शकटासुर का वध
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krishna killed shaktasur |
पूतना भी मारी गई और
तृणावर्त भी मारा गया था अपने दो बलशाली असुरो को मरा देखकर
कंस बहुत क्रोधित हो गया था ।कंस अपने दरबारियों से गुस्से मे बोल रहा था की -"क्या कोई है जो मेरी समस्या का समाधान करे या सब मर गए है। " तभी वह
शकटासुर(ऊतकक्ष ) प्रकट हुआ और
कंस को प्रणाम किया। कंस चौक गया की और बोला की कोण बोल रहा है। कंस को
शकटासुर दिखाई नही पड़ रहा था। और दिखता भी कैसे वो अद्रश्य था ।
शकटासुर ने कहा -"महाराज मै अद्रश्य रेहता हू इसीलिए आप मुझे भूल गए । आप को मेरा शरीर नही दिखाई देता इसका ये अर्थ तो नही है आप का मन भी मुझे भुला दे।"कंस बोला -"छमा करना मित्र मै अपनी चिंता और विचारो इतना खो गया था की मै सच मे तुम्हें भूल गया था ।
शकटासुर(ऊतकक्ष ) ने कहा -"परंतु मै नही भूला की कभी आपने मुझे अपना मित्र घोषित किया था। इसलिए आज मै उसी मित्रता को निभाने आया हू और ये वचन देता हू की आपका शत्रु कल प्रातः सूर्य नही देखेगा ।
तब
कंस ने कहा की -"अगर तुमने ये कार्य कर दिया तो वापस आने पर एक बहुत बड़ा उत्सव होगा ।
शकटासुर(ऊतकक्ष ) ज़ोर से हसा और बोला की मेरे शब्दकोश मे असंभव शब्द है ही नहीं। मै दैत्य राज
हिरण्याक्ष का पुत्र ऊतकक्ष ये वचन देता हू की आपका शत्रु कल प्रातः सूर्य नही देखेगा ।
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शकटासुर का गोकुल जाना
उधर वहा गोकुल मे सब अपना कार्य कर रहे है सब तरफ शांति है । तभी
यशोदा माँ
कृष्ण को बाहर ले कर आती है और
कृष्ण को एक छकड़े के नीचे लेटा देती है ताकि लल्ला को हवा भी लगती रहे और छाव भी मिलती रहे । और बाकी
गोपियो के साथ काम करने लगती है। कुछ देर बाद
यशोदा एक
गोपी से कहती है की लल्ला का ध्यान रखना मै अभी भवन के अन्दर से आती हू। सारी
गोपिया अपने काम मे इतना व्यस्त हो जाती है की उनका
कृष्ण पर से ध्यान हट जाता है। तभी
शकटासुर(ऊतकक्ष ) आता है और देखता है की
कृष्ण छकड़े के नीचे लेटे है। वो तुरंत छकड़े के ऊपर चढ़ जाता है और
कृष्ण को छकड़े से दबाकर मारने की योजना बनाता है।
शकटासुर(ऊतकक्ष ) को कोई देख नहीं पा रहा था वो इसी बात का लाभ उठा रहा था मगर सर्व दृष्टा से कोन छुप सकता है।
कृष्ण मुस्कुरा रहे थे और वो दुष्ट छकड़े को दबाकर
कृष्ण के पास ला रहा था। छकड़े का आधे से भी ज्यादा पहिया जमीन मे समा चुका था। छकड़ा
कृष्ण से टकराने ही वाला था की
कृष्ण ने उस छकड़े को अपने कोमल से और नन्हें पैरो से एक ठोकर मारी और वो छकड़ा हवा मे कुछ उचाई तक चला गया और
शकटासुर(ऊतकक्ष ) ऊपर आसमान मे उछलकर कही दूर किसी सरोवर मे गिर कर उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई। इधर वो छकड़ा हवा मे उछलकर
कृष्ण के ऊपर गिर जाता है और जमीन से टकराकर उसके दोनों पहिये टूट जाते है। कुछ लकड़ी के पटरे भी टूट जाते है। परंतु
कृष्ण जी को कुछ भी नहीं होता है और वो मुसकुराते ही रहते है।
जब गोपिया ये सब देखती है तो बहुत शोर मचाती है ,शोर सुनकर
यशोदा जी भाग कर बाहर आती है और माता यशोदा के प्राण कंठ में आ जाते है वो दौड़कर भंग हो गये छकड़े के पास आयी। हठात अपने लाल को उसी प्रकार हस्ते देखकर लपककर उठा लिया और छाती से लगा लिया। उनकी आंखों से प्रसन्नता के कारण अश्रुधार फूट पड़े। वह अपना भाग्य को सराहने लगी। अगर लल्ला को कुछ हो जाता, वह लल्ला को इस प्रकार छकड़े के नीचे अकेला लेटाकर भवन के अन्दर क्यों गयी। मैया यशोदा अपने आप को कोसने लगी। की उनसे कितनी बड़ी भूल हो गई है, उनको ऐसा कार्य नहीं करना था। मेरे
कृष्ण को कुछ हो गया होता तो ? अभी वह अपने को संभाल भी नहीं पायी थी कि तभी
नंद बाबा आ गये। छकड़े की दशा देखकर चौंक गये। पूछा अरे छकड़ा इस प्रकार टुकड़े-टुकडे होकर कैसे पडा है। अतएव दोनों और गोकुलवासी भगवान की लीला को न जान सके।