गोकुल वालों का इंद्र पूजा की तैयारी करना
वर्षा ऋतु नजदीक थी और हर साल की तरह इस साल भी गोकुल वासी अच्छी बारिश के लिए देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी मे लगे थे । कोई फूल माला तैयार कर रहा था तो कोई बैलगाड़ी को सजा रहा था । 56 प्रकार के व्यंजन भी बने थे जो की अलग अलग पात्रो मे रक्खे थे हर कोई पूजा को सफल बनाने मे व्यस्त था । कई सारे ऋषि गण भी मंत्रो के उच्चारण मे लगे थे । नन्द बाबा और यशोदा मैया सहित सारे गोकुल वासी तरह तरह के सुंदर वस्त्र पहने हुए थे ।
कृष्ण का गोकुल वालों को समझना
इसी बीच भगवान कृष्ण अपने ग्वाल बालो के साथ आते है और ये सारी तैयारी देखकर नन्द बाबा से पूछते है की -बाबा ये सब क्या हो रहा है और किसके लिए हो रहा है । क्या आज कोई उत्सव है । नन्द बाबा बोलते है की -हा कान्हा उत्सव ही समझो आज इन्द्र देव की पूजा है । ये पूजा हर साल होती है । इस पर कृष्ण बोलते है की -आप लोग इन्द्र की पूजा क्यो करते हो । कृष्ण की ये बात सुनकर सब लोग चौक जाते है और कहते है की अरे लल्ला इन्द्र बारिश के देवता है और उनकी आज्ञा से ही ब्रज मे बारिश होती है जिससे हमे प्रचुर मात्रा मे अनाज प्राप्त होता है । इसे इन्द्रोज यज्ञ भी कहते है । कृष्ण बोलते है की -अगर पूजा न की तो । तभी एक वृद्ध बोलता है -अगर पूजा ना हुई तो इन्द्र नाराज हो जायेगा और ब्रज मे बारिश नहीं करेगा जिससे ब्रज मे सूखा पड़ जाएगा ।
कृष्ण बोले -ये आप सब का कैसा देवता है जो की आप सब से जबर्दस्ती पूजा करवाता है और पूजा ना करने पर बारिश नहीं करेगा । पूजा करोगे तो बारिश होगी अगर नहीं करोगे तो बारिश नहीं होगी ,ये तो कोई व्यापारी है देवता नहीं । हमे इन्द्र की पूजा छोड़कर अपने गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए जिससे बादल ब्रज के बाहर नहीं जा पाते है और यही पर बरस जाते है ,जिसके जंगलो मे हमारी गौये घास चरती है और हमे दूध देती है ,हमे खाना पकाने के लिए ईंधन प्राप्त होता है । इसलिए हमे इन्द्र को छोड़कर अपने गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए । बहुत विवाद के बाद लोगो को कृष्ण की बाते सही लगने लगी और सबने इन्द्र की पूजा के स्थान पर गोवर्धन की पूजा करने का निश्चय किया ।
इंद्र का क्रोध मे आना और मेघो को भेजना
जब इंद्र को इस बारे मे पता चला की गोकुल वासी मेरी पूजा छोड़ कर उस नादान बालक कृष्ण की बातों मे आकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने जा रहे है तो वो क्रोध से आगबबूला हो गया । वो बोला -ये अज्ञानी मेरी अवहेलना करके उस पर्वत की पूजा करने जा रहे है ,इन ग्वालो का इतना दुस्साहस ,इनको धन का घमंड हो गया है । ये जंगली क्या समझते है की ये पर्वत मेरे क्रोध से इनकी रक्कचा करेगा तो ये इनकी भूल है ।
फिर इन्द्र ने प्रलय करने वाले मेघो के सावर्तक नामक गड़ को बुलाया और कहा की -जाओ सावर्तक और इन घमंडी ग्वालो के ब्रज को डुबो दो हर तरफ जल जल दिखना चाहिए । इनके सारे जानवरो का संघार कर दो मै भी ऐरावत पर तुम्हारे पीछे पीछे आता हू । और इस तरह इन्द्र ने उन महा प्रलयंकारी मेघो के बंधन खोल दिये ।
वे सारे मेघ अपनी पूरी शक्ति के साथ ब्रज पर बरस पड़े ज़ोर ज़ोर से आंधिया चलने लगी ,बिजली चमकने लगी और बीजलिया धरती पर गिरने लगी ,बड़े बड़े ओले गिरने लगे और स्तम्भ के समान मोटी मोटी जल धारा गिरने लगी । लोग ठंड से कापने लगे हर तरफ जल ही जल था क्या ऊचा और क्या नीचा कुछ समझ नहीं आ रहा था । बहुतों के तो घर भी बह गए हर ओर सिर्फ विनाश ही विनाश दिख रहा था और ये सब देख कर इंद्रा बहुत ही खुश हो रहा था ।
भगवान कृष्ण का गोवर्धन पर्वत को उठाना
