर दिया। अरे अगर आप मुझे पहले ही बुला लेते तो आपको अपने इतने असुरो को खोना ना पड़ता। तब कंस ने कहा -अरे मुर्ख वो कोई सामान्य बालक नहीं है वो बहुत ही मायावी है। इतना सुनते ही बकासुर बोलता है की -क्या मुझसे भी बड़ा है। आप मुझे आज्ञा दे मैं अभी जाकर उसको यमराज के पास पहुंचा देता हु। कंस बकासुर की बात सुनकर बड़ा ही खुस होता है और उसको जाने की आज्ञा देता है।  

    कृष्णा द्वारा बकासुर का वध होना 
    उधर वहा गोकुल में सवेरा हुआ है मैया कृष्णा को उठा रही है और बोल रही है की -कान्हा उठो गैया चराने नहीं जाना है क्या। कृष्णा जी उठते है और बलदाऊ और ग्वाल बालो के साथ चले जाते है गैया चराने। आगे आगे कृष्णा जी बंसी बजाते हुए चल रहे है और पीछे सारी गैया और ग्वाल बाल। गैया चराते हुए दोपहर हो गई सबने भोजन किया। कृष्णा वही पेड़ की छाया में लेटकर आराम करने लगे सारी गाये सामने चर रही थी। कुछ  ग्वालबाल यमुना के किनारे पानी  पीने चले गए। वे पानी पीने बैठे ही थे की एक भयंकर प्राणी को देखकर चीत्कार कर उठे। वह प्राणी था तो बगुले के आकार का परन्तु उसकी चोच बहुत बड़ी थी और उसका शरीर भी बहुत बड़ा था। वास्तव में वो बकासुर था। ग्वालबालो की चीत्कार सुनकर कृष्णा भी उसी ओर दौड़ पड़े। 
    कृष्णा ने देखा की एक विशाल बगुला यमुना जी के किनारे खड़ा है और सारे ग्वालबाल एक साथ दूर डरे खड़े है। तब कृष्णा बोले -डरो नहीं ये कुछ नहीं करेगा मैं अभी इसके पास जाता हु। इतना कहकर कृष्णा बकासुर के पास जाते है और उसके आस पास घुमते है। कृष्णा ग्वाल बालो से बोलते है -देखा मैंने कहा था न की ये कुछ नहीं करेगा।इतने में ही बकासुर कृष्णा को झपटकर निगल लेता है। बलराम समेत सभी ग्वालबालों ने जब ये देखा की बकासुर ने कृष्णा को निगल लिया है तो वे सब अचेत हो गए। कृष्णा तो लोकपितामह ब्रम्हा के भी पिता है। जब वे बकासुर के तालु के नीचे पहुंचे तो वे उसका तालु आग के सामान जलाने लगे और फिर बकासुर ने अपना मुख खोल दिया और कृष्णा बाहर आ गए। 
    फिर बकासुर ने अपनी कठोर चोच से कृष्णा पर प्रहार करने लगा वो बार बार प्रहार कर रहा था और कृष्णा उससे बच रहे थे मानो वे बकासुर के साथ क्रीड़ा कर रहे हो। बकासुर कृष्णा पर प्रहार करने के लिए झपटा ही था की कृष्णा ने उसके दोनों ठोर पकड़ कर चिर दिया और बकासुर का अंत कर दिया। ये देखकर सभी देवता खुश हुए और कृष्णा पर पुष्प वर्षा की। सारे ग्वाले ये सब देखकर आचम्भित हो गए। बलराम सहित सारे ग्वाले भगवान् के पास गए और सबको गले लगाया।फिर सब सारी गायो को हाँककर अपने अपने घर चले जाते है।  फिर सारे गोकुल में इस बात की चर्चा होने लगी की कृष्णा को जो भी मारने आया वो खुद ही मारा गया क्या कृष्णा कोई देवता है। माँ यशोदा और नन्द बाबा भी कृष्णा से यही पूछते तो कृष्णा मुस्कुरा कर मैया के गले लग जाते है और बोलते है की मै तो आपका कान्हा हूँ मैया। फिर मैया भी कृष्णा की बात को सच मानकर उनको गले लगा लेती है। 
  • vatsasura and krishna

    vatsasura and krishna



    vatsasura and krishna
    vatsasura and krishna
    जन्माष्टमी के दिन लोग अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण (Shri Krishna) को अनेकों चीजें समर्पित करते हैं और उन्हें खुश करते हैं. ऐसे में कसं ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए जितने भी असुरों को भेजा उन सब को भगवान श्री कृष्ण ने नर्क का द्वार दिखा दिया और इन्हीं में से एक असुर था वत्सासुर. जी हाँ, इस असुर को कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा था लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उसी राक्षस को यमलोक भेज दिया. अब आज हम आपको बताने जा रहे है वह कथा.

