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SUNIL GUPTA

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Sunil Gupta

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  • mouth of krishna

    mouth of krishna

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    भगवान् कृष्ण अपनी लीला का विस्तार करे जा रहे थे और कई असुरो का वध भी कर चुके थे। इसी बीच एक दिन मैया भगवान् को लेकर यमुना के किनारे अपनी सखियों के साथ स्नान करने पहुंची। मैया ने कृष्णा को एक जगह पर बैठाया और खुद स्नान करने चली गई। भगवान् कृष्ण जो अनंत है वो मिटटी में बैठे है। कुछ सखिया यशोदा से पूछ रही है की -क्यों रे यशोदा आज कन्हा को भी ले आयी। तो यशोदा बोली -क्या करू ये है ही इतना शैतान कल माखन का बड़ा सा गोला खाने जा रहा था अपच हो जाती तो। तभी दूसरी सखी बोली-अरे ग्वाले का बालक है माखन मिश्री नहीं खायेगा तो क्या खाइयेगा। तभी भगवान् अपनी तोतली बोली में बोले -मैंने माखन नहीं खायातो मैया बोली -आ आ ह ह मैंने माखन नहीं खाया झूठा कही का। यशोदा कितनी भाग्यशाली है की परमपिता परमेश्वर को भी डांट रही है। यशोदा ,कृष्ण से बोलती है की -देख कान्हा चुपचाप यही बैठ मै अभी स्नान करके आती हूँ। तभी एक गोपी यशोदा को ताने देते हुए बोली -अरे कान्हा तेरी मैया पहली बार तुझे घाट पर लायी है और बंदी बना कर रख दिया है अगर मेरी माँ ऐसा करती तो मै भी मटकी फोड़ती। तो मैया बोलती है की -अरे इसे ऐसे सीख मत दे ये प्रतिदिन एक मटकी फोड़ सकता है। तभी एक और सखी बोलती है की -अरे तो क्या हुआ अगर प्रतिदिन एक मटकी फोड़ता भी है तो नन्द बाबा की कोई हानि नहीं होने वाली। 

    यशोदा यमुना जी में स्नान करने के लिए प्रवेश करती है और यमुना जी से प्राथना करती है की -हे यमुना मैया मेरे लाल का कल्याण करना ,गोकुल का कल्याण करना सारे विश्व का कल्याण करना। इधर मैया स्नान कर रही है और उधर कृष्ण मिटटी से खेल रहे है तभी वहाँ पृथ्वी माता प्रकट होती है और भगवान् के चरणों को छूकर प्रणाम करती है और कहती है की - हे प्रभु; अपनी दासी पृथ्वी का प्रणाम स्वीकार करे। आज आपने पहली बार अपने दिव्य चरण मेरे वछ स्थल पर रक्खे है आज तक आप पलने में या माता की गोद में ही रहते थे। यमुना जी ने तो आपके जन्म के समय में ही श्री चरणों को स्पर्श करने का सौभाग्य प्राप्त कर लिया था लेकिन मुझे राह तकनी पड़ी। आज आपने मुझ पर कृपा की है मै तो ख़ुशी के मारे पागल हुई जा रही हूँ मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा है की मै आपको क्या दू ,मेरे पास तो केवल मिटटी और कंकड़ ही है। ये कह कर धरती माँ के आँखों में अश्रु आ गए। 