सारे गोकुल वासी भगवान श्रीकृष्ण के शरण मे गए और उनसे कहा की -हे कृष्ण ;तुम्हारे कहने पर ही हम लोगो ने आज गोवर्धन पर्वत की पूजा की है जिससे नाराज होकर इन्द्र ने ये सब किया है । हम सब की रक्छा करो कृष्ण । कृष्ण भी समझ गए की इंद्र ने क्रोध मे आकर ये सब किया है ,इन्द्र को अपने पद और शक्ति का बड़ा घमंड हो गया है आज मे उसका ये घमंड तोडुगा । ये मूर्ख अपने आप को लोकपाल मानते है । देवताओ को क्रोध नहीं करना चाहिए ,इनके घमंड को चूर चूर करके मै इनको अंत मे शांति प्रदान करुगा ।
इसके बाद कृष्ण के कहा -डरो नहीं जिसकी हमने पूजा की है वही हमारी रक्छा भी करेगा ,वही गोवर्धन जी हम सब की रक्छा करेगे । आओ मेरे साथ ,फिर सब कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत के पास गए और फिर कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाना सुरू किया देखते ही देखते पूरा गोवर्धन पर्वत को उखाड़कर कृष्ण ने अपनी कनिष्का उंगली के ऊपर उठा लिया । फिर सभी लोग गोवर्धन पर्वत के नीचे जिसको कृष्ण ने एक छाते के समान धारण कर रक्खा था उसके नीचे आ गए । और कृष्ण की ओर ममतामई दृष्टि से देखने लगे ।
उधर इंद्र ये सब देख रहा था और अपने मेघो को और भी ज्यादा बारिश करने को बोला । इधर कृष्ण ने सभी गोकुल वासियो की भूक प्यास भूलाकर सात दिनो तक एक ही जगह खड़े रहकर और बंशी बजाते हुए बिता दिये ,और इन सात दिनो मे इंद्र के मेघो के पास जल की एक बूंद भी ना बची ,इंद्र के पास सारा जल समाप्त हो गया और वो गोकुल वालों का कुछ न बिगाड़ पाया ये देखकर उसके आश्चर्य की सीमा ना रही ,इंद्रा ये समझ ही नहीं पा रहा था की कृष्ण वास्तव मे है कौन ।
तभी वहा देवगुरु ब्रहस्पति प्रकट हुए और इन्द्र से बोले -हे इन्द्र आज तुम्हारा सामना उससे है जो परम शक्तिशाली है जो अविनाशी और अनंत है जिससे सारी शक्ति प्रकट होती है और फिर उनही मे समा जाती है । तब इन्द्र बोला -हे गुरुदेव ऐसी अवस्था मे हमे क्या करना चाहिए । देवगुरु बोले -जहा शक्ति काम नहीं आती वहा भक्ति काम आती है । तुम भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से युद्ध करने के जगह उनकी शरण मे जाओ वही तुम्हारी हार को जीत मे बदल सकते है।
इधर बारिश रुक जाती है बादल छट जाते है और सूरज निकल आता है तब कृष्ण सभी लोगो से कहते है -अब बारिश बंद हो गई है तथा पानी भी नीचे जा चुका है अब आप सब अपने गऔ के साथ निकल जाए और अपने घर को जाए । सबके जाने के बाद कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपने स्थान पर रख देते है और एक जगह पर बैठ जाते है तभी वहा देवराज इन्द्र आते है और कृष्ण को प्रणाम करता है तब कृष्ण बोलते है -आइये देवराज ,मैंने देखा की आप मेरा कितना आदर करते है । इंद्रा बोले -छमा करे प्रभु ,छमा करे प्रभु हे अविनाशी हे दया के सागर मुझसे जो गलती हुई है उसके लिए छमा करे प्रभु । कृष्ण बोले -तुम हमे पहचान ना सके और तुमने ये सब किया इसके लिए हम तुम्हें दोषी नहीं मानते है क्योकि ये तो हमारी माया का ही प्रभाव है परंतु तुम्हारे दूसरे दोष के लिए हम तुम्हें अवश्य दोषी मानते है ,जो तुम्हारा कर्तव्य था तुमने उसे अपना अधिकार समझ लिया ,और उसके बदले तुम धरती वासियो से पूजा रूपी रिश्वत लेते हो ,तुम चाहोगे तो पानी बरसेगा और तुम नहीं चाहोगे तो पानी नहीं बरसेगा हमे तुमसे ये आशा ना थी ।
परंतु इंद्र को आत्मग्लानि मे देखकर भगवान उसे छमा कर देते है ,फिर इंद्र भगवान से अपने पुत्र अर्जुन की रक्कचा का वचन लेकर वापस चले जाते है । और इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी एक और लीला का विस्तार किया ।