    कैसे किया भगवान श्री कृष्ण ने वत्सासुर का संहार -
    वृंदावन में प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा फैला हुआ था. चारों और फलों से लदे वृक्ष थे. जगह- जगह पर कुंज बने हुए थे. प्रत्येक डाल पर पक्षी अपने मधुर स्वरों से वातावरण को गुंजित कर रहे थे. वृंदावन का नजारा बहुत ही भव्य था. वृंदावन में गोवर्धन पर्वत और यमुना नदी और भी सुंदर बना रहे थे. भगवान श्री कृष्ण प्रतिदिन वन में अपने साथियों के साथ गायों को चराने के लिए जाते और उनके साथ खेला करते थे. श्री कृष्ण अपना पूरा समय वन में ही व्यतीत करते थे. शाम के समय सभी लोग अपने- अपने घर वापस लौट जाते थे. जब शाम को सब अपने- अपने घर लौटते तो थक हारकर सो जाते थे. वहीं एक दिन दोपहर के समय श्री कृष्ण एक पेड़ के नीचे अपने सखाओं के संग खेल रहे थे. चारों और शांति थी अचानक ही श्री कृष्ण की दृष्टि अपने बछड़ों पर पड़ी. उन सभी बछड़ों के बीच में एक अलग ही प्रकार का बछड़ा था. जिसे देखकर भगवान श्री कृष्ण आश्चर्यचकित रह गए. वह बछड़ा कोई और नहीं बल्कि एक राक्षस था. जिसने बछड़ों का रूप धारण कर रखा था. वह काफी समय से भगवान श्री कृष्ण को नुकसान पहुंचाने की प्रतीक्षा कर रहा था.गायों के बछड़े का रूप धारण करने के कारण ही उस असुर का नाम वत्सासुर पड़ गया था. भगवान श्री कृष्ण ने उस बछड़े को देखते ही पहचान लिया कि यह कोई बछड़ा नही है बल्कि कोई असुर है. भगवान श्री कृष्ण तो आखें बंद करके भी पूरे संसार को देख सकते थे तो उनसे यह असुर कैसे छिप सकता था. वत्सासुर को देखते ही कृष्ण उसकी और दौड़ पड़े और उसको गरदन से दबोच लिया. इसके बाद उन्होंने उस असुर के पेट पर इतनी जोर से प्रहार किया कि उसकी जीभ बाहर की और आ गई. इस आघात के बाद वह अपने असली रूप में आ गया और जमीन पर जा गिरा. जिसके बाद उसी मृत्यु हो गई . भगवान श्री कृष्ण के सभी मित्र उसे देखकर अचंभित रह गए . श्री कृष्ण की जय-जयकार से वहां का वातावरण गुंज उठा.
  • shaktasur koun tha

    shaktasur koun tha

     
    shaktasur koun tha
    krishna killed shaktasura 

    शकटासुर पूर्व जन्म मे दैत्य राज हिरण्याक्ष का पुत्र ऊतकक्ष था ,जो की बहुत ही बलवान था। एक बार की बात है ऊतकक्ष अपनी शक्ति के मद मे चूर होकर लोमेश ऋषि के आश्रम पर जाकर वहा के सारे पेड़ो को अपने शरीर से कुचल रहा था। उसने सारे पेड़ो को तहस नहस कर दिया । जब महर्षि लोमेश ने ये सब देखा तो उन्हे बड़ा ही क्रोध आया और उन्होने ऊतकक्ष को श्राप दिया की -हे पापी जिस देह की शक्ति के वशीभूत होकर तूने इन पेड़ो को क्षति पहुचाइ है ना जा आज से तू देह रहित (बिना शरीर का)हो जा । तब ऊतकक्ष ऋषि के चरणों मे गिर पड़ा और बोला की -हे पुण्यत्मा ; मै अपनी शक्ति के घमंड मे चूर हो गया था। मुझे क्षमा कर दे । तब ऋषि ने कहा की -मूर्ख जा मै तुझे क्षमा करता हू । द्वापर युग मे जब भगवान श्रीक़ृष्ण जब पृथ्वी पर अवतार लेगे तब उनके चरणों के स्पर्श से तेरी मुक्ति हो जायेगी । वही असुर उस छकड़े मे आकर बैठ गया था। और भगवान के द्वारा उसकी मुक्ति हुई फिर ये शकटासुर कहलाया.......