    तभी भगवान् विष्णु \प्रकट हुए और बोले की -हे धरती माता सारे विश्व में तुम जैसा छमाशील और कोई नहीं है। तुम्हारी धरती पर साधु जन भी विचरते है और महा पापी भी अपने क्रूर चरण धरती पर रखकर चलते है। कुछ लोग तुम्हारी धरती पर पुण्य कर्मो के फूल खिलाते है। और कुछ तेरी धरती पर पाप का लहू बहाते है। परन्तु तुम सबको सहन करती हो सबको अपनी गोद में धारण करती हो। अपना सीना फाड़ कर सबके लिए अन्न देती हो सबका भरण पोषण करती हो। माँ की तरह ही अपने सभी बालको का कल्याण ही करती हो किसी का अहित नहीं करती हो इसलिए हे माँ तेरी ये मिटटी इतनी पवित्र है ,इससे अच्छी भेट मेरे लिए और क्या होगी अतः मै इसे ही नैवैद्य समझकर स्वीकार करता हूँ। 
    dharti mata
    dharti mata
    इसके बाद भगवान् कृष्ण ने बड़े ही प्रेम से मिटटी खाना शुरू किया और खूब मिटटी खायी।तभी एक गोपी कृष्ण को मिटटी खाते हुए देख लेती है और जा कर यशोदा से कहती है की -यशोदा तेरा लल्ला तो मिटटी खा रहा है। तभी यशोदा कृष्ण के पास जाती है और देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है तब मैया अपने पल्लू से कृष्ण का मुँह साफ़ करती है की एक गोपी बोलती है की अरे बाहर से क्या साफ करती है मुँह के अंदर तो देख कितना बड़ा मिटटी का गोला खाया है। इतना कहकर सारी गोपिया वहा से चली जाती है तो मैया कृष्ण से पूछती है की मिटटी क्यों खाई खोल मुँह ,तो कृष्ण बड़े ही प्यार से बोलते है की -मैया मैंने मिटटी नहीं खाई।
    तो मैया बोलती है -झूठा कही का ,मिटटी नहीं खाई खोल मुँह। तब भगवान् को विवश होकर अपना मुँह खोलना पड़ा तो यशोदा भगवान् के मुँह में देखती है तो उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती है उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रह जाता है वो देखती है की सारा भूमण्डल ,सारे गृह नक्छत्र तारे ,धरती आकाश पाताल सागर नदिया तीनो लोक ,पहाड़, ब्रम्हा ,विष्णु, महेश सब के सब मुँह के अंदर है यहाँ तक की वो अपने आप को भी और कृष्ण को भी कृष्ण के ही मुँह में ही देख रही है उसकी मति भ्रमित हो जाती है। 
    तभी वहाँ भगवान् विष्णु प्रकट होते है और यशोदा को सत्य का वास्तविक ज्ञान कराते है उसके बाद अपनी माया का पर्दा डालकर वहाँ से अन्तर्ध्यान हो जाते है। तब यशोदा अपने होश में आती है तो देखती है की कृष्ण के मुँह में मिटटी लगी हुई है उसे कुछ भी याद नहीं रहता है वो हाथ जोड़कर ईश्वर से प्राथना करती है की उसके पुत्र की रकछा करे और फिर कृष्ण का मुँह साफ़ करके अपने साथ घर ले आती है।  
  • yamla arjun koun the

    yamla arjun koun the

    yamla arjun koun the
    यमला अर्जुन के पूर्व जन्म की कथा 
    यमला अर्जुन पूर्व जन्म में धन के देवता कुबेर के पुत्र थे और इनका नाम नलकुबर और मणिग्रीव था। इनके पास धन,सौंदर्य और शक्ति थी। ये सब उनको बिना मेहनत किये अपने पिता से मिला था अतः उनको इन सब पर बहुत घमंड था। जो भी वस्तु बिना मेहनत के प्राप्त होती है जीव उसका मूल्य नहीं समझता है। और उसमे अहंकार आ जाता है। देवर्षि नारद के श्राप के कारन ये दोनों नन्द बाबा के प्रांगढ़ में एक साथ अर्जुन के पेड़ बन गये थे इस कारन इनका नाम यमलार्जुन पड़ा। 
     देवर्षि नारद द्वारा  नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप देना 
    एक दिन नलकुबर और मणिग्रीव मन्दाकिनी के तट पर सुन्दर वातावरण के बीच नग्न होकर सुरापान करके नग्न स्त्रियों के साथ गंगा जी में स्नान कर रहे थे। जैसै हाथी हथनियो के साथ जल क्रीड़ा करता है वैसे ही। तभी वहाँ  देवर्षि नारद प्रभु की भक्ति में नारायण  नारायण करते हुए विचरण कर रहे  रहे थे नारद की जी विणा जहा भक्ति रस को बड़ा रही थी वही  नलकुबर और मणिग्रीव के  भोग रास को भी  बड़ा रही थी। एक ही समय दो लोगो के लिए विपरीत होता है। नलकुबर और मणिग्रीव दोनों  नग्न थे और उनके साथ स्नान कर रही स्त्रियाँ भी नग्न थी। तभी ठीक उसी स्थान  से देवर्षि नारद निकले तो देवर्षि नारद को देखकर स्त्रियाँ बहुत लज्जित हुई और उन्होंने तत्काल ही अपने वस्त्रो को पहन लिया;किन्तु ये दोनों वैसे ही पेड़ो की तरह खड़े रहें और देवर्षि नारद का उपहास उड़ाने लगे। देवर्षि नारद को उन दोनों पर क्रोध आ गया  वे बोले की कहाँ ये दोनों लोकपाल के पुत्र और कहाँ इनकी ये दशा इनको तो ये भी भान नहीं की ये दोनों निर्वस्त्र है। देवर्षि नारद ने   नलकुबर और मणिग्रीव को श्राप दे दिया -तुम दोनों धन ,पद और शक्ति के वशीभूत होकर अंधे होकर पेड़ो की तरह खड़े हो अतः जाओ  पेड़ बन जाओ। श्राप को सुनकर उन दोनों का नशा तुरंत ही दूर हो गया  नलकुबर और मणिग्रीव पश्चाताप करते हुए नारद जी के पास आये और अपनी गलती की छमा माँगी। तब नारद जी बोले -मेरा शाप टल तो नहीं सकता किन्तु मेरी कृपा से तुम दोनों को वृछ योनि में भी भगवान् की स्मृति बनी रहेगी। देवताओ के सौ वर्ष बीत जाने पर जब भगवान् विष्णु इस धराधाम पर कृष्णा अवतार लेगे तब उनके द्वारा तुम दोनों का उद्धार होगा और भगवान् की असीम भक्ति प्राप्त होगी। फिर नलकुबर और मणिग्रीव को गोकुल में  वृछ योनि प्राप्त हुई। 
  • krishna and yashoda

    krishna and yashoda

    yamla arjun ka uddhar
    yamla arjun ka uddhar

    कृष्णा भगवान् कब और कैसी लीला करते है ये कोई नहीं जानता  गोकुल में सब आनंदमय जीवन यापन कर रहे थे प्रभु का नाम ले रहे थे। कृष्णा जी भी गलियों में घूम रहे थे वे किसी की मटकी फोड़ते तो किसी का माखन चुराते ऐसा ही लीला करते प्रभु अपने घर को पधारे तो देखा की मैया माखन निकाल रही है। छोटे से बाल गोपाल जिनके पैरो में पैजनिया है कमर में कमरबंध है हाथो में छोटी से मुरली हैं  सर पर मोर मुकुट है बालो में भी थोड़ी से मिटटी लगी है ,दौड़ के आके मैया के गले लग जाते है और मैया से बाल गोपाल बोलते है की -मैया माखन दो ना। तो मैया कहती है -जा जा के कही से चुरा के खा ले। उस समय नन्द बाबा इंद्रा की पूजा में लगे थे हुए बलराम सहित अन्य गोपाल भी यज्ञ देखने चले गए थे। कृष्णा मैया को बड़े प्यार से गले लगा के बोलते है की -मैया तू कितनी प्यारी है मेरा कितना ख्याल रखती है तू। मैया भी कृष्णा को अपनी गोद में ले कर बड़ा प्यार करती है और कहती है -अरे तू है ही इतना प्यारा। धन्य है यशोदा ,जो परमात्मा बड़े बड़े ऋषि मुनि के पास नहीं आता जिनको पाने के लिए लोग बड़ी कठोर तपस्या करते है उन परब्रम्ह परमात्मा को यशोदा अपनी गोद में लिए है ये सारा दृश्य देवता आकाश से देख कर भाव विभोर हो रहे थे। तभी कृष्णा ने मैया से पुछा की -मैया ये बताओ तुमको सारे जग में मुझसे प्यारा कोई और लगता है क्या। मैया कहती है -नहीं ,तू ही मुझे सबसे प्यारा लगता है। ये सुनते ही भगवान् मैया के गले लग जाते है। 
    तभी मैया को याद आता है की उसने रसोई घर में चूल्हे पर दूध चढ़ाया था और अब तक तो वो उबलने वाला होगा ऐसा विचार मन में आते ही मैया कृष्णा को अपनी गोद से तत्काल उतार देती है और कृष्णा से बोलती है की मैं अभी दूध का पात्र चूल्हे से उतार कर आती हु और दौड़ कर रसोई घर की ओर जाती है।  
    ऐसा देखकर कृष्णा को बड़ा ही गुस्सा आता है और कहते है की मैया बोलती है की मैं उसे सबसे प्यारा हु परन्तु उसने दूध के लिए मुझे छोड़ दिया। संसार में भी ऐसा ही होता है संसारी दूध (भौतिक सुख )के लिए भगवान् को भूल जाता है और उसे छोड़ देता है। फिर कृष्णा ने एक डंडा उठाया और वहाँ रखी सारी माखन,दूध और दही की हाँडीयो को फोड़ दिया। 
    krishna and yashoda
    krishna and yashoda