  • krishna killed shaktasur

    krishna killed shaktasur

                       शकटासुर का वध 

    shaktasur ka vadh
    krishna killed shaktasur

    पूतना भी मारी गई और तृणावर्त भी मारा गया था अपने दो बलशाली असुरो को मरा देखकर कंस बहुत क्रोधित हो गया था ।कंस अपने दरबारियों से गुस्से मे बोल रहा था की -"क्या कोई है जो मेरी समस्या का समाधान करे या सब मर गए है। " तभी वह शकटासुर(ऊतकक्ष ) प्रकट हुआ  और कंस को प्रणाम किया। कंस चौक गया की और बोला की कोण बोल रहा है। कंस को शकटासुर दिखाई नही पड़ रहा था। और दिखता भी कैसे वो अद्रश्य  था । शकटासुर ने कहा -"महाराज मै  अद्रश्य रेहता हू इसीलिए आप मुझे भूल गए । आप को मेरा शरीर नही दिखाई देता इसका ये अर्थ तो नही है आप का मन भी मुझे भुला दे।"कंस  बोला -"छमा करना मित्र मै अपनी चिंता और विचारो इतना खो गया था की  मै  सच मे तुम्हें भूल गया था । शकटासुर(ऊतकक्ष ) ने कहा -"परंतु मै नही भूला की कभी आपने मुझे अपना मित्र घोषित किया   था। इसलिए आज मै उसी मित्रता को निभाने आया हू और ये वचन देता हू की आपका शत्रु कल प्रातः सूर्य नही देखेगा ।
    तब कंस ने कहा की -"अगर तुमने ये कार्य कर दिया तो वापस आने पर एक बहुत बड़ा उत्सव होगा ।शकटासुर(ऊतकक्ष ) ज़ोर से हसा और बोला की मेरे शब्दकोश मे असंभव शब्द है ही नहीं। मै दैत्य राज हिरण्याक्ष का पुत्र ऊतकक्ष ये वचन देता हू की आपका शत्रु कल प्रातः सूर्य नही देखेगा ।                                                               <<शकटासुर कौन था ,जानने के लिए यहा क्लिक करे>> 

    शकटासुर का गोकुल जाना 

    उधर वहा गोकुल मे सब अपना कार्य कर रहे है सब तरफ शांति है । तभी यशोदा माँ कृष्ण को बाहर ले कर आती है और कृष्ण को एक छकड़े के नीचे लेटा देती है ताकि लल्ला को हवा भी लगती रहे और छाव भी मिलती रहे । और बाकी गोपियो के साथ काम करने लगती है। कुछ देर बाद यशोदा एक गोपी से कहती है की लल्ला का ध्यान रखना मै अभी भवन के अन्दर से आती हू। सारी गोपिया अपने काम मे इतना व्यस्त हो जाती है की उनका कृष्ण पर से ध्यान हट जाता है। तभी शकटासुर(ऊतकक्ष ) आता है और देखता है की कृष्ण छकड़े के नीचे लेटे है। वो तुरंत छकड़े के ऊपर चढ़ जाता है और कृष्ण को छकड़े से दबाकर मारने की योजना बनाता है। शकटासुर(ऊतकक्ष ) को कोई देख नहीं पा रहा था वो इसी बात का लाभ उठा रहा था मगर सर्व दृष्टा से कोन छुप सकता है।
    कृष्ण मुस्कुरा रहे थे और वो दुष्ट छकड़े को दबाकर कृष्ण के पास ला रहा था। छकड़े का आधे से भी ज्यादा पहिया जमीन मे समा चुका था। छकड़ा कृष्ण से टकराने ही वाला था की कृष्ण ने उस छकड़े  को अपने कोमल से और नन्हें पैरो से एक ठोकर मारी और वो छकड़ा हवा मे कुछ उचाई तक चला गया और शकटासुर(ऊतकक्ष ) ऊपर आसमान मे उछलकर कही दूर किसी सरोवर मे गिर कर उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई। इधर वो छकड़ा हवा मे उछलकर कृष्ण के ऊपर गिर जाता है और जमीन से टकराकर उसके दोनों पहिये टूट जाते है। कुछ लकड़ी के पटरे भी टूट जाते है। परंतु कृष्ण जी को कुछ भी नहीं होता है और वो मुसकुराते ही रहते है।
    जब गोपिया ये सब देखती है तो बहुत शोर मचाती है ,शोर सुनकर यशोदा जी भाग कर बाहर आती है और माता यशोदा के प्राण कंठ में आ जाते है वो दौड़कर भंग हो गये छकड़े के पास आयी। हठात अपने लाल को उसी प्रकार हस्ते देखकर लपककर उठा लिया और छाती से लगा लिया। उनकी आंखों से प्रसन्नता के कारण अश्रुधार फूट पड़े। वह अपना भाग्य को सराहने लगी। अगर लल्ला को कुछ हो जाता, वह लल्ला  को इस प्रकार छकड़े के नीचे अकेला लेटाकर  भवन के अन्दर  क्यों गयी। मैया यशोदा अपने आप को कोसने लगी। की उनसे कितनी बड़ी भूल हो गई  है, उनको  ऐसा कार्य नहीं  करना था। मेरे कृष्ण  को कुछ हो गया होता तो ? अभी वह अपने को संभाल भी नहीं पायी थी कि तभी  नंद बाबा आ गये। छकड़े की दशा देखकर चौंक गये। पूछा अरे छकड़ा इस प्रकार टुकड़े-टुकडे होकर कैसे पडा है। अतएव दोनों  और गोकुलवासी भगवान की लीला को न जान सके।
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