    जब मैया वापस आती है तो सारा दूध ,दही और माखन को ऐसे भूमि पर गिरा देखती है तो बहुत ही क्रोधित होती है। वो कृष्णा से बोलती है की -क्यों रे ;ये सब तूने किया है। कृष्णा मुस्कुरा के हामी भरते है। मैया फिर एक छड़ी ले के कृष्णा को मारने के लिए कृष्णा के पास आती है। भगवान् घर के बाहर भागते है। और मैया छड़ी ले के भगवान् के पीछे पीछे दौड़ती है। और बोलती है -रुक जा कृष्णा नहीं तो बहुत पिटेगा। कृष्णा जी सोचते है की -अगर कोई महादैत्य होता उसका कोई महाभयंकर अस्त्र होता  तो उसको पल भर में ही मार देता परन्तु ये तो माँ की छड़ी है पड़ेगी तो जोर से लगेगी। 
    जो भगवान् सारे असुरो को पल भर में मार देते है वही आज मार के डर से आगे आगे भाग रहे है ये सब देखकर देवता भी आनंदित हो रहे थे। बड़ी मुश्किल से मैया कृष्णा को पकड़ पाती है परन्तु जैसे ही छड़ी से मारने को अपने हाथ उठाती है तो मैया को दया आ जाती है और छड़ी को छोड़कर रस्सी से बांधने को सोचती है। मैया वही पास में पड़ी रस्सिया उठाती है और एक ऊखल में बाँधने लगती है और कहती है की -आज सारा दिन धूप में रहेगा तो तेरी अकल ठिकाने आ जायगी। 
    मगर जैसे ही मैया कृष्णा को बांधने लगती है तो रस्सी छोटी हो जाती है। ऐसा कई बार होता है।सबके बंधन 
    खोलने वाले को मैया आज  बाँधने चली है। जब मैया हार जाती है तो बोलती है -क्यों रे ,मुझे क्यों सता रहा है। फिर कृष्णा आराम से अपने आप को ऊखल से बँधवा लेते है। 
    फिर कुछ गोपिया कहती है -हे नंदरानी तुम्हारा ये बालक जब हमारे घर में आकर हमारे बर्तन भाड़े भोड़ता है तो हम तो इसे कुछ नहीं कहती और तुम कुछ पात्रो के टूटने पर इस कोमल से बालक को ऊखल से बाँध रही हो तुम बड़ी ही निर्दई हो नंदरानी। परन्तु यशोदा उनकी बातो का कोई उत्तर नहीं देती है और गोपिया भी वहाँ से चली जाती है। और यशोदा भी भवन के अंदर चली जाती है।सारे प्राणियों का बंधन चिंतन मात्र से ही खोल देने वाले भगवान् आज खुद बंधन में बंधे है। 
    krishna and yashoda
    krishna and yashoda

    यहाँ कृष्णा ऊखल से बंधे खड़े है तभी उनकी नज़र वहा  लगे दो यमलाअर्जुन के पेड़ो पर पड़ती है जो की पास पास लगे हुए थे। कृष्णा ने सोचा की क्यों न मैं इस ऊखल को इन यमलाअर्जुन पेड़ो के मध्य में फसा कर खीचू ताकि रस्सी टूट जाये। ऐसा विचार करके कृष्णा ऊखल को गिरा कर घसीटकर उन यमलार्जुन पेड़ो की ओर जाने लगते है।  
    जब कृष्णा उन यमलाअर्जुन के पेड़ो के समीप पहुंचते है तो उन पेड़ो की मनो दशा का वर्णन कौन कर सकता है। पेड़ो में भी जीवन होता है और इनको तो पूर्व के देवजीवन से अब तक की सारी घटनाये याद है। सौ देव वर्षो के लम्बी अवधि के बाद अपने उद्धार की घडी और भगवान् श्रीकृष्ण को समीप देखकर उनके अंतर्मन में क्या क्या भाव आ रहे थे ये तो या तो वे खुद जानते थे या फिर जगदीश्वर श्रीकृष्ण। 
    फिर कृष्णा उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य में प्रवेश करते है। भगवान् जिसके अंतर्मन में प्रवेश करते है उसमे क्लेश और जड़ता नहीं रहती है। और फिर ऊखल को उन यमलार्जुन पेड़ो के मध्य फसा कर जोर से रस्सी को खींचा बस फिर क्या था वे दो विशाल यमलार्जुन पेड़ भारी शब्द करते हुए भूमि पर गिर पड़े। और वे इस तरह गिरे की वहाँ पर किसी भी वस्तु या प्राणी को किसी भी प्रकार की कोई छति ना हुई।वे तो कृष्णा भक्त थे भला वे किसी को छति कैसे पंहुचा सकते थे। 
    यहाँ पर कुछ विद्वानों का कहना है की भगवान् की आज्ञा से देवी योगमाया ने यमलार्जुन पेड़ो की गिरने की ध्वनि को अवरुद्ध कर दिया था ताकि मैया यशोदा तथा गांव वाले ना आ जाये और यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार में बाधा उत्पन्न हो अत:जब तक यमलार्जुन पेड़ो का उद्धार ना हो गया तब तक योगमाया ने अपना प्रभाव बनाये रक्खा। 
    जहा से वे यमलार्जुन पेड़ गिरे थे उस स्थान से दो दिव्य ज्योति प्रकट हुई उस ज्योति में से दिव्य वस्त्रो और आभूषणों से सज्जित दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए जो वास्तव में नलकुबेर और मणिग्रीव थे।  
    नलकुबेर और मणिग्रीव ने भगवान् के परिक्रमा की और उनके चरण स्पर्श किये। तथा उनकी कई प्रकार से स्तुति की तब भगवान् कृष्णा हसे और बोले -मै तो सदा मुक्त रहता हु परन्तु जीव मेरी स्तुति तब करता है जब वो बंधन में बंधा होता है किन्तु आज स्तिथि विपरीत है  मैं बंधा हु और मुक्त जीव मेरी स्तुति कर रहा है। तुम दोनों को मेरी असीमित भक्ति प्राप्त हो चुकी है तुम दोनों आज नारद जी के श्राप से मुक्त हुए अब तुम दोनों अपने लोक को प्रस्थान करो। 
     नलकुबेर और मणिग्रीव के वहाँ से प्रस्थान करते ही योगमाया ने अपना प्रभाव समाप्त किया और फिर सबको पेड़ो के गिरने की ध्वनि सुनाई पड़ी यशोदा जी भाग कर बाहर आई और कई गांव वाले और बालगोपाल वह एकत्रित हो गए नन्द बाबा भी वहाँ आ गए कोई बोला की ये इतना बड़ा पेड़ कैसे गिरा ना आंधी आई और ना ही इसकी जड़े खोखली है। तभी एक बाल गोपाल बोला -मैंने देखा कृष्णा ने इस ऊखल से ही इन पेड़ो को गिराया है और इसमें से दो दिव्या आत्माये बाहर आई और कृष्णा के पैर छूकर आकाश में चली गई। 
    सबने उस बालगोपाल की ओर संदेह की दृस्टि से देखा और फिर उसकी बातो को अनसुना कर दिया। किसी किसी को संदेह भी हुआ की कृष्णा को मारने कई असुर आ चुके है परन्तु ये बड़ा ही भाग्यशाली है। फिर नन्द बाबा ने कृष्णा को अपनी गोद में उठाया और भवन के अंदर चले गए और  गांव वाले भी अपने अपने घर को चले गए।  
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